अपराजिता बहादुर बेटियां
खाकी तो सिर्फ डंडा चलाना जानती है, इस मिथक को तोड़ती हैं वड़ोदरा की डीसीपी सरोज कुमारी की छवि। सख्त मिजाज अफसर होने के बावजूद जब वह बच्चों के बीच होती हैं तो बिल्कुल उनके जैसी मासूम बन जाती हैं। उन्हें बिल्कुल उनके ही अंदाज में सिखाती हैं 'गुड एंड बैड टच' के मायने। वे बच्चों को साफ तौर पर 'ना' कहने को प्रेरित करती हैं और उनमें गलत के खिलाफ विरोध करने का हौसला भरती हैं।
हर चुनौती को जीत बढ़ीं आगे
राजस्थान के बुडानिया गांव की रहने वाली सरोज कुमारी के पिता सेना में हवलदार थे। रिटायरमेंट के बाद की तनख्वाह में घर का खर्च चलना ही मुश्किल था। ऐसे में पढ़ाई पूरी करना सरोज कुमारी के लिए चुनौती थी, लेकिन पहले स्कूल, लौटकर मां-बाबा के काम में हाथ बंटाना। उनकी लगन का ही नतीजा था कि वे आईपीएस में सलेक्ट हुईं। हालांकि ट्रेनिंग के दौरान भी उन्होंने चुनौतियां झेलीं। सामान्य परिवार, सामान्य स्कूल और सामान्य परिवेश से आने के कारण अंग्रेजीपरस्त लोगों ने उनका खूब मजाक उड़ाया, लेकिन उनकी बहुमुखी प्रतिभा के आगे कोई टिक नहीं सका। पर्वतारोहण हो या मैराथन, उनकी बराबरी कोई नहीं कर सका।
'बच्चों को यह समझाना या सिखाना ही काफी नहीं कि वह यौन शोषण सहे नहीं या कैसे बचें। जरूरी है उनके दिलो-दिमाग में घर कर गए भय को निकालना।'
सरोज कुमारी
डीसीपी, वड़ोदरा
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.