जेंडर सेंसटाइजेशन वर्कशॉप
लखनऊ। गलती बेटे करे, सजा बेटियों को मिलती है। बेटे छेड़खानी करते हैं, बंदिशें बेटियों पर लगाई जा सकती है। बेटियों को अच्छी स्कूल नहीं भेजा जाता, क्योंकि उसकी शादी में खर्च सहना मुश्किल है। ऐसी सोच के साथ कभी भी बेटियां आगे नहीं बढ़ पाएगी। समाज में महिलाओं की स्थिति में भी सुधार नहीं आ पाएगा। अपराजिता अभियान के तहत 19 जनवरी को स्प्रिंग डेल कॉलेज में पैरेंट्स टीचर मीटिंग के दौरान आयोजित जेंडर सेंसटाइजेशन वर्कशॉप में यह मुद्दे उठे। शुरुआत में अभिभावक बोलने से हिचके, लेकिन फिर एक-एक कर उन्होंने अपने अनुभव, अपनी सोच साझा की। खुलकर स्वीकार किया कि बेटियों को बेटों के मुकाबले कम आंका जाता है। भेदभाव को लेकर छात्रों की संवेदनशीलता सामने आई, जब छात्रों ने स्वीकार किया कि सारी हिदायतें बेटियों को दी जाती हैं। लड़के की गलती की सजा भी लड़की भुगतती है। उसकी पढ़ाई लिखाई तक छुड़वा दी जाती है। विशेषज्ञों ने इच्छाशक्ति और आत्मबल के भरोसे इस समस्या से पार पाने का हल बताया। उन्होंने कहा कि लोग क्या कहते हैं, इस बात की परवाह किए बिना बेटियों को सशक्त बनाने के साथ बेटों को उनका सम्मान करने का संस्कार दें। इसके बाद सभी ने अपराजिता शपथ ली। (19-1-19)
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.