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चेतना मेहरोत्रा रंगभूमि से युवाओं में पैदा कर रही हैं भरोसा

Published - Tue 19, Nov 2019

हमारा मकसद किरदारों को रोजमर्रा के जीवन से उठाकर स्टेज पर प्रस्तुत करना है। यही वजह है कि मैं इसे थियेटर कहने के बजाय ड्रामा फॉर लर्निग ऐंड रिफ्लेक्शन ऑफ लाइट कहती हूं।

chetna mehrotra

चेतना मेहरोत्रा

घरेलू उत्पीड़न से तंग आकर जब मैंने पति का घर छोड़ा, तब एक साथ दर्जनों परेशानियों ने मुझे घेर लिया। निराशा के चलते कुछ दिन मैं अवसाद में रही। पर मेरा हुनर मेरे साथ था। मैं अपने सपनों को पूरा करने के लिए साहस के साथ दोबारा उठी, जिसके बाद रंगभूमि की नींव पड़ी। मैं मुंबई की रहने वाली हूं। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से समर एप्लिकेशन प्रोग्राम किया और कथक का भी प्रशिक्षण लिया। पढ़ाई के बाद मेरी शादी हो गई। शादी के कुछ साल बाद से ही जिंदगी के उतार-चढ़ाव शुरू हो गए थे। मामूली कहासुनी के बाद अक्सर पति हाथापाई करने लगे। इस बीच मेरे बेटे का जन्म हुआ। मुझे लगा कि अब सब कुछ सही हो जाएगा। पर कुछ ही महीने बाद फिर से मारपीट शुरू हो गई। इस सबसे तंग आकर आखिरकार एक दिन मैंने पति से अलग होने का फैसला कर लिया। तकरीबन दस साल तक घरेलू उत्पीड़न सहने के बाद जिस रात मैंने घर छोड़ा, उस समय मेरे पास रहने के लिए छत भी नहीं थी, लेकिन मैंने सोच लिया था कि अब इसे और सहन नहीं करना है। पति का घर छोड़ने के बाद मैं चाहकर भी नौकरी नहीं कर सकती थीं, क्योंकि उस वक्त मेरा बेटा छोटा था। तब मैंने तय किया कि अपने हुनर के जरिये ही जिंदगी को आगे बढ़ाना है। इसके बाद मैंने 'रंगभूमि : ए हैप्पी प्लेग्राउंड' नाम की संस्था की शुरुआत की। उस समय घरेलू हालात के अलावा आर्थिक दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। अकेली होने के कारण रंगभूमि के साथ-साथ बच्चे की परिवरिश का भी ध्यान रखना पड़ता था। शुरुआत में लोग यह नहीं समझ पाते थे कि उनके लिए यह आर्ट शैली क्यों उपयोगी है। मैं उनको बताती थी कि युवाओं पर, कम्यूनिकेशन स्किल पर, लीडरशिप स्किल पर कैसे थियेटर के जरिये भी काम किया जा सकता है। दो-तीन साल तक मुझे इससे कुछ खास फायदा नहीं हुआ। पर धीरे-धीरे लोगों को समझ में आने लगा कि रंगभूमि एक अलग तरीके की शैली है, जो सही मायने में जीने का मकसद सिखाती है। इसके जरिये मेरी कोशिश युवाओं को थियेटर से जोड़कर रोजगार के नए मौके दिलाना है। मुंबई, पुणे और दूसरे कई शहरों के स्कूल और कॉरपोरेट सेक्टर में यह युवाओं और महिलाओं को जोड़ने का काम करती है। इसके जरिये जहां युवाओं में छिपी  कला को निखारा जाता है, वहीं महिलाओं में भरोसा पैदा किया जाता है कि उनके पास भी पुरुषों की तरह बड़े फैसले लेने का अधिकार है। इसमें हम कविता की शैली में थियेटर करते हैं।
आमतौर पर थियेटर में जो भी होता है, वह स्क्रिप्ट पर आधारित होता है, जबकि रंगभूमि में हम सीधे दर्शकों को साथ में जोड़ते हैं। इस समय मैं मुंबई के अलावा पुणे, बंगलूरू और हैदराबाद के स्कूलों के साथ काम कर रही हूं। इसमें स्कूली पाठ्यक्रम के साथ थियेटर भी सिखाया जाता है। इसका पाठ्यक्रम कक्षा एक से 12वीं तक के बच्चों के लिए डिजाइन किया गया है। कक्षा के हिसाब से बच्चों को थियेटर की अलग-अलग शैली सिखाई जाती है। हम समय-समय पर समाज में जागरूकता लाने के उद्देश्य से कैंसर अस्पताल, झुग्गी बस्तियों, जेल और अनाथाश्रमों में भी प्रस्तुति देते हैं, जिसमें ग्रुप के साथ स्कूली बच्चे भी शामिल होते हैं। हमारा मकसद किरदारों को रोजमर्रा के जीवन से उठाकर उसे स्टेज पर प्रस्तुत करना है। यही वजह है कि मैं इसे थियेटर कहने के बजाय ड्रामा फॉर लर्निग ऐंड रिफ्लेक्शन ऑफ लाइट कहती हूं। मैं अपने काम से बहुत खुश हूं, क्योंकि हम बहुत कम थियेटर संस्थाओं में से एक हैं। जो काम हम कर रहे हैं, वह मुझे इससे आगे तक जाने के लिए प्रेरित करता है।

-विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित।