मैं अनाथालय से ढाई किलोमीटर दूर पैदल नंगे पांव चलकर सरकारी बालिका विद्यालय में पढ़ने जाती थी।
ज्योती रेड्डी
गरीबी की मार झेल रहे ज्योती रेड्डी के परिवार के लिए प्रत्येक दिन एक संघर्ष जैसा होता था। वह बताती हैं हमारे लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी कठिन होता था। मेरा जन्म तेलंगाना के वारंगल जिले में हुआ। अपने माता-पिता की पांच संतानों में मैं दूसरे नंबर पर थी। मेरे पिता किसान थे। मैं जब नौ साल की थी तभी मेरे पिता ने मुझे और मेरी बहन को परिवार की वित्तीय स्थिति के कारण एक अनाथालय में भेज दिया था। उस वक्त अनाथालय में पानी की भारी कमी होती थी और वहां कोई नल भी नहीं था। बाथरूम की भी उचित व्यवस्था नहीं थी। मैं बाल्टी लेकर घंटों तक लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार किया करती थी, ताकि कुएं से पानी निकाल सकूं। मैं ढाई किलोमीटर पैदल नंगे पांव चलकर सरकारी बालिका विद्यालय में पढ़ने जाती थी। जिस रास्ते से मैं जाती थी उसी रास्ते में इंग्लिश मीडियम स्कूल पड़ता था। उस स्कूल के बच्चों को देखकर मैं सोचती थी कि ये बच्चे कितने खुशनसीब हैं जिनके पास अच्छी ड्रेस हैं और पैरों में पहनने के लिए जूते भी हैं। वह एक भयानक और बुरा दौर था। मुझे अपनी मां और घर की याद सताती थी लेकिन मैं ये समझ कर अनाथालय में रह रही थी कि मेरी मां ही नहीं है। ऐसी परिस्थिति में मैंने अपने लिए एक बेहतर जीवन बनाने की दिशा में काम करने का वादा किया। मैंने दसवीं तक की पढ़ाई अनाथालय में रहकर ही पूरी की। मैं एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थी और घरेलू कामों में अनाथालय अधीक्षक की मदद करती थी। वहीं मैंने महसूस किया कि एक सुंदर जीवन जीने के लिए, पहले एक अच्छी नौकरी मिलनी जरूरी है। इसी दौरान मैंने उधार के पैसे लेकर कॉलेज में एडमिशन ले लिया। कॉलेज जाना शुरू भी नहीं हुआ कि मेरी शादी दूर के रिश्तेदार के साथ कर दी गई। मेरे पति भी किसान थे, उनका हाथ बंटाने के लिए मुझे भी खेतों में जाकर काम करना पड़ता था। खेती कम थी इसलिए दूसरे किसानों के धान के खेतों में कुछ रुपयों पर काम करना पड़ता था। स्नातक करने के बाद मुझे एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका की नौकरी मिल गई, जहां हर महीने पांच सौ रुपये मिलते थे। स्कूल में पढ़ाने के साथ ही मैंने कपड़ों की सिलाई और साड़ियां बेचनी शुरू की, ताकि किसी तरह से ज्यादा पैसे कमा सकूं। तब तक मैं दो बेटियों की मां बन चुकी थी।
इसके बाद मैंने परास्नातक किया, तो स्थिति में कुछ सुधार आया। मुझे छह हजार रुपये प्रति माह की एक नौकरी मिल गई। परिवार का खर्च चलाने के साथ मैं थोड़ी बहुत बचत भी करने लगी। मेरे एक रिश्तेदार अमेरिका में नौकरी करते हैं। मैंने कंप्यूटर साइंस में पीजी डिप्लोमा किया और उनसे मदद मांगी। कुछ माह बाद मुझे अमेरिका जाने का ऑफर मिला। मैंने बेटियों को एक हॉस्टल में भेज दिया और अमेरिका चली गई। अमेरिका के शुरुआती दिनों में बहुत संघर्ष करना पड़ा। डेढ़ साल बाद मैं भारत लौट आई। इसके बाद मैं फिर अमेरिका गई और वहां वीजा प्रोसेसिंग के लिए एक कंसल्टिंग कंपनी खोली। इस बार भाग्य ने मेरा साथ दिया, मैंने ठीक-ठाक बचत कर ली। इसके बाद सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन नाम से अपनी खुद की कंपनी खोली। यह कंपनी सॉफ्टवेयर डेवलपर की मदद करती है। अब मैं गरीब और बेसहारा बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में मदद करती हूं। मैं प्रज्ञाधरन वेलफेयर सोसाइटी, एमवी फाउंडेशन और चाइल्ड राइट्स एडवोकेसी फोरम जैसे कई एनजीओ के साथ काम कर रही हूं, जो अनाथ अधिकार और सामुदायिक सशक्तीकरण के लिए काम करते हैं। मैं उन कठिनाइयों के लिए आभारी हूं जो मेरे रास्ते में आईं क्योंकि उन्होंने मुझे बनाया जो मैं आज हूं।
- विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.