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इन महिलाओं की वजह से 26 जनवरी का दिन बना खास

Published - Sat 25, Jan 2020

26 जनवरी 2020 को देश का संविधान बने 70 साल पूरे हो रहे हैं। भारतीय संविधान के जनक बीआर आंबेडकर माने जाते हैं। संविधान को बनाने में 284 लोग शामिल थे, लेकिन उन महिलाओं की चर्चा ना के बराबर होती है जिन्होंने संविधान निर्माण में डॉ. आंबेडकर का पूरा सहयोग किया था। इन महिलाओं ने संविधान निर्माण के दौरान देशभर की विभिन्न अभियानों से जुड़ी महिलाओं को एकत्रित किया और उनसे महिला अधिकार पर बात की, ताकि संविधान के तहत स्वतन्त्र भारत में उन्हें न्याय मिल सके। आज हम संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वालीं इन्हीं महिलाओं के बारे में आपको बता रहे हैं....

नई दिल्ली। साल 2020 में जब हम अपना 70वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं तो यह जानना जरूरी है कि देश का संविधान 26 जनवरी 1950 को पूरे देश में लागू हुआ था। तभी से ही हर साल 26 जनवरी को एक पर्व की तरह धूमधाम से मनाया जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि भारतीय संविधान के निर्माण में महिला स्वतंत्रता सेनानियों का भी बड़ा योगदान रहा है। संविधान को बनाने में 284 लोग शामिल थे, जिसमें 16 महिलाएं थीं, जिन्होंने संविधान निर्माण के दौरान महिला अधिकारों की बात जोर-शोर से उठाई थी। उल्लेखनीय यह है कि इन प्रगतिशील महिलाओं ने संविधान निर्माण के दौरान देशभर की विभिन्न अभियानों से जुड़ी महिलाओं को एकत्रित किया और उनसे महिला अधिकार पर बात की, ताकि संविधान के तहत स्वतन्त्र भारत में उन्हें न्याय मिल सके।

1. सुचेता कृपलानी
सुचेता कृपलानी को स्वतंत्रता आंदोलन में ही नहीं, बल्कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए याद किया जाता है। उन्हें संविधान सभा की ड्राफ्टिंग समिति के एक सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया था। उन्होंने भारतीय संविधान सभा में ‘वंदे मातरम’ भी गाया था। 1908 में अंबाला में जन्मी सुचेता मजूमदार की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। बीएचयू में इतिहास के प्रोफेसर जेबी कृपलानी से शादी के बाद वह सुचेता कृपलानी बन गईं। सुचेता ने 1942 के  भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। उन्होंने कांग्रेस में 1940 में ‘विमेन विंग’ की स्थापना की थी। वह उत्तर प्रदेश की पहली मुख्यमंत्री बनीं। वह भारत की प्रथम महिला सांसद भी थीं।

2. राजकुमारी अमृत कौर
2 फरवरी 1889 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जन्मी राजकुमारी अमृत कौर ने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। वह भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनीं। वे इस पद पर दस वर्षों तक रहीं। कपूरथला के पूर्व महाराजा के बेटे हरनाम सिंह की बेटी राजकुमारी अमृत कौर की शिक्षा-दीक्षा इंग्‍लैंड में हुई थी। 16 वर्षों तक वह महात्मा गांधी की सचिव रहीं और इसके लिए उन्होंने पढाई छोड़ दी। उन्होंने ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट की स्थापना की थी। उनका महिला शिक्षा, खेल और स्वास्थ्य विषयों पर समान रूप से अधिकार था। उन्होंने देश में ‘ट्यूबरकुलोसिस एसोसिएशन’, ‘सेंट्रल लेप्रेसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट’ का भी गठन किया था। संविधान निर्माण के दौरान स्वास्थ्य सेवा से जुड़े अहम विषयों पर उन्होंने अपनी बात रखी थी जिसे संविधान में शामिल भी किया गया। वे संविधान सभा की सलाहकार समिति व मौलिक अधिकारों की उप-समिति की सदस्य थीं। सभा में वह सेंट्रल प्राविंस व बेरार की प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई थीं।

