केरल के माता अमृतानंदमयी मठ की संस्थापक अमृतानंदमयी ने सौख्यम रियूजेबल पैड लांच किया है। इस पैड की रिसर्चर और डायरेक्टर अंजू बिष्ट ने इसे महिलाओं की सुरक्षा और पर्यावरण को ध्यान में रखकर तैयार किया है।
नई दिल्ली। पीरियड्स के समय महिलाओं को तमाम तरह की परेशानी से गुजरना पड़ता है। देश के कई हिस्से तो ऐसे हैं, जहां महिलाएं गरीबी के कारण पैड खरीद ही नहीं पातीं और अनचाहे में बीमारी को गले लगा लेती हैं। ऐसी ही महिलाओं को ध्यान में रखकर केरल के माता अमृतानंदमयी मठ के संस्थापक अमृतानंदमयी ने महिलाओं के लिए सौख्यम रियूजेबल पैड तैयार किया है, जिसकी देश और दुनिया में तारीफ भी हो रही है और उनके इस प्रयास से 875 टन से भी अधिक नॉन-बायोडिग्रेडेबल मेंसुरल वेस्ट को कम किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों की हजारों महिलाएं इसका उपयोग कर रही हैं।
महामारी में इस्तेमाल होने वाला पैड गरीबी के कारण कई महिलाओं के लिए खरीदना मुश्किल होता है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं इसे डिस्पोज करने की शर्म के कारण इस्तेमाल करने से बचती हैं। वहीं पैड में प्लास्टिक होने के कारण ये पर्यावरण के लिए समस्या भी है। महिला स्वास्थ्य और प्रदूषण को कम करने के लिए 2017 में माता अमृतानंदमयी मठ के संस्थापक अमृतानंदमयी ने सौख्यम रियूजेबल पैड्स लांच किया। केले के रेशों से बनने वाला ये पैड पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए सही है।
मिले कई अवार्ड
इस अनोखे प्रयास ने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार जीते हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण संस्थान की तरफ से मोस्ट इनोवेटिव प्रोडक्ट का अवार्ड, 2018 में पोलैंड के अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सम्मलेन तारीफ, 2020 में सोशल इंटरप्राइज ऑफ द इयर अवार्ड आदि शामिल हैं।
अंजू के हाथ में है कमान
18 सालों से संस्था से जुड़ी अंजू बिष्ट सौख्यम की डायरेक्टर और रिसर्चर हैं। वह कहती हैं कि सालों से महिलाओं और लड़कियों को मासिक धर्म की में पैड्स की समस्या है जिसके बारें में अधिक चर्चा नहीं की जाती, क्योंकि ये सोशल स्टिग्मा है। ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियां मासिक धर्म के बाद गांव में सही विकल्प न होने की वजह से पढाई छोड़ देती है। वह कहती हैं कि हमारी टीम ने इस विषय में सोचा कि पैड्स कैसे बनाई जाय, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में पैड्स का कचरा फैलाना ठीक नहीं, साथ ही पैड्स में प्रयोग किये गए कागज के लिए पेड़ काटनी पड़ती है, ऐसे में सेल्यूलोसफाइबर, जो पैड में रक्त सोखने का काम करती है,वह केले के रेशों में आसानी से मिल जाती है, ये कम लोग ही जानते थे तो हमने इस दिशा में काम में काम शुरू किया। भारत, में केले का उत्पादन विश्व में सबसे अधिक होता है और केले के पेड़ को एक बार फल लगने के बाद काट दिया जाता है, तो हमने उन पेड़ों से फाइबर और सेल्यूलोस निकालना शुरू किया और पेड बनाने की दिशा में काम शुरू हुआ। पैड्स बनाने समय सोचा गया कि क्यों न ऐसा पैड बनाया जाए, जो एक बार प्रयोग के बाद दोबारा बनाया जाए और इसपर काम किया और आज ये अच्छा चल रहा है। वह बताती हैं कि बाकी पैड्स में रक्त को सोखने के लिए कपडा होता है, जबकि सौख्यम में रक्त सोखने के लिए केले का फाइबर होता है।
ऐसे तैयार कराती हैं पैड
अंजू बताती है कि ‘बनाना फाइबर’ एक्सट्रेक्टर एक मशीन के द्वारा फाइबर निकाली जाती है। ब्रश से साफ कर उसे मशीन के द्वारा वजन कर 6 ग्राम केले का रेशा डे पैड के लिए और 9 ग्राम नाईट पैड के लिए अलग-अलग किया जाता है। इसकी शीट्स बनाकर पूरी रात दबाकर रखते है, फिर कपडे़ की परत में डालकर उसे सिलाई की जाती है। ये रियूजेबल पैड्स है और महंगे नहीं होते, इसलिए इसे महिलाएं अधिक खरीदती है। इस काम में कुछ वोलेंटियर्स अपने समय के हिसाब से आते-जाते रहते है और 9 वर्कशॉप के लिए काम करते है, जो देश कई राज्यों जैसे चेन्नई, बंगलुरु, हैदराबाद आदि जगहों पर जाते है, क्योंकि महिलाओं को इस पैड के बारें में पता नहीं है। इसमें ग्रामीण महिलाएं अधिक काम करती है। अंजू हर राज्य में इन पैड्स को पहुचाये जाने की कोशिश कर रही है। अभी जम्मू, राजस्थान, उत्तराखंड आदि जगहों और ऑनलाइन पर भी उपलब्ध है। इसके लिए वह छोटे-छोटे व्यवसाय करने वालों की नेटवर्क बनाकर पैड्स देने वाली है, ताकि ऐसे व्यवसायी अपने क्षेत्र में इसे कम दाम में उपलब्ध करवा सकें।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.