अपराजिता साइलेंट चेंजमेकर्स
अच्छी खासी एडवरटाइजमेंट कंपनी की नौकरी थी। एक शूट के लिए बस्ती में जाना हुआ। एक सात साल की बच्ची की रोंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी ने जिंदगी देखने का नजरिया ही बदल दिया। एक बेटे के लालच में मां ने सात बेटियां पैदा कर डालीं। उनका पेट भरने के लिए उन्हें धंधे में धकेल दिया। सात साल की वह बच्ची हर हफ्ते पांच से छह सौ रुपये के लिए किसी की हवस का शिकार बनती थी। इस घटना से नींव पड़ी प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन की।
बच्चों को सुरक्षित माहौल देने की है जिद
सोनल बताती हैं कि मेरी उम्र 23 साल थी उस वक्त। मुझे समझ ही नहीं आया कि हो क्या रहा है। मैं उस बच्ची की हालत न देख सकी, न खा सकी और न ही ऑफिस जा सकी। मैंने तय किया कि ऐसे बच्चों के लिए कुछ करना है। उसी बस्ती से प्रोत्साहन की शुरुआत की। सोनल कहती हैं कि हम 826 बच्चों को रेस्क्यू कर चुके हैं। इनको बचाने के बाद फिर से मुख्यधारा में वापस लाना चुनौती है। इसके लिए हम अन्य संस्थाओं से मदद लेते हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना हमारा मकसद नहीं है। फिलहाल हम राष्ट्रीय महिला आयोग के साथ मिलकर बच्चों की तस्करी व यौन शोषण के खिलाफ काम कर रहे हैं।
'संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है, क्योंकि हम समझना ही नहीं चाहते या फिर समझ है ही नहीं। संसाधनों का सही इस्तेमाल कैसे हो, इस बारे में जिम्मेदार लोगों को प्रशिक्षित करना जरूरी है।'
सोनल कपूर
संस्थापक, प्रोत्साहन फाउंडेशन,
सदस्य महिला आयोग एक्सपर्ट कमेटी
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.