महिलाएं बोलीं, हुनर के लिए डिग्री की नहीं जरूरत
देहरादून। 63 साल की सरिता रानी बहुत अच्छा खाना बनाती हैं। सुमन डोभाल के खाने की तारीफ घर में आने वाला हर मेहमान करता है। ममता की चपातियों का स्वाद लोगों की जुबां पर है। नूपुर गुप्ता खुद तो अच्छी कुक हैं ही, उन्होंने अपने बेटे को भी अच्छी कुकिंग सिखाई। आज उनका बेटा जाना माना फूड ब्लागर है।दिलचस्प और महत्वपूर्ण बात यह है कि सरिता, ममता और सुमन के हाथ से बने खाने का स्वाद और लोग भी चख रहे हैं। यानी इन महिलाओं ने अपने इस घरेलू हुनर को कमाई का जरिया बना लिया। इनके बनाए स्वादिष्ट व्यंजन टिफिन के जरिए उन तमाम लोगों तक पहुंच रहे हैं, जो अपने घरों से दूर पढ़ने या नौकरी करने आए हैं। जब इन लोगों को घर का बना टेस्टी भोजन नसीब होता है तो इससे उनका मन भी प्रसन्न होता है और वे सेहतमंद भी रहते हैं।
टिफिन सर्विस को बनाया रोजगार
सरिता रानी कहती हैं, जरूरी नहीं है यदि आप पढ़ी लिखी हैं तभी कमा सकती हैं और अपनी पहचान बना पाएंगी। शनिवार को अमर उजाला पटेलनगर कार्यालय में आयोजित संवाद में ऐसी महिलाएं पहुंचीं, जिन्होंने घर से ही अपना छोटा व्यवसाय शुरू कर न सिर्फ अपने लिए रोजगार के दरवाजे खोले बल्कि आत्मनिर्भर होकर आत्मसम्मान से जीना भी सीखा। हर दिन जो खाना महिलाएं अपने परिवार को खिलाती हैं वहीं खाना उन्होंने लोगों के घरों तक पहुंचाया और फिर शुरू हुई टिफिन सर्विस।
अमर उजाला अपराजिता 100 मिलियन स्माइल्स अभियान के तहत घर बैठे ही महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर तलाशे जाएं, इसी उद्देश्य के साथ शनिवार को ‘टिफिन सर्विस एक रोजगार’ को लेकर संवाद का आयोजन किया गया। संवाद में कई ऐसी महिलाएं पहुंचीं जो टिफिन सर्विस देती हैं, जबकि कई महिलाओं ने इसे रोजगार के रूप में अपनाने के टिप्स जाने। इस दौरान टिफिन सर्विस का काम कर रही सुजाता सिंह और ममता गर्ग ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि किस तरह से एक टिफिन से उन्होंने शुरुआत की और आज वह अच्छा कमा रही हैं। इस तरह हर महिला अपना छोटा व्यवसाय शुरू कर सकती है। ओएनजीसी से एचआर मैनेजर रिटायर सरिता रानी का कहना है कि अब उनके पास समय है और इस समय में भी वह कुछ करना चाहती हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मंजू जैन, रमा गोयल ने कहा कि महिलाओं के भीतर कई हुनर हैं, जिनके इस्तेमाल से घर बैठे ही वह स्वयं की पहचान बना सकती हैं। इस मौके पर निधि सेमवाल, दिपाली, सिम्मी जैन, रजनी जैन, मनजीत, नीतू, बिश्नुप्रिया, सविता वर्मा, स्वीटी, विमला गौड़, अमृता अग्रवाल, रोशनी रतूड़ी और विमला उनियाल आदि मौजूद रहे।
एक टिफिन का स्वाद आज 250 घरों तक पहुंचा
सिर पर दो बच्चों की परवरिश और आर्थिक तंगी की मार। ममता गर्ग को इस समस्या से निकलने के लिए रोजगार का रास्ता निकालना था। इस दौरान ममता ने देखा पीजी में पढ़ने वाले बच्चे मजबूरी में किसी भी तरह का खाना खा रहे हैं, जबकि पैसा पूरा देते हैं। इसे देख ममता ने खुद खाना बनाकर सप्लाई करने की ठानी और एक टिफिन से शुरू हुआ ममता का काम 250 बच्चों के बीच पहुंचने लगा। ममता के हाथ की बनीं चपातियों का स्वाद आज भी लोगों की जुबां पर है। 51 वर्षीय ममता गर्ग ने बताया कि आर्थिक तंगी के दौर में वह सोचती थीं कि 10वीं पास के आधार पर उन्हें कोई नौकरी नहीं देगा। काफी लंबे समय तक वह परेशान रहीं। फिर 2001 में उन्होंने एक टिफिन से शुरुआत की और फिर देखते ही देखते ममता के हाथ का बना खाना लोगों की जुबां पर चढ़ गया। ममता बताती हैं कि वह एक दिन हजार-हजार चपातियां बनाती थीं। काम बढ़ने लगा तो उन्होंने अपने साथ हेल्पर रखे, लेकिन खाने की गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं किया। टिफिन सर्विस ने ममता को जहां आर्थिक तंगी से निकलने में मदद की बल्कि अपने बच्चों को अच्छी परवरिश और अपनी एक पहचान बनाने का भी अवसर दिया। साथ ही और लोगों को भी रोजगार दिया।
