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हम कश्मीरी बेटी बनी रहेंगी और हमारे हक सलामत रहेंगे

Published - Fri 09, Aug 2019

दिल्ली में ब्याही गई कश्मीर की बेटी रूचि खन्ना की जिंदगी अनुच्छेद 370 और 35 ए हटते ही बदल गई है। बेहद खुश रूचि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का आभार प्रकट करते नहीं थक रही हैं।

kashmiri daughter

कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने की खुशी कश्मीर की महिलाओं को सबसे ज्यादा है। क्योंकि इस कानून ने कश्मीर की बेटियों की आजादी छीन ली थी और अब इसके हटते ही उनको सारे अधिकार मिल गए हैं। कश्मीर की बेटियां अब बाहरी राज्यों में शादी करने के बाद अपने पुश्तैनी हक से दूर नहीं होंगी। वे फिर से कश्मीर की बेटियां कहलाएंगी और सबसे बड़ी बात कि उनके सभी हक अब सलामत रहेंगे।

दिल्ली में ब्याही गई कश्मीर की बेटी रूचि खन्ना की जिंदगी अनुच्छेद 370 और 35 ए हटते ही बदल गई है। बेहद खुश रूचि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का आभार प्रकट करते नहीं थक रही हैं। कहती हैं, पिता की बहुत लाडली थी। पढ़ने में बहुत होशियार थी। संपन्न पिता ने शादी के पहले ही सेब का एक गार्डन जन्मदिन पर गिफ्ट उपहार में दिया था। दिल्ली में हायर स्टडी करने आई तो मोहित खन्ना से प्यार हो गया। परिवार के खिलाफ जाकर शादी की तो अपने परिवार और पैदायशी जन्मभूमि के सभी अधिकार छिन गए। जन्मदिन पर मिला सेबों का गार्डन भी खोना पड़ा। पिता की काफी संपत्ति में से एक इंच जमीन पर भी हक नहीं रह गया था। हां, शादी के कुछ अरसे बाद पिता ने हमारा विवाह मान लिया और मुझे अपना लिया था, लेकिन मेरा सेबों का बाग और अपनी संपत्ति से मैं बेदखल ही रही। लेकिन अब सब बदल गया है। मन को तो मानो पंख लग गए हैं कि तुरंत कश्मीर पहुंचकर अपनी सेब की खेती देखने को मचल रहा है। मैं खुश हूं कि अब वो फिर से मुझे मिल जाएगा, उस पर मेरा अधिकार होगा। मैं जल्द ही पति और बच्चों के साथ वहां जाऊंगी और पिता से मिलूंगी। पिता की जमीन पर अब हम घर भी बना सकेंगे, अपनी मिट्टी से जुड़ सकूंगी, मेरी बेटी को भी संपत्ति पर अधिकार मिलेगा। अनुच्छेद 370 के खत्में ने हमें अपनी मिट्टी से दूर होने से बचा लिया। 
वहीं, मुरादाबाद की अनीता शर्मा ने कहा कि एक गैर कश्मीरी के साथ शादी के बाद मैंने अपनी मातृभूमि पर अधिकार खो दिया था। पर अब मैं अपनी जड़ों की यात्रा कर सकूंगी और वहां अपना घर बना सकूंगी।

बेटी को अपनी संपत्ति दे पाऊंगी
दिल्ली के पटेल नगर में रहने वाली रजनी आहूजा अपने दर्द को यूं बयां करती हैं, ‘मैंने 1985 में दिल्ली में अपनी पसंद से शादी की थी। ऐसा करते ही मेरे सारे अधिकार छिन गए। वास्तव में लोग कश्मीर की पीड़ा को अच्छे से नहीं जानते हैं। मैं कश्मीरी महिला हूं, लेकिन अपनी पुश्तैनी संपत्ति ही अपने बच्चों को नहीं दे सकती। कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे के चलते पंजाबी से शादी करते ही मेरे कश्मीरी अधिकार खत्म हो गए। श्रीनगर और पहलगांव में हमारी पुस्तैनी संपत्ति है। बाहरी राज्य के व्यक्ति के साथ शादी करने के बाद मैं इस संपत्ति को अपनी एकमात्र बेटी को नहीं दे सकती थी। इसे लेकर बड़ी चिंता थी। पर इस फैसले ने मन की मुराद पूरी कर दी है। अब मैं अपने मन की कर पाऊंगी। 

