केबीएल ने प्रॉडक्शन में तेजी लाने के लिए महिलाओं को शामिल करने का फैसला किया। महिलाओं ने भी साबित कर दिखाया कि अगर उन्हें मौका मिले तो वह भी काम करने में किसी से पीछे नहीं हैं।
तमिलनाडु राज्य के कोयंबटूर में कनियुर गांव है। इस गांव में किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड (केबीएल) नामक छोटे पंप बनाने वाली फैक्ट्री हैं। इस फैक्ट्री को महिला मिशन 20 प्रॉजेक्ट के तहत 2010 में स्थापित किया गया था। इस कंपनी में काम करने वाली 200 महिलाओं ने पंप को बनाने में लगने वाले समय को 17 सेकंड कर दिया जो कि एक लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड है। चूंकि छोटे पंपों का इस्तेमाल घरेलू महिलाएं ज्यादा करती हैं। इसलिए कंपनी ने प्रॉडक्शन में तेजी लाने के लिए महिलाओं को शामिल करने का फैसला किया। महिलाओं ने भी साबित कर दिखाया कि अगर उन्हें मौका मिले तो वह भी काम करने में किसी से पीछे नहीं हैं। हालांकि ऐसा करने के लिए कंपनी को अपनी आंतरिक नीतियों में कई बदलाव करने पड़े। अब जबकि कंपनी लगातार मुनाफा कमा रही है इसलिए वह महिलाओं को ही तवज्जो दे रही है।
सभी हैं अपने-अपने काम में माहिर
किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड फैक्ट्री 4.14 एकड़ में फैली है। इसमें लगभग 200 महिलाएं काम करती है। इनमें से 84 महिलाओं को फैक्ट्री ऑपरेशन के लिए काम करती है। जिन्हें इसकी अति आवश्यक ट्रेनिंग दी गई है। 105 महिलाएं सेमी स्किल्ड और 12 महिलाएं सपॉर्टिव स्टाफ के तौर पर काम करती है। सभी ने मिलकर एक टीम बना रखी है और सब अपने-अपने काम में माहिर हैं। वह अपने काम का मजा लेती हैं न कि किसी बोझ की तरह काम करती है और यही उनके काम की सफलता का राज है। जब वह काम करती है तो पूरे फोकस के साथ। यहां तक कि कंपनी में किसी विजिटर के आने पर भी उनका ध्यान भंग नहीं होता है। जब फैक्ट्री शुरू हुई थी तब सिर्फ एक शिफ्ट में काम होता था लेकिन अब यहां दो शिफ्ट होती हैं। यहां की महिलाएं को दूसरी शिफ्ट में काम करने को प्राथमिकता देती हैं और इससे आउटपुट भी बढ़ा है। इस फैक्ट्री में महिलाएं 14 से 17 प्रकार के छोटे पंप बनाती हैं। यह पंप पूरे भारत में बेचे जाते हैं। यह कंपनी के कुल आउटपुट का लगभग 6% यानी 132 करोड़ रुपये है। वहीं अगर महिलाओं के काम की बात करें तो दो शिफ्टों में साल भर में लगभग 8-9 लाख पंप बनाती हैं। मतलब, हर महीने लगभग 70 से 80 हजार पंप का निर्माण 200 महिलाएं मिलकर करती हैं।
केबीएल में काम करने वाली महिलाओं की उम्र 25 से 30 साल के बीच है इनमें कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जिनकी उम्र इससे भी ज्यादा है। यहां काम करने वाली ज्यादातर महिलाएं वहां की स्थाई निवासी ही हैं। यहां काम करने वाली अधिकतर महिलाओं की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हैं। कुछ महिलाएं ऐसी भी है जिनके पास किसी भी तरह की ट्रेनिंग और स्किल नहीं है।
महिलाओं का अपना मिशन
फैक्ट्री में काम करने वाली यह 200 महिलाओं को जो लीड करता है वह भी एक महिला हैं जिनका नाम लक्ष्मी है। उनके पास 20 साल का वर्क एक्सपीरियंस है और 2 साल पहले ही इस पद पर आईं। वह अकेले ही फैक्ट्री को लीड कर रही हैं। वह अपने साथी महिलाओं को काम के लिए हमेशा प्रोत्साहित करती रहती है और वह काम में पूरी पारदर्शिता रखती हैं। टीम के सफल होने में प्रतिबद्धता और स्वामित्व महत्वपूर्ण है। वह कहती हैं, 'मैं नए उत्पादों के काम पर भी फोकस रखती हूं। मटेरियल की उपलब्धता में बढ़ोतरी करना हो, उत्पाद के लिए कुछ नया जोड़ना हो या फिर हर तरह की चीज का ध्यान रखना, मैं जिस भी चीज को मेरी जरूरत होती है, वह करती हूं।' वह कहती हैं कि महिलाओं को अपना कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए थोड़े से प्रोत्साहन की जरूरत होती है। उन्होंने आगे कहा, 'काम करते हुए पिछले दो दशकों में मैंने महसूस किया है कि चीजें बदली हैं। अगर महिलाएं ठान लें तो वे किसी भी काम को करने के लिए तैयार हैं। मैं केवल श्रम की बात नहीं कर रही। महिलाओं को डरना नहीं चाहिए और खुद में विश्वास रखना चाहिए।'
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.