जेवलिन थ्रोवर अन्नू रानी ने दोहा में चल रही 'वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप' में नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम करते हुए फाइनल में प्रवेश किया। इसके साथ ही अनु 'वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप' में महिलाओं की जैवलिन थ्रो स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय एथलीट भी बन गई हैं।
2018 के एशियाई खेलों में खराब प्रदर्शन के चलते एकदम टूट चुकी अनु रानी ने आज 'वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप' के फाइनल मे जगह बनाकर देश को गौरान्वित किया। यहां तक पहुंचना उनके लिए कतई आसान नहीं था। खेल जगत में कई ऐसे उदाहरण है जिनमें खिलाडियों का एक बार आत्मविश्वास डगमगा गया तो वह दोबारा वापसी नहीं कर पाए। लेकिन अनु रानी ने हिम्मत नहीं हारी। अनु 2018 एशियाई खेलों में 53.93 मीटर के निराशाजनक प्रदर्शन के साथ छठे स्थान पर रहीं थीं। उन्हें करियर के इस मुश्किल लम्हें से बाहर निकलने के लिए उन्हें काउंसिलिंग और प्रेरणादायी वीडियो देखने की जरूरत पड़ी थी। उन्होंने कहा, ‘एशियाई खेलों के बाद मैं मानसिक रूप से निराश थी। इसके बाद वापसी करने में मुझे समय लगा। मैंने खुद को प्रेरित किया और इसी के कारण आज मैं यहां हूं। हां, मुझे खुद को प्रेरित करने की जरूरत (काउंसिलिंग जैसी चीजों से) पड़ी, मैंने यूट्यूब पर प्रेरणादायी वीडियो देखे। 2018 की निराशा के बाद के अनुभव से मैंने काफी चीजें सीखी। अब मैं मानसिक रूप से मजबूत महसूस कर रही हूं।’
जेवलिन थ्रोवर अनु रानी ने दोहा में चल रही 'वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप' में नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम करते हुए फाइनल में प्रवेश किया। इसके साथ ही अनु 'वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप' में महिलाओं की जैवलिन थ्रो स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय एथलीट भी बन गई हैं। क्वालिफाइंग में अच्छा प्रदर्शन करने वाली अनु फाइनल में आठवें स्थान पर रहीं। अनु ने अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते हुए 61.12 मीटर का सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया। इस स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय एथलीट अनु ने 59.25 मीटर के प्रयास के साथ शुरुआत की और फिर 61.12 मीटर और 60.20 मीटर की दूरी नापकर शीर्ष आठ में शामिल रही जिससे उन्हें तीन और थ्रो मिले। अगले तीन प्रयास में अनु 60.40 मी, 58.49 मी और 57.93 मी की दूरी ही तय कर सकीं।
महिलाओं को मिले बराबरी का मौका
विश्व चैंपियनशिप में आठवें स्थान पर रही शीर्ष भारतीय जेवलिन थ्रोअर अनु रानी ने खेल में महिलाओं को बराबरी का मौका देने की मांग करते हुए कहा कि वे भी प्रदर्शन कर सकती हैं और देश को गौरान्वित कर सकती हैं। अनु इस प्रतिष्ठित चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला हैं। मेरठ के बहादुरपुर गांव की अनु ने कहा,‘मुझे काफी समर्थन मिला और उनका आभार व्यक्त करना चाहती हूं। मैं कहना चाहती हूं कि महिलाओं को भी बराबरी के मौके मिलने चाहिए (खेल में) और लोगों को उन पर भरोसा करना चाहिए। वे भी अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं और काफी अच्छे नतीजे दे सकती हैं। यह मेरी दूसरी विश्व चैंपियनशिप है और मैं फाइनल में जगह बनाकर और आठवां स्थान हासिल करके अच्छा महसूस कर रही हूं। फाइनल में मैं अपने क्वालिफिकेशन दौर के प्रदर्शन से बेहतर नहीं कर पाई लेकिन मैं आठवें स्थान से खुश हूं। भविष्य में मैं बेहतर प्रदर्शन करूंगी।’
बांस के डंडे से बनाया जेवलिन स्टिक
अनु रानी का जन्म 28 अगस्त, 1992 को मेरठ के बहादुरपुर गांव में एक किसान परिवार में हुआ। खेल-कूद का शौक उन्हें बचपन से ही था। एक बार जब वह क्रिकेट खेल रहीं थी तभी उनके भाई को उनके ऊपरी हिस्से की ताकत का असास हुआ। तब उन्होंने अन्नु को खाली खेत में गन्ने की छड़ से प्रैक्टिश कराना शुरू किया। उनका परिवार इतना गरीब था कि वह जेवलिन स्टिक (भाला) नहीं खरीद सकती थीं। इसलिए उन्होंने एक बांस की छड़ से ही जेवलिन स्टिक बना लिया। बाद में उनकी ट्रेनिंग का खर्चा भी उनके भाई ने उठाया। हालांकि उनके लिए खेल की दुनिया में कदम रखना आसान नहीं था। क्योंकि उनके पिता खेलने की अनुमति नहीं दे रहे थे। लेकिन उनके भाई ने अनु का हमेशा साथ दिया। जब अनु ने 2014 में नेशनल रिकॉर्ड अपने नाम किया तब उनके पिता को उनकी प्रतिभा का अहसास हुआ और उन्होंने भी खेलने की इजाजत दे दी।
Story by - Rohit Pal
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.