केरल के कोल्लम की रहने वाली 61 वर्षीय सुबैदा के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो कोविड से लड़ाई में मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में दान कर सकें। इसके लिए उन्होंने अपनी छह बकरियां बेचकर दान किया और जरूतमंदों को मदद भी की।
नई दिल्ली। मदद के लिए उम्र या तजुर्बा नहीं हौसला चाहिए। फिर चाहे समय कोई भी हो। कुछ ऐसा ही हौसला केरल के कोल्लम की रहने वाली वृद्धा सुबैदा ने भी दिखाया। कोरोना की इस लड़ाई में सरकार को देने के लिए उनके पास कुछ नहीं था, तो उन्होंने अपनी बकरियां बेचकर मुख्यमंत्री राहत कोष में दान दिया, बल्कि कोरोना की मार से जूझ रहे गरीब और असहाय लोगों की भी मदद की।
केरल के कोल्लम की रहने वाली 61 वर्षीय सुबैदा ने सीएमडीआरएफ (मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष) में दान देकर सुर्खियां बटोरी हैं। उसने अपने राज्य के टीकों के लिए क्राउडफंडिंग में मदद करने के लिए अपनी बकरियां बेचीं। साथ ही गरीब व असहाय लोगों को जरूरत की चीजें भी दान कीं। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली सुबैदा पशुपालन से अपने तीन सदस्यीय परिवार का गुजारा करती हैं। वह केरल के कोचुपिलमूडु में कोल्लम पोर्ट ऑफिस के पास अपने घर के बगल में स्थित एक चाय की दुकान चलाती हैं। हालांकि कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए, सुबैदा बकरियां भी पाल रही हैं। जब देश महामारी की चपेट में आया, तो उसने अपनी 20 बकरियों में से दो को बेच दिया और पैसे सीएमडीआरएफ को दान कर दिए। इस साल सुबैदा ने और चार बकरियां बेचीं और सोशल मीडिया पर केरलवासियों द्वारा शुरू किए गए क्राउडफंडिंग 'वैक्सीन चैलेंज' के हिस्से के रूप में न केवल सीएमडीआरएफ को दान दिया, बल्कि चावल और अन्य आवश्यक उत्पाद भी खरीदे और उन्हें गरीबों में वितरित किया। उनके असाधारण योगदान के लिए, सुबैदा को केरल के नए मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया गया था। सुबैदा उन प्रेरणादायक महिलाओं में से हैं, जिनसे हमें सीख लेनी चाहिए कि मुसीबत के समय में हस समाज के कैसे काम आ सकते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.