3. अम्मू स्वामीनाथन
देश में जब संसद का निर्माण हो रहा था तब अम्मू स्वामीनाथन पहली संसद का हिस्सा थीं। केरल के पल्‍लकड़ जिले के आनकरा गांव के नायर परिवार में जन्मीं अम्मू को बचपन से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा। जब उनकी शादी पेशे से वकील विश्वनाथन से हुई तो उन्होंने मुखर जिंदगी जीने का सबब सीखा। तब अम्मू ने लैंगिक और जातिगत उत्पीड़न का हर स्तर पर विरोध किया। उन्होंने 1917 में वुमन इंडिया एसोसिएशन का निर्माण किया था, उनके साथ एनी बेसेंट भी जुड़ी थीं। उन्होंने चुनाव लड़ा और संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं। महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में उन्होंने हमेशा बात की। महिलाओं को समान कानूनी अधिकार दिलवाने के लिए डॉ. आंबेडकर के अथक प्रयासों के साथ खुद को उन्होंने पूरी ताकत के साथ जोड़ा। जब 24 नवंबर 1949 को  बी आर आंबेडकर संविधान के बारे में अपनी बात रख रहे थे तब आत्मविश्वास से लबरेज अम्मू ने कहा था- भारत के बारे में दुनिया वालों का कहना है कि भारत  में महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं दिया गया है, लेकिन अब हम कह सकते हैं कि भारतीयों ने अपना संविधान खुद बनाया है और दूसरे देशों की तरह अपने देश में भी महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया है। स्वतन्त्रता के बाद भी वह सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहीं। वह 1952 में लोकसभा और 1954 में राज्यसभा की सदस्य बनीं। उन्होंने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत काम किया। अम्मू स्‍वामीनाथन को आजाद हिंद फौज की सदस्‍य कैप्‍टन लक्ष्‍मी सहगल की मां के तौर पर भी जाना जाता है।

4. दुर्गा बाई देशमुख
1909 में आंध्र प्रदेश के राजामूंद्री में जन्मी दुर्गा बाई महज 12 साल की उम्र में असहयोग आन्दोलन में कूद गईं। उन्होंने 1930 में बापू के नमक सत्याग्रह आंदोलन में भी भाग लिया था। दुर्गा ने समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए भी संघर्ष किया। 1936 में उन्होंने आंध्र महिला सभा का निर्माण किया था। उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था से जुड़े मामलों में संविधान में अहम बातें जुड़वाई. वकील होने के नाते उन्होंने संविधान के कानूनी पहलुओं में योगदान दिया। वह शिक्षा और महिला से जुड़ी कई संस्थाओं से भी जुड़ी और उसकी अध्यक्षता भी की। उन्हें 1975 में पद्म विभूषण से भी नवाजा गया।

5. दक्षायनी वेल्याधन
दबे कुचले वर्ग की आवाज उठाने के कारण दक्षायनी को आंबेडकर ने संविधान के निर्माण के दौरान विशेष स्थान दिया था। वेल्याधन का जन्म 4 जुलाई, 1912 में कोचीन के बोलगट्टी  में हुआ था। वह पुलाया समुदाय से आती थीं। वह अपने समुदाय की पहली महिला थीं जो पढ़ी लिखी थीं और आधुनिक कपड़े पहना करती थीं। समाज के उपेक्षित वर्ग की आवाज उठाने के कारण दक्षायनी वेल्याधन को आंबेडकर ने संविधान के निर्माण के दौरान विशेष स्थान दिया था। भारत के दक्षिणी इलाकों में महिलाओं को शिक्षित करने के इरादे से उन्होंने ‘बालिका हिन्दी पाठशाला’ की शुरुआत भी की थी। 1945 में दक्षायनी को राज्य सरकार ने कोच्चि विधान सभा के लिए नामित किया था। 1946 में संविधान सभा के लिए चुनी गई वे इकलौती दलित महिला थीं। संविधान के निर्माण के दौरान दक्क्षयानी ने दलितों से जुड़ी कई समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया था।

