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अनु से वो बन गईं अनु मां

Published - Fri 21, Feb 2020

उतर प्रदेश की रहने वालीं डॉ. अनुभूति भटनागर एक आर्टिस्ट हैं। प्यार से बच्चे उन्हें अनु मां कहकर बुलाते हैं। उन्होंने अपना करियर दांव पर लगाकर गरीब बच्चों का भविष्य सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

anubhuti

नई दिल्ली। बेसहारा व गरीब बच्चों की ओर लोग देखना भी जरूरी नहीं समझते। वो बस यूं ही समाज की उपेक्षा झेलते रहते हैं, लेकिन इन बच्चों का भविष्य संवारने के लिए अनुभूति भटनागर ने अपना करियर दांव पर लगाया और निकल पड़ी इनकी किस्मत संवारने। अनुभूति मूल रूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं। नागरिक शास्त्र में पीएचडी करने वाली अनुभूति एक आर्टिस्ट भी हैं। वो अपनी ट्यूशंस और आर्ट एग्जीबिशन से ठीकठाक पैसा कमा रहीं थीं। शादी के बाद वो जयपुर शिफ्ट हो गईं। शादी के बाद भी उनके मन में ये चलता रहता है कि गरीब व असहाय बच्चों की मदद कैसे की जाए, उन्होंने स्लम में रहने वाले व स्कूल ड्राप करने वाले बच्चों का के लिए काम करने की सोची। उसके बाद उन्होंने रिसर्च की वे कई बच्चों से मिली उनसे पूछा कि उन्होंने पढ़ाई क्यों छोड़ दी इसमें ज्यादातर बच्चों का एक ही जवाब था कि उनका पढ़ाई में मन नहीं लगा। रिसर्च के दौरान उन्होंने पाया कि जिन स्कूलों में ये बच्चे जाया करते थे उनमें किसी तरह को कोई एक्सट्रा – कोकरिकुलर एक्टिविटी नहीं थी। बच्चे आते थे, उनको उनके टीचर पढ़ाते और फिर उनकी छुट्टी हो जाती थी और इस कारण बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। इसके अलावा गरीबी और पारिवारिक माहौल भी बच्चों के स्कूल छोड़ने के पीछे एक मुख्य कारण था क्योंकि इन बच्चों के घर में पढ़ाई का बिलकुल भी माहौल नहीं था। रिसर्च के दौरान ही एक चौंकाने वाला सच भी सामने आया कि ज्यादातर क्रिमनल केसिज विशेषकर चोरी व झपटमारी में इसी कम्यूनिटी के बच्चे सबसे ज्यादा इनवॉल्व थे और इसका मुख्य कारण यही था कि इन बच्चों की काउंसलिंग नहीं हो पा रही थी।

अनुभूति ने बदलाव की ठानी
अनुभूति ने 2012 में अंडर प्रिवलेज्ड सोसाइटी के बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया। 2013 में अनुभूति ने अपना एनजीओ नियो फ्यूजन क्रियेटिव फाउंडेशन रजिस्टर करवाया। अनुभूति ने शुरूआत जयपुर से की। वहां पर एक प्रोग्राम शुरू किया जिसका नाम है ‘’सपने हुए अपने’’  कार्यक्रम के अंतर्गत जो भी सपने बच्चों ने देखे हैं उन्हें अनुभूति और उनकी टीम पूरा करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा परफार्मिंग और विजुअल आर्ट्स में उनकी स्किल डेवलप करवाई जाती है। बच्चों को डांस, पेंटिग, परफॉर्मिंग आर्ट्स की अच्छी ट्रेनिंग देने के लिए कई प्रोफेश्नल टीचर्स को भी अनुभूति ने हॉयर किए हुए हैं जो बच्चों को बारीकी से चीजों को समझाते हैं। ये एक तरह का इंस्टीट्यूट है जहां पर बच्चों को मुफ्त में ट्रेनिंग दी जाती है। 11 से 18 साल के बच्चों के साथ ये लोग काम कर रहे हैं।
जयपुर से गुरुग्राम तक का सफर
जयपुर से अनुभूति गुरुग्राम आ गईं। यहां उनके घर के पास एक साईं मंदिर है, जहां भीख मांगने वाले बच्चे बैठे रहते हैं। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जिनके मां-बाप मजदूर हैं और वो मंदिर में अपने बच्चों को इसलिए छोड़ जाते हैं, कि मंदिर में बैठे रहें और शाम को आकर उन्हें ले जाएं। यहां बच्चों को खाना आदि भी मिल जाता है इसलिए भी मजदूरों के बच्चों की संख्या यहां ज्यादा रहती है। इन बच्चों के साथ अनुभूति ने काम करने की सोची और  मंदिर के पार्क में ही वे बच्चों को ट्रेनिंग देने लगीं लेकिन इस मंदिर के लोगों ने ऑबजेक्शन किया क्योंकि पार्क की घास खराब हो रही थी। उसके बाद पास में ही एक बड़ा पार्किंग लॉट था जहां पर रात को गाडियां खड़ी होती थी यहां पर काफी मिट्टी थी व जगह काफी ऊंची नीची थी। अनुभूति ने इस जगह को समतल करवाया यहां पर पानी डलवाया और बच्चों की प्रेक्टिस करने योग्य बनाया। यहां वो बच्चों की स्किल डेवलप करती हैं। आज जयपुर सेंटर में बच्चों की संख्या 75 है वहीं गुरूग्राम में आने वाले बच्चों की संख्या 65 है।