अपराजिता चेंजमेकर्स बेटियां
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में शोध कर रही युवा लेखिका लीमा धर फिर एक बार चर्चा में हैं। 19वीं सदी की बात है उस समय में इंग्लैंड में महिलाएं घोर पितृसत्ता से जूझ रही थी। ऐसे वक्त में ब्रॉटे बहनों को यह बात खटती रही। अखिर वह दिन भी आ गया जब उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने न सिर्फ अपने लिए, बल्कि इस समाज में पितृसत्ता में जी रही हर एक महिला को इससे आजादी लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की कहानियों को अपने उपन्यास का विषय बनाया। महिलाओं की आवाज बनकर ब्रॉंटे बहनों ने जिस तरह समाज के सामने महिलाओं के संघर्ष को उजागर किया, लीमा उसी पर शोध कर रही हैं। लीमा बॉटे बहनों से बेहद प्रभावित हैं। वह भी चाहती है कि महिलाएं समाज में अपने उस अधिकार को प्राप्त करें जिसकी वह हकदार है। वह बिना किसी पाबंदी के अपने अनुसार जिएं। इसलिए लीमा ने इसे अपने शोध का विषय बनाया है। लीमा का यह शोध नारीवाद को अलग पहचान देगा। वह एक अंग्रेजी उपन्यास भी लिख रही हैं, जो इसी विषय पर केंद्रित है। शोध कार्य और उपन्यास पर साथ काम कर रही लीमा देश के विभिन्न शहरों में अनेक मंचों पर व्याख्यान दे चुकी हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.