पुणे में उल्का सादलकर ने एक अनोखे आइडिया पर काम शुरू किया है। उन्होंने कबाड़ हो चुकी बसों को महिलाओं के लिए शौचालय, दूध पिलाने कैबिन बनाकर उनकी परेशानियों को कम कर दिया है।
पुणे। अमूमन देखा जाता है कि पुरुषों को शौच के लिए कहीं भी आने-जाने में परेशानी नहीं होती और पुरुष शौचालय भी आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए शौचालय कहीं-कहीं होते हैं। ऐसे में जरूरत होने पर महिलाओं को या तो शर्मिदा होना पड़ता है या फिर वो बिना भटकती रहती हैं।महिलाओं की इसी परेशानी को देखते हुए पुणे की उल्का सादलकर ने ऐसे अनोखे सुविधाघर बनवा दिए हैं, जिसमें जिनमें वॉशरूम से लेकर बच्चों के डायपर बदलने, उन्हें दूध पिलाने तक की व्यवस्थाएं हैं।
उल्का अपने आसपास महिलाओं को ऐसी समस्या से जूझते देखती थीं इसी कारण उन्होंने इस आइडिया पर काम करने की सोची। उन्होंने राजीव खेर के साथ मिलकर महिलाओं को शौचालय उपलब्ध कराने के आइडिया पर काम करना शुरू किया। उल्का ने पढ़ा और सुना था कि विदेशों में कैसे पुरानी बसों को गरीब लोगों के रहने के लिए घर के रूप में तब्दील कर दिया जाता है। उन्होंने भी इसी आइडिया पर काम करने की सोची। पुरानी बसों के लिए उन्होंने निगम से संपर्क किया, तो पता चला कि इन बसों को स्क्रैप में बेच दिया जाता है। फिर क्या था उल्का ने इन्हीं बसों में कुछ करने की सोची।
उल्का ने पुणे में एक दर्जन बसों में 'ती स्वास्थ्य गृह' नाम से एक अनूठी पहल की है। इन बसों में वॉशरूम से लेकर बच्चों के डायपर बदलने, उन्हें दूध पिलाने तक की व्यवस्थाएं हैं। रोजाना सुबह से ही इन बसों के पास महिलाओं का तांता लगा रहता है। सादलकर बेंगलुरू, इंदौर, मुंबई, चेन्नई में भी ये व्यवस्थाएं बनाने जा रही हैं।"सादलकर की कोशिशें आज स्वच्छ भारत अभियान का भी अहम हिस्सा बन चुकी हैं। अब तक उल्का ऐसे एक दर्जन से अधिक 'हेल्थ सेंटर' की व्यवस्थाएं बना चुकी हैं। इस इंतजाम का सबसे ज्यादा गरीब तबके की महिलाएं फायदा उठा रही हैं। उनके हर स्वास्थ्य केंद्र पर दिन भर महिलाओं का तांता लगा रहता है। वहां सफाई के बारे में जागरूक करने के लिए वीडियो भी चलते रहते हैं। उन्होंने एक करोड़ रुपए खर्च कर महिलाओं के लिए 'ती स्वास्थ्य' गृह नाम से एक दर्जन से अधिक बसों में ऐसे सुविधा घर बनवाएं हैं। उन बसों में सहयोग के लिए महिला कर्मचारी और टेक्नीशियंस भी नियुक्त हैं। इन सुविधाओं के बदले हर आम महिला से पांच रुपए फीस ली जाती है। सेनिटेशन उद्योग से जुड़ी उल्का सादलकर कबाड़ बसों पर नौ से दस लाख रुपये खर्च कर उन्हें सुविधाघर बना देती हैं। इस सुविधाघर में लगे उपकरण सौर ऊर्जा से चलते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.