जीवन में कई कठिनाइयों को पार करते हुए सावित्रीबाई फूले बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्या रीमा डे न केवल अपराजिता बनी बल्कि अपने शिक्षण और उत्साहवर्धन से कई सौ छात्राओं का भविष्य उज्जवल बना चुकी हैं।
ग्रेटर नोएडा। लड़कियां यदि हौसला नहीं हारे और लगातार लक्ष्य के लिए मेहनत करती रहें तो एक दिन उनको वह मुकाम जरूर हासिल होता है। जीवन में कई कठिनाइयों को पार करते हुए सावित्रीबाई फूले बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्या रीमा डे न केवल अपराजिता बनी बल्कि अपने शिक्षण और उत्साहवर्धन से कई सौ छात्राओं का भविष्य उज्जवल बना चुकी हैं। उन्होंने अमर उजाला के अपराजिता-100 मिलियन स्माइल्स अभियान की सराहना की।
कोलकाता में जन्मी रीमा डे जब 5 वर्ष की थीं तब उनके पिता रविंद्र नाथ बिस्वाश का देहांत हो गया। मां चंपा बिस्वाश ने घर का बोझ उठाकर इकलौती लड़की रीमा को अकेले ही पाला-पोसा। बचपन से ही दरवाजे पर चॉक से लिखकर शिक्षिका बनने की आस पाले हुए थीं। हमेशा अपनी कक्षा में टॉपर रहीं रीमा जब 8वीं में थीं तो उन्होंने चौथी कक्षा के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। कोलकाता के नामी प्रेसिडेंसी कॉलेज में ह्यूमन फिजियोलॉजी में एमएससी करने के लिए वह बस से प्रतिदिन करीब 90 (45 आना-45 जाना) किलोमीटर का सफर करती थीं। सुबह निकल जाना और देर शाम को घर पहुंचना होता था, फिर भी उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा। वर्ष 1982 में उन्होंने बीएड किया और कोलकाता में ही जेजे अजमेरा स्कूल में शिक्षिका बन गईं।
मिल चुका है यंग टीचर अवॉर्ड
स्कूल में उनको यंग टीचर अवार्ड भी मिला। इस दौरान अमेरिका में पीएचडी करने के लिए स्कॉलरशिप मिली लेकिन आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग करने वाली पीके देव से शादी के तुरंत बाद यह ऑफर मिलने पर उन्होंने यह मौका जाने दिया। पति के साथ वह दिल्ली आ गईं और डीएवी स्कूल आरकेपुरम में शिक्षण करने लगीं। उन्होंने गेट परीक्षा पास की तो आईआईटी दिल्ली में पीएचडी का मौका मिला लेकिन उनको बेटा होने और उसके पालन-पोषण की वजह छोड़ना पड़ा।
आर्मी स्कूल में भी दी सेवा
कुछ समय बाद में उन्होंने नोएडा के आर्मी पब्लिक स्कूल में पढ़ाने का मौका मिला। यहां उन्होंने कई वर्ष तक सेवा की और वाइस प्रिंसिपल के पद पर भी रहीं। 2010 में कासना में सावित्री बाई फुले बालिका इंटर कॉलेज में मौका मिला तो प्रधानाचार्या पद के लिए साक्षात्कार दिया और चुनी गईं। उनको लगा कि वह सरकारी स्कूल में अपने प्रयासों से ग्रामीण छात्राओं को आगे बढ़ा सकती हैं। ग्रामीण अंचलों से आने वाली छात्राओं को बेहतर शिक्षण के लिए उन्होंने पूरा ध्यान दिया। स्कूल में उन्होंने छात्राओं को शिक्षण के साथ-साथ खेल, नृत्य, गायन समेत अन्य गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया। देशभर में दो बार यहां की छात्राओं को जापान जाने के लिए स्कॉलरशिप के लिए चुना गया। शिक्षण क्षेत्र में उनके प्रयासों के लिए उन्हें सीबीएसई से अवार्ड मिला। इसके अलावा उत्तर प्रदेश नारी सुरक्षा अवार्ड, समेत उन्हें कई अवार्ड मिले हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.