अपनी संपत्ति की अब मैं वारिस
कठुआ की जाह्नवी गुप्ता को प्राइवेट जॉब करते हुए पानीपत के हेमेंद्र बंसल से प्यार हो गया। शादी से पहले ही नेहा की नौकरी गवर्मेंट डिग्री कॉलेज कठुआ में लग गई। कहती हैं, बाहरी व्यक्ति से शादी होते ही महिलाओं के अधिकार यहां खत्म हो जाते हैं। सात अक्तूबर 2002 में सुशीला साहनी केस में हाईकोर्ट ने महिलाओं की पीआरसी बहाल करने के आदेश दिए थे। लेकिन 35ए के कारण पति का पीआरसी नहीं बन सकता था। ऐसे में नौकरी के बाद मुझे पानीपत में अपना घर बनाना पड़ता, जबकि कठुआ में मेरे नाम पर प्लॉट और दूसरी संपत्ति है, उसे न चाहते हुए भी बेचना पड़ता। पानीपत में मेरे पति की मैं वारिस हूं, लेकिन यहां मेरी संपत्ति के वारिस मेरे पिता हैं। शादी करते ही मैं यहां अचानक से आउट साइडर हो गई। साथ वाले भी मुझे बाहरी के तौर पर ही मानते हैं। कई बार लोग कहते हैं कि आप यहां नौकरी ही क्यों कर रहे हो। नेहा कहती हैं कि यह भेदभाव अब खत्म हो गया है, इससे काफी संतोष है। अब मैं यहां अपनी जमीन पर घर बना सकूंगी। 

कानून के हटते ही बदल गई कश्मीर की बेटियों की जिंदगी
भारत के संविधान के तहत देश की बेटियों/महिलाओं को बहुत सारे अधिकार मिले हुए हैं, लेकिन विडंबना रही कि उन सभी अधिकारों से जम्मू-कश्मीर राज्य की बेटियां दशकों तक महरूम रहीं। पर अब अनुच्छेद 370 और 35ए के हटते ही कश्मीर की बेटियों को उनके सभी हक मिल गए हैं। जी हां, कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को मिले हुए थे, लेकिन कश्मीरी महिलाओं को उनसे वंचित कर दिया गया था। जैसे जम्मू-कश्मीर के बेटे अगर राज्य के बाहर शादी कर भी लें तो उनकी संतानों को यहां स्थायी नागरिक माना जाता था, लेकिन बेटियां अगर राज्य के बाहर शादी कर लें तो उनकी संतानों के भी हक यहां खत्म हो जाते थे। पर अब ऐसा नहीं होगा।

संविधान में मिलता है संपत्ति का हक 
भारत के संविधान के तहत पिता की संपत्ति में बेटियों को (शादी से पहले भी और शादी के बाद भी) बराबर का हक मिलता है, लेकिन कश्मीर का अलग विधान होने के कारण यह हक बेटियों को नहीं मिलता था। उदाहरण के तौर पर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। इसके विपरीत यदि वो पकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी कर ले तो उसे व्यक्ति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी। वहीं, कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है।

अजीब प्रथा थी
कितनी अजीब बात है कि जम्मू-कश्मीर में पैदा होने के बावजूद वहां की लड़कियां बाहर शादी करने के कारण अपने जन्म स्थान में संपत्ति खरीद कर मकान नहीं बनवा 
सकतीं जबकि वो भारत में यहां तक कि दुनिया में कहीं भी संपत्ति खरीद सकती हैं। 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की महिलाओं का उनकी अपनी पसंद की शादी करने का 
हक भी छिन जाता था। 

कश्मीर में महिलाओं की स्थिति
जम्मू-कश्मीर में बेशक एक महिला दो साल के करीब मुख्यमंत्री के पद पर रही हों पर जब महिला सशक्तिकरण की बात आती है तो जम्मू कश्मीर कई राज्यों की तुलना में 
पिछड़ा हुआ है। 2011 में जारी सेंसेक्स के आंकड़ों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में महिलाओं की आबादी 59 लाख है पर इनमें मात्र 14.4 प्रतिशत महिलाएं ही कामकाजी हैं। 
इसके साथ ही राज्य में महिला साक्षरता दर 60 प्रतिशत भी नहीं है। ऐसे में यहां पर कामकाजी महिलाओं की संख्या कम होना स्वभाविक है।
- Story by Sunita Kapoor