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कल्पना चावला- जो सितारों को छूना चाहती थी, वो सितारों में ही बस गई

Published - Thu 05, Sep 2019

चंद्रयान-2 के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुचने में बस अब कुछ घंटे ही बचे हैं और सच मानिए तो यह वक्त बहुत ही नाजुक होता है जब एक बहुत बड़ा इतिहास रच रहा होता है। ईश्वर करे कि सबकुछ ठीक-ठाक हो और भारत अंतरिक्ष की उस ऊंचाई को छू ले, जिसे आज तक कोई नहीं छू सका। इसरो के वैज्ञानिकों ने इसके लिए काफी मेहनत की है। हालांकि यह मिशन मानव रहित है, लेकिन ऐसे समय में कल्पना चावला की याद हो आना स्वाभाविक है। अगर वो आज जिंदा होतीं तो अपने देश के इस मिशन में उनका भी भरपूर सहयोग होता। पर तकदीर को ऐसा मंजूर नहीं था...

kalpana chawla

एक फरवरी 2003 का वो दिन कोई भी भारतीय कभी नहीं भूल सकता जब कल्‍पना चावला अपने साथियों के साथ अंतरिक्ष से धरती पर लौट रही थीं। एक इतिहास रचा जा रहा था। भारत की इस बेटी ने पहली अंतरिक्ष यात्री बनने का इतिहास तो रच ही दिया था। हर किसी की नजर उस अंतरिक्ष यान पर टिकी हुई थी, जो कल्‍पना चावला को लेकर धरती पर पहुंचने वाला था। कोलंबिया शटल एसटीएस-107 नाम का यह अंतरिक्ष यान तब धरती से करीब 2 लाख फीट की ऊंचाई पर था। उसे धरती पर पहुंचने में महज 16 मिनट का समय ही लगने वाला था कि अचानक से... ये क्या हो गया। जिस बड़ी स्क्रीन पर इस पूरे मिशन का लाइव टेलीकास्ट चल रहा था कि यकायक वो स्क्रीन ब्लैंक हो गई। आखिर क्या हुआ था उस अंतरिक्ष यान के साथ। इसका जवाब अमेरिका की उस अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पास भी नहीं था जो इस यान का संचालन कर रही थी। इस अंतरिक्ष यान का नासा से संपर्क टूट चुका था। 

हादसे का कारण
दरसअल, पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही कोलंबिया शटल दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और देखते ही देखते कल्पना चावला समेत उस यान में सवार सभी सातों अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई थी। इस अंतरिक्ष यान का मलबा अमेरिका के टैक्सास राज्य के डलास इलाके में गिरा था। लेकिन कल्पना समेत किसी भी अंतरिक्ष यात्री के पार्थिव शरीर का कोई भी अंग उस मलबे में नहीं मिला था। वैज्ञानिकों के मुताबिक- जैसे ही कोलंबिया ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया, वैसे ही उसकी उष्मारोधी परतें फट गईं और यान का तापमान बढ़ने से यह हादसा हुआ।
इस हादसे ने पूरे विश्व को स्तब्‍ध कर दिया। सफलता का यह जश्न पलभर में ही मातम में बदल गया। मुस्कुराते चेहरों पर उदासी छा गई। भारतीयों के दिलों में कल्पना चावला के अदम्य साहस को लेकर जहां खुशियां मनाने की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही थीं, वहां पूरी तरह से मातम पसर गया। उस वक्‍त कल्‍पना चावला की वो बात सभी को बहुत याद आ रही थी जब मिशन पर जाने से पहले दिए एक इंटरव्यू में कल्पना चावला ने कहा था, मैं अंतरिक्ष के लिए बनी हूं और इसी के लिए मरूंगी। यह बात उनके लिए सच साबित हुई। उन्होंने 41 साल की उम्र में अपनी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा की, जिससे लौटते समय वह एक हादसे का शिकार हो गईं। 

 

