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- पिता की मौत के बाद सीमा संधू ने बहनों को महसूस नहीं होने दी पिता की कमी, नौकरी छोड़कर पिता का व्यवसाय संभाला, व्यापारियों ने हड़प ली रकम
फरीदाबाद। किसी के सिर से जब पिता का साया उठता है तो परिवार पूरा बिखर जाता है। ऐसे में बेटे पिता की जगह लेकर परिवार को संभालने के लिए आगे आते हैं, लेकिन इस परंपरा को तोड़कर सीमा संधू आगे बढ़ी और अपने पिता की जगह लेकर बहनों को काबिल बनाया। नौकरी छोड़कर पिता का व्यवसाय संभाला और आज इस मुकाम पर पहुंची है कि उसे शहर में अपनी पहचान के लिए मोहताज नहीं होना पड़ता। सीमा ने न केवल अपना परिवार बल्कि 25 मजदूरों के परिवार को भी सहारा दिया। परिवार में भाई न होने के कारण पिता की मौत का बोझ सीमा के कंधों पर आ गया। जिस वक्त में लोग अपने होश खो बैठते हैं उस वक्त में सीमा ने होश संभाला और अपने परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठा लिया। व्यवसाय की शुरूआती दौर में तो पिता के साथ काम करने वाले व्यापारी भी धोखेबाज निकले और उन्होंने काफी आर्थिक नुकसान पहुंचाया, लेकिन सीमा ने हिम्मत करके उस आर्थिक नुकसान की भरपाई की और आज व्यवसाय को बुलंदियों के आसमान पर पहुंचा दिया है। डबुआ कॉलोनी निवासी सीमा संधु परिवार की बड़ी बेटी थी। पिता लाजपत राय की हृदयघात के कारण वर्ष 2009 में मौत हो गई, जिसके बाद मां बिमला व दो छोटी बहनों रेनू और मोनिका का बोझ उनके कंधे पर आ गया। इस पर सीमा ने दिल्ली की एक निजी कंपनी की नौकरी छोड़कर पिता का टिम्बर व्यवसाय संभाला, जिसमें 25 मजदूर काम करते थे। बेटियों के इंजीनियर बनने का सपना सीमा ने अपना बना लिया और दोनों बहनों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई।
व्यापारियों ने दिया धोखा
पिता की मौत के बाद उनकी कंपनी में काम करने वाले 25 मजदूरों का भी परिवार बिखरने की कगार पर था। ऐसे में हिम्मत कर उन्होंने व्यवसाय को संभाला। काम के लिए पिता ने जिनसे कच्ची सामग्री मंगवाई थी। वह लेनदार भी परेशान करने लगे। इतना ही नहीं, जिन व्यापारियों को उन्होंने सामान बेचा वह भी रकम देने में आनाकानी करने लगे। करीब 3 वर्ष के कठिन परिणाम के बाद उनकी मेहनत रंग लाई।
बहनों को काबिल बनाने के लिए नहीं की शादी
पिता के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दोनों बहनों मोनिका ओर रेनू को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बंगलूरू भेजा। पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों बहनों की धूमधाम से शादी भी की। लेकिन आज तक अपना घर बसाने के लिए उन्होंने नहीं सोचा।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.