6. कमला चौधरी
लखनऊ के जाने-माने घर में कमला चौधरी का जन्म हुआ, लेकिन उन्हें अपनी शिक्षा के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। अंग्रेज सरकार के लिए अपने परिवार की निष्ठा से अलग होकर वे राष्ट्रवादियों में शामिल हो गईं। वह 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाली महिलाओं में थीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार जेल में डाला। 1946 में मेरठ में हुए कांग्रेस के 54वें सम्मेलन में कमला चौधरी उपाध्यक्ष बनाई गई थीं। कमला चौधरी 1947 से 1952 तक संविधान सभा की सदस्य रहीं।

7. मालेरकोट्ला
आजाद भारत के संविधान सभा में शामिल होने वाली पहली मुस्लिम महिला थीं मालेरकोट्ला। 1908 में पंजाब के संगरूर जिले में जन्मी रसूल मालेरकोटला के शाही घराने से थीं और नवाब एजाज रसूल की बेगम थीं। देश विभाजन के बाद उन्होंने अपने पति एजाज के साथ 1950 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली। संविधान निर्माण के दौरान मालेरकोट्ला ने कई मुद्दों पर अपनी बात अंबेडकर को बताई, जिसे संविधान में शामिल भी किया गया। 1969-71 में वह सोशल वेलफेयर और अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री भी रहीं। सन 2000 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आजाद के साथ मिलकर धार्मिक आधार पर पृथक निर्वाचन की मांग का विरोध किया था। 1952 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वे 1969 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य रहीं।

8. हंसा मेहता
बड़ौदा के दीवान मनुभाई नंद शंकर मेहता की संतान हंसा ने इंग्‍लैंड से पत्रकारिता और समाजशास्त्र की पढ़ाई की थी। वह देश की प्रसिद्ध शिक्षाविद और लेखिका थीं। उन्होंने बच्चों के लिए गुजराती में कई किताबें लिखीं। उनकी अंग्रेजी में लिखी गुलिवर ट्रैवल्स खूब लोकप्रिय हुई थी। हंसा ने हैदराबाद में आयोजित ऑल इंडिया वुमेन कांफ्रेंस के अपने अध्यक्षीय भाषण में महिला के अधिकारों की बात की। संविधान सभा में मुंबई के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हंसा मेहता संविधान सभा की मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं। संविधान निर्माण के दौरान उन्होंने महिला अधिकारों के मुद्दों को संविधान सभा में उठाया, जिसे प्रमुखता से सुना गया और उसे संविधान में शामिल भी किया गया। 1945-1960 के बीच उन्होंने कई विश्वविद्यालयों में बड़े पदों पर काम किया। वे बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय की कुलपति भी रहीं। उन्‍हें संयुक्‍त राष्‍ट्र मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा में ‘ऑल मेन आर बॉर्न फ्री एंड इक्‍वल’ को बदलकर ‘ऑल ह्यूमन बीइंग आर बॉर्न फ्री एंड इक्‍वल’ करवाने के अभियान के लिए भी जाना जाता है।

9. लीला रॉय
2 अक्तूबर 1900 को असम के गोलपाड़ा में जन्मी लीला रॉय महिला अधिकारों के लिए शुरू से ही आवाज बुलंद करती रहीं। वह गिरीश चेंदिया नाग की बेटी थी, जो डक्का के जिला मजिस्ट्रेट के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने कलकत्ता में बेथ्यून कॉलेज में अंग्रेजी में ऑनर्स के लिए अध्ययन किया और वहां से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अपने छात्र के दिनों से ही उसने न्याय के लिए खड़े होने का साहस दिखाया। उसने बीथ्यून कॉलेज की प्रिंसिपल श्रीमती राइट को तिलक की तुलना कर्नल डायर से करने और उस दिन संस्था को बंद न करने के लिए चुनौती दी, जिस दिन तिलक की मृत्यु हो गई थी। उसने छात्रों को हड़ताल की धमकी दी। अंत में, प्रिंसिपल ने अपनी टिप्पणी के लिए खेद व्यक्त किया। ढाका विश्वविद्यालय में, वह मास्टर डिग्री के लिए अध्ययन करने वाली एकमात्र छात्रा थी। गांधी जी के साथ कई आंदोलनों में जुड़ने के बाद 1937 में  उन्होंने कांग्रेस में शामिल हुईं। लीला रॉय ने सुभाष चंद्र बोस की महिला सब-कमेटी की सदस्य रहीं। जब 1940 में सुभाष चंद्र बोस जेल गए तब वह फॉरवर्ड ब्लॉक वीकली की संपादक भी बनीं। देश छोड़ने से पहले नेताजी ने पार्टी का सारा कार्यभार लीला रॉय और अपनी पत्नी को सौंप दिया था। संविधान निर्माण में उन्होंने महिला के अधिकारों की बात जमकर उठाई। उनके योगदान  को भुलाया नहीं जा सकता है।

