अपराजिता बहादुर बेटियां
आर्थिक तंगी, आठ साल की उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया। अकेली मां ने परवरिश की और पढ़ाई में कभी बाधा नहीं आने दी। नतीजा आज वे गर्व से कहती हैं कि उनकी बेटी अपराजिता राय सिक्किम की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बन चुकी हैं। सख्त अफसर, लेकिन बेहतर इंसान अपराजिता कहती हैं कि एक महिला हो या पुरुष चुनौतियां दोनों के सामने हैं। हालांकि वे ये भी कहती हैं कि उन्हें बेहतर माहौल मिला है काम करने का, लेकिन अन्य के लिए ऐसा नहीं है। अक्सर महिलाओं की भूमिका को एक पत्नी, घर की केयरटेकर या एक बेटी तक ही सीमित मान लिया जाता है। इसे बदलना होगा, इसके लिए कोशिश जारी है। कहती हैं कि अब तक मैंने जो किया उसमें सबसे बड़ा फैसला तो यही है कि मैंने पुलिस सेवा जॉइन करने का फैसला किया। बाकी अभी तो बेस्ट देना बाकी है।
कोशिश है कि हर बेटी को मिले पूरी सुरक्षा
अपराजिता कहती हैं कि निश्चित तौर पर वीमेन फ्रेंडली सोसाइटी बनना अभी बाकी है। मैं खुद अपने यहां इस ओर काम कर रही हूं। इसके लिए हमारा फोकस अपराध की रोकथाम के साथ-साथ उन महिलाओं के खिलाफ अपराध को रोकने पर है।
'भारत में बेटियों का भविष्य उज्जवल है। हर मां को चाहिए कि वह अपनी बेटी को खुले पंख लगाकर उडऩे दें। बेटियों को चुनौतियों से हारना नहीं उन्हें पीछे छोडऩा है।'
अपराजिता राय
एडिशनल डीसीपी साइबर क्राइम, डिटेक्टिव डिपार्टमेंट,सिक्किम
अतिरिक्त प्रभार, डीसी हेडक्वार्टर, कोलकाता पुलिस
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.