आगरा में महिला थाना प्रभारी के पद पर कार्यरत्त अलका सिंह अच्छी खासी डाक विभाग में नौकरी कर रही थीं, एक दिन टीवी पर पूर्व आईपीएस किरण बेदी की स्टोरी चल रही थी, तो पिता ने कहा कि नौकरी तो पुलिस की है, मेरा सपना है कि तू पुलिस की अफसर बने। अलका ने पिता के इसी सपने को पूरा कर दिखाया।
आगरा। सपने देखना अच्छी बात है और उससे अच्छी बात है माता-पिता के सपने को पूरा करना। आगरा की महिला थाना प्रभारी अलका सिंह ने सरकारी नौकरी करने का सपना देखा था और पढ़-लिखकर उस सपने को पूरा भी किया और डाक विभाग में नौकरी करने लगीं। लेकिन पिता का सपना था कि बिटिया पुलिस अफसर बने और रौब और ईमानदारी से काम करते हुए अपनी पहचान बनाए। फिर क्या था अलका ने पिता की बातों को गंभीरता से लिया और पुलिस अफसर बनकर पिता के की उम्मीदों को पूरा कर पुलिस अफसर बनकर दिखा दिया कि बेटियां किसी से कम नहीं हैं।
पिता ने कहा था कि मेरा सपना है कि तू पुलिस बने
मूल रूप से संभल मुरादाबाद की अलका सिंह के पिता उत्तराखंड के चमौली में पीडब्ल्यूडी में नौकरी करते थे। अलका की शिक्षा उत्तराखंड में ही पूरी हुई। पिता और अलका के बीच ट्यूनिंग बेहद अच्छी थी। एक बार टीवी पर चल रहे सीरियल उड़ान में पूर्व आईपीएस किरण बेदी की सफलता की कहानी को दिखाया जा रहा था। पिता-बेटी दोनों इसे देख रहे थे। इसी बीच पिता ने अलका से कहा कि बेटा नौकरी तो पुलिस की है, मेरा सपना है कि तू पुलिस अफसर बने। पिता की बात सुनकर अलका मुस्कुरा दीं। जिस समय पिता ने अलका को ये बात कही, अलका डाक विभाग में अच्छे पद पर कार्यरत्त थीं। पिता की कहीं बातों को अलका ने मन में रखा और फिर शुरू किया पुलिस अफसर बनने का सफर।
रिश्तेदारों ने रोका-टोका पर अलका नहीं रूकीं
डाक विभाग में नौकरी करते हुए अलका ने पुलिस अफसर बनने के लिए तैयारी शुरू कर दी। जब जानकार और रिश्तेदारों को इसकी भनक लगी, तो उन्होंने अलका को और परिवारवालों को समझाया कि अच्छी भली नौकरी चल रही है क्यों बेवजह के चक्कर में पड़ना। उनको कई तरह के भय भी दिखाए गए कि पुलिस को तमाम परेशानियों से जूझना पड़ना है, न दिन का चैन है न रात की नींद पूरी होती। लेकिन इन सबको नजरअंदाज करते हुए अलका तैयारियों में जुटी रहीं। 1991 में पुलिस में नौकरी निकली। जिले में पहली महिला थी जिसने पुलिस की परीक्षा पास की। 1996 में इंटरव्यू और वर्ष 1998 में भर्ती हुई। पिता की मौत के एक साल बाद नियुक्ति पत्र आया। उनकी अंतिम इच्छा समझकर पुलिस की नौकरी कर ली, लेकिन परिवार में कोई इस नौकरी को सही नहीं मान रहा था। परिजन मेडिकल परीक्षण में ले जाने के लिए भी तैयार नहीं थे। बाद में किसी तरह उन्हें समझाया। मैं उस इलाके से थी, जहां से लड़कियां काफी कम बाहर पढ़ने और नौकरी के लिए जाती थीं। विभाग में आने पर काम करने में दिक्कत आती थी। डर लगता था कि कैसे बाहर निकल पाएंगे। देर रात तक ड्यूटी कैसे देंगे। मगर, चुनौतियों का सामना करते हुए सब सीख लिया। कई थानों में प्रभारी बनकर रहीं अलका अलका सिंह फिलहाल आगरा में प्रभारी, महिला थाना हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.