10. मालती चौधरी
मालती चौधरी का जन्म 1904 में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। गरीबों की मसीहा कही जानी वाली मालती नमक सत्याग्रह आंदोलन सहित कई आंदोलनों से जुड़ी रहीं। पूर्व बंगाल (अब बांग्लादेश) के समृद्ध परिवार में मालती का जन्म हुआ था। 16 साल की उम्र में मालती को विश्व भारती में पढ़ने के लिए शांतिनिकेतन भेजा गया था। मालती ने नबक्रुष्ण चौधरी से विवाह किया था, जो आगे चलकर ओडिशा के मुख्यमंत्री बने। 1933 में उन्होंने ‘उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्मी’ संघ का निर्माण किया। वे 1934 में गांधी जी की उड़ीसा पदयात्रा में उनके साथ जुड़ी। उपेक्षित समुदायों के विकास के लिए उन्होंने न केवल आवाज बुलंद की बल्कि उनकी आवाज भी बनीं। उन्होंने संविधान निर्माण के दौरान गरीबों की आवाज को भी रखा।

11. पूर्णिमा बनर्जी
आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाली कई कट्टरपंथी महिलाओं में से एक पूर्णिमा भी एक थीं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इलाहाबाद की सचिव बनीं और महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करती रहीं। 1930-40 में देश की आजादी से जुड़े कई आंदोलन का हिस्सा बनीं।  ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन और सत्याग्रह आंदोलन के कारण जेल भी गईं। संविधान सभा में पूर्णिमा बनर्जी के एक समाजवादी विचारधारा के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता दिखाई दी थी। संविधान के पारित होते ही काफी देर तक वंदे मातरम् और भारत माता की जय के नारों से केंद्रीय कक्ष गूंजता रहा था। इसके बाद पूर्णिमा बनर्जी ने राष्ट्रगान गाया था। जब वह गा रही थीं, तब वहां बैठीं अनेक हस्तियों की आंखें भींग गई थीं। पूर्णिमा जी स्वाधीनता सेनानी अरुणा आसफ अली की बहन थीं।  

12. रेणुका रॉय
 रेणुका रॉय ने 1934 में ‘लीगल डिसेबिलीटी ऑफ वुमेन इन इंडिया’ का गठन किया था। उन्होंने महिला के अधिकारों के लिए कई लड़ाइयां लड़ी और संविधान में महिलाओं की बात रखने में अहम योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए बात करते हुए कहा था कि पूरी दुनिया में महिलाओं की स्थिति अन्यायपूर्ण है।

13. सरोजिनी नायडु
 भारत कोकिला के नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू संविधान सभा की सदस्या थीं। वे संविधान सभा की पहली बैठक में मौजदू थीं। बंगाल विभाजन के दौरान ये कांग्रेस में शामिल हुईं और आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहीं। इनका जन्म हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 को हुआ और निधन 70 साल की उम्र में 2 मार्च 1949 को हुआ। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष होने वाली पहली भारतीय महिला थीं और उन्हें भारतीय गणराज्य में पहली महिला गवर्नर नियुक्त हुई थीं। उन्हें “नाइटिंगेल ऑफ इंडिया” कहा जाता है। उन्होंने लंदन के किंग्स कॉलेज से पढ़ाई की थी तथा महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थीं और उनके कई आंदोलनों से जुड़ी भी रही थीं।

