Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

राखी ने नन्हें हाथों से खूंखार पंजों को दी मात, बनी बहादुरी की मिसाल

Published - Thu 02, Jan 2020

मैं उस दिन बिल्कुल भी नहीं डरी। मेरी पीठ पर भाई था, जिसे बचाने को मैं उसकी ढाल बन गई। गुलदार ने मुझ पर काफी देर तक वार किए, लेकिन मैंने भाई को एक खरोंच तक नहीं आने दी। जाबांजी की यह कहानी है उत्तराखंड की बहादुर बेटी राखी की, जिसे अमर उजाला ने किया सलाम, राष्ट्रपति देंगे वीरता सम्मान।

Rakhi

देहरादून। 'डर के आगे जीत है।' यह संवाद हमने किताबों के किस्से-कहानियां में खूब पढ़ा है। हां, इसे फिल्मी डायलॉग के तौर पर भी खूब सुना है। लेकिन उत्तराखंड की एक बहादुर बिटिया ने इस संवाद को सच कर दिखाया। 11 साल की राखी ने अपने नन्हें हाथों से खूंखार पंजों को मात देते हुए बहादुरी की मिसाल पेश की। ‘मत थर-थर-थर-थर कांपों तुम, इस अवसर को अब भांपों तुम, ये वक्त तुम्हें है पुकार रहा....है वही सिकंदर जीवन का, बहादुरी से जिसकी प्रीत है, ज्ञान यही है जीवन का कि डर के आगे ही जीत है।’ इस कविता की लाइनें कोटद्वार के दुरस्थ गांव देव कुंडई की बहादुर राखी के जीवन पर एकदम सटीक बैठती हैं। वही राखी, जिसने नन्हें हाथों से खूंखार पंजों से मात देकर अपने भाई को काल के मुंह से छीन लिया। बुधवार को अपने भाई राघव के पहुंची बहादुर राखी को अपराजिता कार्यक्रम में अमर उजाला ने सम्मानित किया।
कार्यक्रम के दौरान राखी ने चार माह पहले अपने भाई के काल से हुई लड़ाई की कहानी भी बताया। 11 वर्षीय राखी घटना को याद कर आम आदमी की तरह सहमती नहीं हैं। बल्कि, बेबाक तरीके से बयां करती हैं। राखी ने कहा, मैं उस दिन बिल्कुल भी नहीं डरी। मेरी पीठ पर भाई था, जिसे बचाने को मैं उसकी ढाल बन गई। गुलदार ने मुझ पर काफी देर तक वार किए, लेकिन मैंने भाई को एक खरोंच तक नहीं आने दी। गांव वालों के शोर मचाने पर जब गुलदार भागा तो मैं बेहोश हो गई। राखी की बहादुरी की कहानी को सुनकर कार्यक्रम में आईं उसकी हमउम्र बच्चियों ने तालियां बजाकर उसका उत्साहवर्धन भी किया। गुलदार के हमले में घायल राखी के सिर और पीठ पर कुल 45 टांके आए हैं। वर्तमान में वह पूरी तरह ठीक है।
कार्यक्रम के दौरान राखी की दादी विमला देवी भी मौजूद थीं, जिन्होंने अपने गांव और आसपास में गुलदार की दहशत के बारे में भी बताया। इस परिचर्चा में उन्होंने ऐसे खूंखार जानवरों को मारने के संबंध में बने कानूनों की निंदा भी की। उन्होंने बताया कि किस कदर क्षेत्र में गुलदार के नाम से ही लोग सहम जाते हैं। लेकिन, उनकी पोती ने जो किया वह पूरे पहाड़ ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणादायक है। ऐसे में अब सरकार को सोचना चाहिए कि वन्य जीवों और मानव के बीच बढ़ते संघर्ष को रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाएं। इस अवसर पर साक्षी नेगी, शगुन नेगी, स्वास्तिका सती, अनवी सती, गुंजन भटराई, गौरी शर्मा, अतान्या, अनवी, श्रेया शर्मा बच्चियां भी उपस्थित रहीं।

गुलदार को मारो जेल मैं जाऊंगी: विमला देवी
राखी की दादी 70 वर्षीय विमला देवी ने कहा कि गुलदारों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि अब उन्हें मारने पर सजा नहीं होनी चाहिए। यदि ऐसी बात भी है तो उस गुलदार को मारो और यदि जेल भी जाना पड़ा तो मैं जाऊंगी। कम से कम किसी मां की गोद से बच्चे को तो वह निवाला नहीं बनाएगा।

राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस पर करेंगे राखी को सम्मानित
बहादुर राखी को इस साल के नेशनल ब्रेवरी अवार्ड के लिए चुना गया है। गणतंत्र दिवस पर भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद नेशनल ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित करेंगे।