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मजहब की बेड़ियां तोड़ मानवता की मिसाल पेश कर रहीं सुबीना

Published - Thu 30, Sep 2021

कहते हैं मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, कुछ ऐसी ही मिसाल पेश कर रही हैं केरल की सुबीना। जो हिंदू श्मशान घाट में काम करती हैं। वह यहां 250 से अधिक कोरोना पीड़ितों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं।

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नई दिल्ली। इरिंजालकुडा के हिंदू श्मशान घाट में बदन पर शॉल लपेटे 29 वर्षीय सुबीना रहमान भोर होते ही मानवता की अलख जगाने लगती हैं। सबसे पहले सुबीना दीपक जलाती हैं और फिर घाट पर आने वाले शवों के अंतिम संस्कार में जुट जाती हैं। बीते तीन वर्षों से श्मशान घाट की जिम्मेदारी को निभाते हुए कभी उनका मजहब आड़े नहीं आया। कोरोना की दूसरी लहर में सुबीना ने 250 से अधिक कोरोना से दम तोड़ने वाले मरीजों का अंतिम संस्कार हिंदू रीतिरिवाज से किया। पीपीई किट पहने पसीने से लथपथ सुबीना एक के बाद एक अंतिम संस्कार करते हुए भी मरने वाले के लिए अपने अलग ही अंदाज में दुआ करना कभी भी नहीं भूलीं। सुबीना की कहानी देश में धार्मिक सौहार्द की ऐसी दास्तां है जो सिखाती है कि कोई मजहब आपस में बैर करना नहीं सिखाता और यही भारत की विशिष्टता है। 

केरल में यह पेशा चुनने वाली पहली मुस्लिम महिला 

सुबीना रहमान केरल में यह पेशा चुनने वाली पहली मुस्लिम महिला हैं। उन्होंने मजहबी बेड़ियां तोड़ते हुए हिंदू श्मशान घाट की जिम्मेदारी बीते तीन वर्षों से अपने कंधे पर उठाई हुई है। सुबीना मानती हैं कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता और वह इसकी ही सेवा कर रही हैं।

पहले डर लगता था पर अब नहीं 

रहमान कहती हैं, जब यह काम शुरू किया था तो शव देखकर डर लगता था। कई रातों तक सपने आते रहे लेकिन अब लाशें डराती नहीं हैं। सुबीना बचपन में पुलिस अधिकारी बनना चाहती थीं। इस काम के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था, लेकिन बीमार पिता और परिवार की देखरेख के लिए जब कोई काम नहीं मिला तो उन्होंने इस पेशे को चुन लिया। सुबीना कहती हैं कि अब लगता है कि ऊपर वाले ने उनके कंधे पर यह जिम्मेदारी दी है।