14. विजयालक्ष्मी पंडित
विजयालक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को इलाहाबाद में हुआ था और वह भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। वह आजादी के दौरान 1932-1933, 1940 और 1942-43 में तीन बार जेल भी गईं। राजनीति में पंडित का लंबा करियर आधिकारिक तौर पर इलाहाबाद नगर निगम के चुनाव के साथ शुरू हुआ। 1936 में, वह संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुनी गईं, और 1937 में स्थानीय स्व-सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री बन गयीं- वह पहली भारतीय महिला कैबिनेट मंत्री थीं। सभी कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों की तरह, उन्होंने 1939 में ब्रिटिश सरकार की इस घोषणा के विरोध में इस्तीफा दे दिया कि भारत द्वितीय विश्व युद्ध में भागीदार है। सितंबर 1953 में, वह यूएन जनरल असेंबली की पहली भारतीय और एशियाई महिला अध्यक्ष चुनी गईं। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए काफी काम किया।

15. एनी मस्कराने
संविधान निर्माण में कुछ ऐसी महिलाएं भी शामिल रहीं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अहम योगदान निभाया, अंग्रेज़ों के आगे डटी रहीं, कई-कई बार जेल गईं और गरीबों-मजदूरों की भी आवाज बनीं। ऐसी ही थीं एनी मस्कराने। उनका जन्म केरल के तिरुवनंतपुरम से लैटिन कैथोलिक परिवार में हुआ था। वह त्रावणकोर राज्य कांग्रेस में शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से वह पहली महिला हैं जो त्रावणकोर प्रदेश कांग्रेस में शामिल हुईं थीं। आजादी की लड़ाई में वे कई बार जेल भी गईं। एनी भारत की  पहली महिला हैं जिन्होंने लोकसभा में महिलाओं की उपस्थिति दर्ज कराई। वह न केवल चुनाव लड़ीं बल्कि जीतीं भी। केरल से पहली सांसद बनने का गौरव भी एनी को ही जाता है। वह दस वर्षों तक सांसद रहीं। एनी 1949 से 1950 के बीच कुछ महीनों के लिए स्वास्थ भी मंत्री रहीं। भारत से त्रावणकोर राज्य के समन्वय में एनी की अहम भूमिका थी।  1951 में हुए भारत के पहले आम चुनाव में वे केरल से पहली महिला सांसद चुनी गई थी।

16. रेणुका रे
वह एक आईसीएस अधिकारी सतीश चंद्र मुखर्जी और अखिल भारतीय महिला कांफ्रेंस (एआईडब्ल्यूसी) की एक सामाजिक कार्यकर्ता और सदस्य चरुलता मुखर्जी की बेटी थीं। युवा दिनों में रेणुका लंदन में रहीं और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए किया। 1934 में एआईडब्ल्यूसी के कानूनी सचिव के रूप में, उन्होंने ‘भारत में महिलाओं की कानूनी अक्षमता’ नामक एक दस्तावेज़ प्रस्तुत किया। इसने शारदा विधेयक के प्रति  एआईडब्ल्यूसी की निराशा को स्पष्ट किया और भारत में कानून के समक्ष महिलाओं की स्थिति की कानूनी समीक्षा को सामने रखा।  रेणुका ने कॉमन सिविल कोड के पक्ष में वकालत की और कहा कि भारतीय महिलाओं की स्थिति दुनिया में सबसे अन्यायपूर्ण स्थितियों में से एक है। 1943 से 1946 तक वह केन्द्रीय विधान सभा, बाद में संविधान सभा और अनंतिम संसद की सदस्य थी। 1952-57 में, उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास मंत्री के रूप में कार्य किया। 1957 में और फिर 1962 में, वह लोकसभा में मालदा से सदस्य थीं। वह 1952 में एआईडब्ल्यूसी की अध्यक्ष भी थीं, योजना आयोग की सदस्य और और शांति निकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी की सदस्य रहीं। उन्होंने अखिल बंगाल महिला संघ और महिला समन्वयक परिषद की स्थापना की।