कानपुर की सीडीपीओ अनामिका सिंह नेशनल जूडो गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी हैं। एक खिलाड़ी की तरह कभी न हार मानने के उनके जज्बे ने बाल-कुपोषण के खिलाफ जंग छेड़ी और सफल भी हुईं। पर उनका मानना है कि जंग को जारी रखना है, जिससे कुपोषित बच्चों की संख्या कम हो जाए।
कानपुर। अक्सर कहा जाता है कि सरकारी अधिकारी समाज सेवा या समाज के लिए कुछ करने की कोशिश नहीं करते क्योंकि उनकी तनख्वाह इतनी होती है कि वो अपने बारे में ही सोचते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश की एक बाल विकास परियोजना अधिकारी अनामिका सिंह ने अपनी लगन और मेहनत कुछ ऐसा कर दिखाया कि कानपुर में कुपोषित बच्चों की संख्या सोलह सौ से घटकर मात्र तीन सौ पचास पर आ गई है। अभी हाल ही में भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम की नई साझा रिपोर्ट 'खाद्य एवं पोषण सुरक्षा विश्लेषण, भारत 2019' ने हमारे देश के एक बड़े हिस्से में बाल भुखमरी और कुपोषण की स्थिति को उजागर किया है। इसी बीच अनामिका सिंह जैसी अधिकारियों की कोशिशों के चलते ही देश में पिछले कुछ वर्षों में गंभीर कुपोषण पीड़ित बच्चों का अनुपात 48 प्रतिशत से घटकर 38.4 प्रतिशत रह गया है।
कुपोषण को रोकने के लिए अनामिका सिंह ने जो आइडिया अपनाये उसकी तारीफ भी हो रही है और उनकी मेहनत रंग भी ला रही है। बाल कुपोषण को कम करने के लिए अनामिका ने कई प्रयोग किए मसलन, वजन दिवस, सुपोषित मेला, लाल, पीले, हरे रंग के कागजों के माध्यम से परिजनों को समझाने के लिए, ज्यादा कुपोषित, कम कुपोषित और स्वस्थ बच्चों का अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकरण। इसके साथ ही कुपोषित बच्चों के लिए विशिष्ट किस्म के सस्ते आहार की व्यवस्थाएं। जैसे कि पहला कौर कन्या का हो, कुपोषित बच्चों को रोजाना सादे चावल-दाल में एक चम्मच कड़वा तेल मिलाकर खिलाना, गर्भवती महिलाओं के आहार में मेथी, पालक, बथुआ, सरसों, अंकुरित दाल, पत्तेदार सब्जी और गुड़ की अधिकतम मात्रा। "नेशनल फॅमिली हेल्थ के ताज़ा सर्वे के मुताबिक, कानपुर में 06 माह से 05 वर्ष तक के 73.6 फीसदी बच्चों और 15 से 49 वर्ष तक की 58.7 फीसदी महिलाओं में खून की कमी पाई गई है। इनमें 59.4 फीसदी सामान्य और 45.2 फीसदी गर्भवती महिलाओं में भी खून की न्यूनता रही है।"अनामिका सिंह की इन कोशिशों के जब नतीजे सामने आए, कानपुर के आला अधिकारी तक भौचक्के रह गए। वर्ष 2017 में अति कुपोषित बच्चों की संख्या 1600 थी, जो घटकर 350 रह गई। तिवारीघाट, गुड़ियाना, भैरोंघाट समेत 13 केंद्र कुपोषण मुक्त हो गए यानी इन केंद्रों की परिधि में एक भी बच्चा कुपोषित नहीं रह गया। ब्लाक के ढाई सौ केंद्रों में से 134 में सिर्फ एक-एक बच्चा कुपोषित मिला। इससे पहले अनामिका सिंह ने जिले के बाल पोषण एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों का उच्चीकरण कराने के साथ ही ‘पहला कौर कन्या का’ कार्यक्रम कुपोषित बच्चे-बच्चियों को दही, जलेबी खिलाकर शुरू कराया। उसके बाद सुनियोजित तरीके से नवरात्र में बेटियों को नौ दिन की बजाए 15 दिन तक लगातार पुष्टाहार दिए गए। उधर, 'दस्तक' अभियान चलाकर कुपोषित बच्चों के परिजनों को इस नवाचार से लगातार आगाह किया जाता रहा। जिले में हर महीने गर्भवती महिलाओं और कुपोषित बच्चों का 'वजन दिवस' मनाया जाने लगा। बच्चों, किशोरियों एवं गर्भवती महिलाओं को कुपोषण से बचाने के लिए हर माह के पहले बुधवार को एएनएम उपकेंद्रों और आंगनवाड़ी केन्द्रों पर सुपोषण स्वास्थ्य मेले लगने लगे। इस दौरान अनामिका सिंह ने जिले की एएनएम, आंगनवाड़ी, सहायिका, आशा, बच्चो, किशोरियों, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को कुपोषण विरोधी मिशन से आगाह किया। इन मेलों में पोषाहार के साथ ही, बच्चों के 'गुड टच', 'बैड टच', साथ ही उन्हे हाथ धोने के महत्व बताए जाते हैं। नवजात शिशुओं के टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं के प्रसव पूर्व परीक्षण के लिए मेले स्वास्थ्य एवं पोषाहार से संबन्धित स्टॉल लगाए जाते हैं।
अनामिका का बचपन भी कानपुर में गुजरा। खेल में ललक के कारण उन्होंने जूडो में हाथ आजमाया। नेशनल लेवल पर खेलीं भी। एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीय जूडो मुकाबलों में भाग लेने के साथ ही लगातार दस साल तक स्टेट लेवल पर कई गोल्ड मेडल जीते। जूडो में देश की सबसे कम उम्र की पहली महिला कोच बनीं। जब यूपी जूडो एसोसिएशन की एक मीटिंग में मलिहाबाद (लखनऊ) में अनामिका को कुछ पुलिस अधिकारियों की फटकार का सामना करना पड़ा तो खुद अफसर बनने के लिए सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगीं। उसके बाद वह 2015 में सीडीपीओ सेलेक्ट हो गईं और अगले साल पहली पोस्टिंग कानपुर में ही मिल गई। वह कहती हैं कि अब तो कुपोषण की पूरी तरह समाप्ति हो जाने तक उनकी यह जंग जारी रहेगी क्योंकि हमारे देश के बच्चे ही भारतीय समाज का भविष्य हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.