बिहार के मधुबनी जिले की शिक्षिका चंदना दत्त देश के तमाम सरकारी शिक्षकों के लिए मिसाल बन गईं हैं। वह न केवल विद्यार्थियों को पूरी ईमानदारी के साथ पढ़ाती हैं, बल्कि बेटियों की शिक्षा को लेकर लोगों को जागरूक भी करती हैं। वह बीते 16 साल से लगातार यह काम कर रही हैं। उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि आज उनके स्कूल में छात्राओं की संख्या छात्रों से ज्यादा हो गई है। चंदना दत्त के इस प्रयास के लिए उन्हें नेशनल टीचर अवार्ड के लिए चयनित किया गया है।
नई दिल्ली। बिहार के मधुबनी जिले की शिक्षिका चंदना दत्त सालों से न केवल छात्र-छात्राओं का जीवन संवार रही हैं, बल्कि उनके परिजनों में भी शिक्षा की अहमियत की अलख जगा रही हैं। साल 2005 में मधुबनी के राजकीय माध्यमिक विद्यालय रांटी में जब चंदना ने बतौर शिक्षिका ज्वाइन किया था, तब स्कूल में एक भी छात्रा नहीं थी। गांव वाले अपनी बेटियों का न तो स्कूल में दाखिला कराते थे और न ही उन्हें पढ़ाने के पक्ष में थे। उनका मानना था कि बेटियां पढ़-लिखकर क्या करेंगी, आगे चलकर उन्हें घर-गृहस्थी ही तो संभालनी है। अंग्रेजी की शिक्षिका चंदना को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने ग्रामीणों की सोच को बदलने की ठानी। वह गांव के घर-घर में जातीं और बच्चियों के माता-पिता को शिक्षा का महत्व समझातीं। कुछ महीनों बाद ही उनकी मेहनत रंग लाने लगी। फिलहाल उनके स्कूल में 850 बच्चे हैं, इनमें से छात्राओं की संख्या करीब 60 फीसदी है। शिक्षिका चंदना के इस प्रयास को सरकार ने भी सराहा है। उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें 5 सितंबर 2021 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद नेशनल टीचर अवार्ड से सम्मानित करेंगे।
अवार्ड की रेस में थे 44 टीचर
नेशनल टीचर अवार्ड 2021 के लिए देशभर से 44 शिक्षकों को नामित किया गया था। इनमें से शिक्षिका चंदना दत्त के कार्यों का देखते हुए उन्हें इस सम्मान से नवाजने का फैसला किया गया। चंदना की तारीफ इलाके के लोग भी करते हैं। उनका मानना है कि यह टीचर मैडम के ही प्रयासों का नतीजा है कि अब लोग स्वेच्छा से अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए स्कूल भेजने लगे हैं।
दिव्यांग बच्चों को पढ़ाई के लिए करती हैं प्रोत्साहित
चंदना बताती हैं कि शुरुआत में बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए उनके परिजनों को राजी करना काफी मुश्किल था। कई बार समझाने के बाद कुछ परिवारों ने बच्चियों को स्कूल भेजना शुरू किया। बाद में उन्हीं की देखा-देखी अन्य लोग भी बच्चियों को स्कूल भेजने लगे। चंदना के स्कूल में आने वाली अधिकांश लड़कियां गरीब परिवारों की हैं। चंदना ने अपने स्टूडेंट्स को मधुबनी पेंटिंग सिखाने की शुरुआत भी की है। वे दिव्यांग बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करने में भी जी-जान से जुटी हैं। हाल ही में उन्हें मैथिली भाषा में शिक्षा को प्रमोट करने और इसमें लिखने के लिए सम्मानित किया गया है।
साहित्य में है खासी रुचि
चंदना का जन्म बिहार के अररिया जिले के अंग्रेजी के प्राध्यापक डॉ. प्रो. नित्यानंद दास के यहां हुआ था। चंदना ने मैथिली भाषा में स्नातकोत्तर किया है, लेकिन हिंदी और अंग्रेजी में भी उनकी अच्छी पकड़ है। चंदना बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार थीं। यही वजह है कि उन्होंने बतौर टीचर अंग्रेजी का चुना। उनकी शादी रांटी निवासी सुनील कुमार दत्त से हुई है। चंदना मिथिलाक्षर, साहित्यिक रचनाओं और कैथी लिपि के लिए भी जानी जाती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.