गूगल ने आज डॉक्टर मुथुलक्ष्मी रेड्डी का डूडल बनाया है। बहुत कम लोग डॉक्टर मुथुलक्ष्मी रेड्डी के नाम से परिचित हैं। आज उनकी 133वीं सालगिरह है। आइए जानते हैं कि कौन थीं डॉक्टर मुथुलक्ष्मी रेड्डी और किस तरह से उन्होंने समाज के विकास में अपना अहम योगदान दिया।
मौजूदा संसद में 78 महिला सांसद हैं। राज्यों की विधानसभाओं में भी महिला विधायकों की कमी नहीं है। उस जमाने की सोचें जब हमारा देश गुलाम था और हमारे वीर जन आजादी के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे थे, तब उस ब्रिटिश राज में एक ऐसी महिला थीं जो मद्रास विधानसभा की पहली महिला सदस्य बनीं और सदन में उन्होंने शादी की सही उम्र और लड़कियों के शोषण के बारे में अपनी आवाज उठाई। यह थीं देश की पहली महिला विधायक डॉक्टर मुथुलक्ष्मी रेड्डी। उनकी 133वीं जयंती पर गूगल ने उनका डूडल बनाकर ना केवल उन्हें सम्मानित किया बल्कि विश्व को भी उनका स्मरण कराया।
कई रिकार्ड उनके नाम
उनके बारे में यह भी उल्लेखनीय है कि वह भारत की पहली ऐसी लड़की थीं, जिसने लड़कों के स्कूल में दाखिला लेकर पढ़ाई की। वह एक सरकारी अस्पताल में बतौर सर्जन काम करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई भी की और ऐसा करने वाली वो पहली महिला थीं। यही नहीं, वह अपने पूरे जीवनकाल में एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता रहीं। उन्होंने लोगों को अच्छे स्वास्थ्य के प्रति जागरुक बनाने का काम किया।
तमिलनाडु में 1886 में हुआ जन्म
30 जुलाई, 1886 को डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी का जन्म तमिलनाडु के पुड्डुकोट्टई रियासत में हुआ था। उनके पिता एस नारायण स्वामी चेन्नई के महाराजा कॉलेज के प्रिंसिपल थे। वह भी बेटी की पढ़ाई के विरोधी थे। पति और समाज के तानों के बावजूद मुथुलक्ष्मी की मां चंद्रामाई ने बेटी को पढ़ने के लिए भेजा। उन्होंने बेटी का दाखिला ऐसे स्कूल में करवाया, जहां केवल लड़के पढ़ते थे। स्कूल में इकलौती छात्रा होने की वजह से मुथुलक्ष्मी को पढ़ने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा पर वह हारी नहीं और ना ही उन्होंने अपनी मां को कभी निराश किया।
अपने शिक्षा के अधिकार के लिए खड़ी हुईं
मुथुलक्ष्मी रेड्डी पढ़ने-लिखने में होशियार तो थी हीं, विचारों से भी काफी उदार थीं। उनके माता-पिता बाल्यावस्था में उनकी शादी करा देना चाहते थे, लेकिन अपने माता-पिता का विरोध करते हुए मुथुलक्ष्मी ने बाल विवाह के खिलाफ बगावत की और अपने शिक्षा के अधिकार के लिए खड़ी हुईं। 10वीं के बाद उन्होंने पुदुकोट्टई के महाराजा कॉलेज में दाखिले के लिए फॉर्म भरा। उस समय महाराजा कॉलेज में सिर्फ लड़कों को ही पढ़ाया जाता था। उनके आवेदन पर कॉलेज के प्रिंसिपल ने भी विरोध किया था। कॉलेज द्वारा उनके फॉर्म को खारिज कर दिया गया। पर मुथुलक्ष्मी ने हिम्मत नहीं हारी और मद्रास कॉलेज में दाखिला लिया। यहां डॉक्टरी के पढ़ाई करते हुए 1912 में उन्होंने एमबीबीएस की परीक्षा पास की और देश की पहली महिला डॉक्टर बनीं। यहीं पर ही उनकी दोस्ती सरोजनी नायडु और एनी बेसेंट से हुई थी। उन्होंने मद्रास के सरकारी मातृत्व और नेत्र अस्पताल की पहली महिला हाउस सर्जन के तौर पर भी काम किया।
महिला अधिकारों के लिए लड़ीं
मुथुलक्ष्मी रेड्डी को इंग्लैंड जाकर आगे पढ़ने का मौका भी मिला, लेकिन उन्होंने ‘वूमेंस इंडियन एसोसिएशन’ के लिए काम करने को तरजीह दी। वह इसकी सह-संस्थापक रहीं। मुथुलक्ष्मी ने 1918 में ‘वूमेंस इंडियन एसोसिएशन’की स्थापना में मदद की थी। उन्होंने देश में महिलाओं के प्रति होने वाले भेद-भाव के लिए भी लड़ाई लड़ी और अपनी उपलब्धियों से साबित किया कि महिलाएं पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं हैं। अपने जीवनकाल में मुथुलक्ष्मी ने कम आयु में लड़कियों की शादी रोकने के लिए नियम बनाए और अनैतिक तस्करी नियंत्रण अधिनियम को पास करने के लिए काम किया। रेड्डी ने विभिन्न सामाजिक सेवा गतिविधियां कीं। महिलाओं के उत्थान और लैंगिक असमानता से लड़ने के लिए काम करते हुए उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के प्रयासों का समर्थन किया।
शादी में रखी शर्त
साल 1914 में उन्होंने एक डॉक्टर सुंदर रेड्डी से इस शर्त पर शादी की, कि वे उनके साथ बराबरी का व्यवहार करेंगे और उनको अपने सपने को पूरा करने से कभी नहीं रोकेंगे।
कैंसर इंस्टिट्यूट की शुरुआत की, सरकार ने पद्मभूषण से नवाजा
डॉक्टर मुथुलक्ष्मी रेड्डी के जीवन में एक ऐसा मोड़ आया, जिसने उन्हें अंदर से तोड़ दिया। उनकी बहन की मौत कैंसर की वजह से हो गई, जिसके बाद उन्होंने कैंसर पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1956 में एक कैंसर इंस्टिट्यूट की शुरुआत की। यह चेन्नई में स्थित है। इसी साल उनकी समाज सेवा और कैंसर जैसी बीमारी के इलाज के लिए कदम उठाने के लिए उन्हें भारत सरकार की तरफ से पद्मभूषण से नवाजा गया।
निधन
सभी के लिए एक प्रेरणा का स्रोत रहीं डॉक्टर मुथुलक्ष्मी रेड्डी का 22 जुलाई 1968 को चेन्नई में निधन हो गया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.