अपराजिता चेंजमेकर्स बेटियां
फिरोजाबाद। यह कहानी गांव सराय भरतरा निवासी वर्षा की है। लोटा पार्टी की अशोभनीय फब्तियों को चुनौती के रूप में स्वीकार कर खुले में शौच के विरूद्व लड़ाई लडने वाली वर्षा ने सबसे पहले अपने घर से ही शुरूआत की। वर्ष 2017 में खुले में शौच से मुक्ति के लिए संघर्ष शुरू करने वाली वर्षा के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। श्रमिक पिता के परिवार में जन्म लेने वाली वर्षा जैसे-जैसे समझदार होती गई वैसे-वैसे खुले में शौच जाना उसे बेहद अखरता था। बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश लेते ही उसने खुले में शौच नहीं जाने का ऐलान कर दिया। जिस उम्र में स्कूली बच्चे खेलकूद और पढाई-लिखाई में मन रमाते हैं, उस उम्र में वर्षा ने सामाजिक कुरीति को जड़ से खत्म करने का प्रण लिया। निवर्तमान जिलाधिकारी नेहा शर्मा, सीडीओ नेहा जैन की प्रेरणा व डीपीआरओ गिरीशचंद के निर्देशन में वर्षा ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छग्राही जैसे चुनौती पूर्ण दायित्व को संभाला। स्वच्छाग्राही वर्षा ने सहेलियों के माध्यम से बुजुर्ग महिलाओं से बात की। उन्हें खुले में शौच के दौरान होने वाली परेशानियां बता उनकी सहमति हासिल की। हम उम्र बालिकाओं की टीम बनाईं। गरीब परिवार की बालिकाओं को मेहनत व छोटी-छोटी बचत के माध्यम से पैसे जोड़ने व शौचालय बनाने के लिए प्रेरित किया। तमाम विरोधों को पीछे छोड़ वर्षा स्वच्छता अभियान को सफल बनाने में जुटी रहीं।
छोटी सी उम्र में सामाजिक कुरीति के खिलाफ निर्णायक जंग
जब से होश संभाला, खुले में शौच के हालात पर सबसे अधिक शर्मिंदगी और बेबसी का अहसास हुआ। लोटा लेकर खेतों की ओर जाते और आते वक्त लोगों की फब्तियां नश्तर की तरह चुभती थीं। आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी जो घर में शौचालय बन पाता। फिर खुद ही फैसला किया आत्मसम्मान की जंग लड़ने का, जिसने जीवन में एक लक्ष्य दे दिया। उस वक्त मैंने इंटर पास किया था। बीए करने से पहले ही ठान लिया कि मैं खुद कुछ करूंगी। पहली समस्या पैसे की थी। पिता श्रमिक, घर में आर्थिक तंगी और किसी का साथ नहीं...। ऐसे में सबसे पहले माता-पिता को समझाया। उनका साथ मिला तो हौसला एकाएक बढ़ गया। फिर घर के एक कोने में खुद ही गड्ढा खोदा, कच्ची ईंटें जुटाई और दीवारें बनाई। फिर मां की सबसे पुरानी साड़ी के एक हिस्से को परदा बनाकर गेट पर टांग दिया। सीट नहीं थी लिहाजा लकड़ी के पटरे रखे और बना दिया शौचालय। कुछ लोगों ने गंदगी को लेकर कोसा और फिर कुछ को समझ में आया। मैंने भी आगे बढ़कर हमउम्र लड़कियों को समझाया और साथ मिलकर काम करने को राजी किया। धन के इंतजाम के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाई। इसी बीच डीएम और डीपीआरओ से मिल स्वच्छाग्रही बनने का इरादा किया। कुछ ही महीनों के प्रयास से गांव में हालात बदलने लगे और नतीजा आज सबके सामने है। मेरा गांव सराय भरतरा ही नहीं, गांव नगला मदारी, कीठौत खुले में शौच से मुक्त होने वाले पहले दस गांवों की सूची में शामिल है।
श्रमिक पिता व मां के सहयोग से मिली प्रेरणा
वर्षा के अनुसार उसने जब खुले में शौच जाते समय होने वाली परेशानियां अपने पिता बनी सिंह को बताईं। पिता की आर्थिक चिंताओं को भांप वर्षा ने मां चंद्रवती से सहयोग मांगा। माता-पिता का सहयोग मिलते ही वर्षा ने खुले में शौच के विरूद्व निर्णायक लड़ाई लड़ने को कमर कस ली।
सवालों और जिरह के बीच मजबूत होते गए इरादे
सात भाई-बहनों में तीसरे नंबर की वर्षा जब ग्रामीणों को खुले में शौच से होने वाली हानियों के बारे में बताती तो उसकी खिल्ली उडाई जाती। कुछ लोग उसके ऊपर सवालों की बौछार करते लेकिन, लोगों की नकारात्मकता को अपना संबल बनाने वाली वर्षा की कामयाबी ने उनकी सोच को बदल दिया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.