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कुली मंजू के संघर्ष की कहानी सुन भावुक हुए राष्ट्रपति, किया सम्मान

Published - Mon 01, Apr 2019

अपराजिता चेंजमेकर्स

राष्ट्रपति भवन...20 जनवरी 2018 का दिन... 90 महिलाओं की भीड़ में एक अलग सा चेहरा था जो राजस्थान से आया था। उस चेहरे का नाम था मंजू देवी, जिन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने हाथों से सम्मानित किया। मंजू देवी एक ऐसे संघर्ष की कहानी है, जिसने खुद को कभी हारने नहीं दिया। अपने लिए नहीं, अपने बच्चों के लिए संघर्ष किया और उस संघर्ष को सुनकर खुद महामहिम भी भावुक हो उठे।

मंजू देवी जयपुर रेलवे स्टेशन पर काम करने वाली एकमात्र महिला कुली हैं। अपने तीन बच्चों के परिवार में मंजू देवी अकेली कमाने वाली हैं। पति की मौत के बाद मजबूरी में बच्चों की जिम्मेदारी के कारण यह काम करना शुरू किया था। लेकिन आज उन्हें इस काम से न शर्म आती है और न ही लोगों के कुछ कहने की परवाह है। पैसेंजर के वजनी सामान उठाने में उन्हें अब कोई तकलीफ महसूस होती है।


मां ने दी हिम्मत और हासिल किया पति का बिल्ला

मंजू देवी बताती हैं कि शुरू-शुरू में यात्रियों के सामान ढोने में शर्म महसूस हुई, लेकिन बच्चों का पेट पालने की जिम्मेदारियों के बीच यह छोटा लगने लगा। पति की मौत के बाद पारिवारिक कलह और मानसिक तनाव के बीच मां ने उन्हें हिम्मत दी। इधर, रेलवे अधिकारियों ने मंजू को बताया कि जयपुर रेलवे स्टेशन पर कोई महिला कुली नहीं है, इसलिए उन्हें कई परेशानियों से दो-चार होना पड़ सकता है। इसके बाद भी मंजू ने लाइसेंस लेने की जिद नहीं छोड़ी। लिहाजा, उन्हें पति का कुली लाइसेंस नंबर 15 का बैज दे दिया गया। इसके बाद खुद का यूनिफॉर्म तैयार किया। तमाम दिक्कतों के बाद आज लाल कुर्ते व काले सलवार में मंजू देवी पैसेंजर्स के 'कुली' आवाज लगाने की उम्मीद में हर दिन स्टेशन पहुंचती है।

काम को मिला सम्मान
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम और उपलब्धि हासिल करने वाली 90 महिलाओं को सम्मानित किया था। इन खास महिलाओं को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने विशेष सम्मान के लिए चुना था। राजस्थान की पहली महिला कुली मंजू ने कभी सपने में भी यह नहीं सोचा था कि उनका अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन और 90 अन्य महिलाओं के साथ सम्मान होगा। रोजी-रोटी कमाने की खातिर पुरुषों के वर्चस्व वाले पेशे में काम करना, उनके लिए बड़े सम्मान की वजह बन जाएगा।

बच्चों को पालने से कम लगा 30 किलो बोझ

मंजू ने रेलवे स्टेशन पर कुली बनकर बोझ उठाने के अपने संघर्ष की कहानी सुनाई तो महामहिम रामनाथ कोविंद भी भावुक हो गए। मंजू ने राष्ट्रपति भवन में अपने-अपने क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल करने वाली महिलाओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा, ‘मेरा वजन 30 किलोग्राम था और यात्रियों का बैग भी 30 किलोग्राम था, लेकिन तीन बच्चों को पालने के बोझ के मुकाबले यह कहीं नहीं था। मेरे पति की मौत के बाद मुझ पर बच्चों के लालन-पालन करने की जिम्मेदारी आन पड़ी थी. मेरे भाई ने मुझे जयपुर आने और कोई काम ढूंढने के लिए कहा था और मैंने यह काम चुना।’ मंजू ने बताया कि रेलवे अधिकारियों ने उन्हें 6 महीने तक प्रशिक्षण दिया और उसके बाद वह कुली बन गई। मंजू और कुछ अन्य महिलाओं की कहानियां सुनने के बाद राष्ट्रपति ने कहा कि यहां हर किसी के पास सुनाने के लिए अपनी एक कहानी है। उन्होंने बताया कि वे मंजू देवी के जीवन की कहानी सुनकर भावुक हो गए थे।