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'लेडी सुपरकॉप' मीरा, कसाब और याकूब को इन्हीं की देखरेख में दी गई थी फांसी

Published - Sat 30, Mar 2019

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मीरा चड्ढा बोरवंकर। पंजाब के फजिल्का शहर में जन्मी साधारण सी लड़की, लेकिन बहुमुखी प्रतिभा की धनी। देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेद को अपना आदर्श बनाया और निकल पड़ी उसी राह पर। मीरा की गिनती आज देश के गिने-चुने साहसी आईपीएस अधिकारियों में होती है। यही नहीं, उन्हें अंडरवर्ल्ड में तहलका मचाने वाली 'लेडी सुपरकॉप' के नाम से भी जाना जाता है। मीरा के आईपीएस बनने के बाद महाराष्ट्र के कई बड़े शहरों में पोस्टिंग हुई। मुंबई में अंडरवर्ल्ड से उनका मुकाबला हुआ और उन्होंने डॉन अबु सलेम के प्रत्यर्पण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर खुद को साबित किया। यही नहीं, डॉन दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन गैंग से जुड़े अपराधियों को भी उन्होंने जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया। याकूब मेमन की फांसी के समय एडीजीपी (जेल) थीं। मुंबई अटैक के मुजरिम अजमल आमिर कसाब को भी मीरा की देखरेख में ही फांसी पर चढ़ाया गया था। खुद मीरा ने कहा, सरकार ने कसाब और याकूब की फांसी की सजा को सुपरवाइज करने के बारे में पूछा तो मैंने इसलिए इनकार नहीं किया कि कहीं मेंरी अस्वीकृति को महिला होने की वजह से किसी और अर्थ में ले लिया जाए। कसाब को फांसी देने के बाद लोगों ने मुझसे पूछा था कि क्या आप बेहोश तो नहीं हुईं थीं। उस दौरान मुझे खास सतर्कता बरतनी पड़ी थी। कसाब को फांसी देने के मामले को गुप्त रखने के सरकार से खास निर्देश थे। इसकी भनक मीडिया को भी न लगे, इसलिए मुझे अपनी गाड़ी छोड़कर गनर की बाइक से यरवदा जेल जाना पड़ा। नागपुर सेंट्रल जेल में मेमन ने मुझे कहा था- मैडम, चिंता मत करिए। मुझे कुछ नहीं होगा। यह बात सुनकर मैं चौंक गईं थी।

ऐसे आईं सुर्खियों में

मीरा वर्ष 1981 में महाराष्ट्र कैडर की आईपीएस अधिकारी बनी थीं। वह 1987 से 91 तक मुंबई में पुलिस उपायुक्त रहीं। मीरा उस समय भी सुर्खियों में रहीं, जब 1994 में उनके नेतृत्व में पुलिस ने जलगांव के एक बड़े सेक्स रैकेट पर हाथ डाला। ये गिरोह स्कूल-कॉलेज की लड़कियों को देह व्यापार के धंधे में धकेल रहा था। मीरा औरंगाबाद, सतारा आदि में जिला पुलिस अधीक्षक के अलावा स्टेट सीआईडी की अपराध शाखा में भी रहीं। बाद में उनको मुंबई में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की आर्थिक अपराध शाखा में स्थानांतरित कर दिया गया। नई दिल्ली में वह सीबीआई के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की डीआईजी बनीं। अक्तूबर 2017 में मीरा चड्ढा बोरवंकर पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल पद से रिटायर हो गईं।


किरण बेदी रहीं प्रेरणास्रोत

महाराष्ट्र कैडर की पहली महिला आईपीएस रहीं मीरा। देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी उनकी प्रेरणास्रोत रही हैं, और 'मर्दानी' की अभिनेत्री रानी मुखर्जी की आदर्श रही हैं मीरा। मीरा चड्ढा बोरवांकर का जन्म और पढ़ाई-लिखाई फजिल्का पंजाब में हुई थी। उनके पिता ओपी चड्ढा बीएसएफ में रहे। उनकी पोस्टिंग फजिल्का में ही थी। मीरा ने वहां मैट्रिक तक शिक्षा पाई। वर्ष 1971 में पिता का तबादला हुआ तो मीरा ने आगे की पढ़ाई जालंधर से की। वहीं डीएवी कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। इसके बाद उन्होंने अमेरिकी यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया। हुबर्ट हम्फ्रे फैलोशिप के लिए 1997 में उन्हें राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया। इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कार मिले।

'मैं पढ़ाई में भी अच्छी थी, नाटकों में भाग लेती थी, वाद-विवाद में भी और मैं पंजाब के क्रिकेट टीम में भी अच्छी थी। मुझे यकीन था कि जीवन में कुछ नया करूंगी। स्वयं को सिर्फ शादीशुदा जीवन तक सीमित नहीं रखूंगी। जब मैं 1971-72 के दौरान कॉलेज में थी, किरण बेदी पहली महिला आईपीएस बनकर लहर पैदा कर रही थीं। एक दिन मेरे शिक्षकों ने मुझे फोन कर कहा कि मुझे भी आईपीएस कॅरिअर को विकल्प बनाना चाहिए। अंग्रेजी से एमए करने के बाद मैंने यूपीएससी परीक्षा दी, सेलेक्ट हुई और एसवीपी राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद प्रशिक्षण लेने चली गई।'

मीरा चड्ढा बोरवंकर