छोटी-सी मोंटो का तारों तक पहुंचने का सफर...
भारतीय लड़कियों के लिए एक आदर्श, कल्पना चावला हरियाणा में करनाल के एक साधारण से परिवार से थीं। कल्पना के ऊंचे सपनों और अतुलनीय साहस ने उन्हें अंतरिक्ष तक पहुंचाया। 17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना बचपन से ही ऐसे माहौल में पली-बढीं, जहां परिश्रम को सबसे महवपूर्ण माना जाता था। चार भाइ-बहनों में सबसे छोटी कल्पना सबको बहुत प्यारी थीं। कल्पना को बचपन से ही उनकी मां ने हर एक चीज के लिए बढ़ावा दिया। उस समय में जब लड़कियों की पढ़ाई पर कोई ध्यान नहीं देता था, तब कल्पना की मां यह सुनिश्चित करती थीं कि उनकी सभी बेटियां वक्त पर स्कूल जाएं। घर में सभी लोग उन्हें ‘मोंटो’ कहकर पुकारते थे। जब स्कूल में उनका दाखिला करवाया गया तो प्रिंसिपल ने उनका नाम पूछा। जिस पर उनकी आंटी ने कहा कि उनके नाम के लिए तीन विकल्प हैं- ज्योत्स्ना, कल्पना और सुनैना। इसके बाद प्रिंसिपल ने जब नन्ही कल्पना से एक नाम चुनने के लिए कहा तो उसने तपाक से कहा कि वह कल्पना नाम अपनाएगी क्योंकि इस छोटी सी उम्र में भी उसे इसका मतलब पता था। 
अपनी दसवीं की कक्षा के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए डीएवी कॉलेज में दाखिला लिया और यहां पर एक बहुत ही दिलचस्प घटना हुई। एक बार गणित की क्लास में कल्पना के टीचर अलजेब्रा के नल-सेट (खाली सेट) के बारे में पढ़ा रहे थे और उन्होंने कहा कि भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्रियों का एक समूह इसका अच्छा उदहारण होगा, क्योंकि आज तक कोई भी भारतीय महिला अंतरिक्ष में नहीं गई है। इसे सुनकर कल्पना ने बहुत ही दृढ़ता से कहा कि किसे पता है मैडम, एक दिन यह सेट खाली न रहे। इसे सुनकर सब दंग थे। पर उस वक्त कोई नहीं जानता था कि एक दिन इस बात को कहने वाली लड़की ही इस नल-सेट को भरने के लिए अंतरिक्ष जाएगी।

पति से कल्पना ने प्लेन उड़ाना सीखा
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस (अमेरिका) में कल्पना चावला का मास्टर्स डिग्री में चयन हो गया। यहां उनकी मुलाकात जीन पिएर्रे हैरिसन से हुई। साल 1983 में उन्होंने हैरिसन से शादी की। हैरिसन एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर और एविएशन लेखक थे। उन्हीं से कल्पना ने प्लेन उड़ाना सीखा था। उन्हें एकल व बहु इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमानचालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे। 1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय बोल्डर से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की। उसी साल उन्होंने नासा के साथ काम करना शुरू किया। 

 

पहले मिशन की सफलता
दिसंबर 1994 में, कल्पना चावला ने जॉनसन स्पेस सेंटर की अंतरिक्ष यात्री के 15 वें समूह में एक अंतरिक्ष यात्री उम्मीदवार के रूप में रिपोर्ट किया था। और उसके बाद जो हुआ, वह आज भारत का गौरवशाली इतिहास है। नवंबर 1996 में, उन्हें स्पेस शटल एसटीएस -87 (19 नवंबर से 5 दिसंबर, 1997) पर मिशन विशेषज्ञ और प्राइम रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में नियुक्त किया गया था। अपने पहले मिशन में, कल्पना ने पृथ्वी की 252 कक्षाओं में 6.5 अरब मील की यात्रा की और अंतरिक्ष में 376 घंटे और 34 मिनट पूरे किए। इसके बाद वे अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला बन गई। पांच साल से भी कम समय में, नासा ने उन्हें दूसरी बार कोलंबिया पर उड़ान भरने के लिए भेजा।

आखिरी ईमेल 
पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज के बच्चों को भेजे अपने आखिरी ईमेल में कल्पना ने लिखा था, “सपनों से लेकर कामयाबी तक का रास्ता बिल्कुल मौजूद है। बस, आपके पास उसे तलाशने का दृष्टिकोण हो, उस पर पहुँचने का हौंसला हो और इस पर चलने की दृढ़ता हो।”