घर को आर्थिक मजबूती देने के लिए शुरू की टिफिन सर्विस : सुजाता
पटेल नगर निवासी सुजाता सिंह ने 2005 से टिफिन सर्विस का काम शुरू किया। बतौर सुजाता मैंने टीचिंग की थी, लेकिन शादी के बाद नहीं कर पाईं। कुछ समय बाद आर्थिक तंगी के चलते काम की जरूरत महसूस हुई। घर में अकेले एक की कमाई से चल पाना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए ऐसा काम करने की सोची, जिसे मैं घर से ही कर सकूं। छोटी सी शुरुआत की घर में ही पीजी में रहने वाले बच्चों को खाना खिलाने की। छह-छह की शिफ्ट में बच्चे घर में खाना खाने आते थे। बाद में मेरा काम और बढ़ गया। अपनी सुविधा के अनुसार में अपने काम को बढ़ा रही हूं। क्योंकि मैं अकेले ही टिफिन सर्विस का काम करती हूं।
पहले लगाती थीं स्टॉल, आज खुद का है कैफे
31 साल की रोजी कौर अपना खुद का कैफे चलाती हैं लेकिन स्वयं को आत्मनिर्भर बनाना रोजी के लिए आसान नहीं था। रोजी ने नेपाल से एचएम की पढ़ाई की। खाना बनाने का शौक तो था, लेकिन करियर के रूप में वह उसे लंबे समय तक जारी नहीं रख पाईं। शादी के बाद बच्चे की जिम्मेदारी के कारण रोजी के करियर में पांच साल का गैप आ गया और नौकरी नहीं मिल पाई। रोजी अपने पति को भी आर्थिक रूप से मदद करना चाहती थी। इसलिए उन्होंने घर से करने की ठानी। पति का सहयोग मिला और रोजी ने धीरे-धीरे खाने के स्टॉल लगाने शुरू किए। काम अच्छा चला और आज रोजी का खुद का कैफे है।
पारंपरिक खाने को बढ़ावा, रोजगार भी दिया
वर्ष 2003 से पूजा सुब्बा ने टिफिन सर्विस शुरू की। उनका काम बहुत अच्छा चला। इसके बाद और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की सोची, जिसके लिए सबकी सहेली फाउंडेशन ट्रस्ट के जरिए महिलाएं हमारे साथ जुड़ीं। खास बात यह थी कि हमें कई शादियों के ऑर्डर मिल रहे थे, जोकि ट्रेडिशनल खाने की डिमांड कर रहे है और हमारे समूह में हर समुदाय की महिलाएं हैं। पारंपरिक खाने को बढ़ावा देने के साथ ही महिलाएं भी अपने हुनर से आगे आ रही हैं। अब हम इसे बढ़े स्तर पर करने की तैयारी में हैं।
महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाएं
नूपुर गुप्ता खुद तो अच्छी कुक हैं ही, उन्होंने अपने बेटे को भी अच्छी कुकिंग सिखाई। आज उनका बेटा जाना माना फूड ब्लागर है। वह बताती है कि बेटा पेशे से इंजीनियर है, लेकिन फूड ब्लागिंग उसका पैशन है। उनका कहना है कि काम सीखा हुआ कभी भी काम आ सकता है। महिलाएं अपने हुनर का प्रयोग करें तो वह खुद को आत्मनिर्भर बना सकती हैं।
अब व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करेंगी महिलाएं अपनी रेसिपी
देहरादून। टिफिन सर्विस का काम कर रहीं महिलाएं और काम करने की इच्छुक महिलाओं को अधिकाधिक घर में पहुंचने में आसानी हो, इसके लिए व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है। महिलाएं अपनी रेसिपी को इस ग्रुप में साझा करेंगी। ग्रुप के जरिए अधिक से अधिक लोगों तक उनकी रेसिपी को पहुंचाया जाएगा।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.