राज्य स्तर की एथलीट रह चुकीं अपर्णा जरूरी सुविधाओं से वंचित बच्चों को पढ़ाने, उनका हक दिलाने के लिए काम कर रही हैं। अपर्णा का कहना है कि मेरा जीवन इन बच्चों के नाम ही है।
नई दिल्ली। गरीब-असहाय लोगों के बारे में लोग सोचना तो दूर बात करना भी पंसद नहीं करते, लेकिन इस दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो इस तबके के बारे में सोचते भी हैं और काम भी करते हैं। इन्हीं में से एक नाम है अपर्णा लक्ष्मी का। अपर्णा गुड़गांव में रहती हैं और अपने आसपास के करीब दो सौ गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं। अपर्णा राज्य स्तर की एथलीट रह चुकी हैं और पत्रकारिता की पढ़ाई करने के साथ-साथ पत्रकारिता भी कर चुकी हैं। अपर्णा आज वो काम कर रही है, जो लोग करने से पीछे हट जाते हैं। जो गरीब बच्चे सरकारी स्कूल में जाते तो हैं लेकिन वो पढ़ाई में पीछे ना छूट जायें इसके लिए वो उन पर खास ध्यान देती हैं। उनको पढ़ाती भी हैं और समझाती भी हैं।
परिवार से मिला साहस
अपर्णा लक्ष्मी के इस हौसले के पीछे उनके परिवार का साथ है। उनके परिवार में कई लोग स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा ले चुके हैं। परिवार को देखा-देख लक्ष्मी के मन में बचपन से ही समाज सेवा करने का जज्बा था। जब उन्होंने होश संभाला, तो पढ़ाई के साथ-साथ सभी समाजिक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेने लगीं। धीरे-धीरे उन्होंने वंचित तबके के लिए काम शुरू किया और आज वो अपने काम से खुश हैं।
खेलों में करियर बनाने की जगह चुनी समाज सेवा
अपर्णा का जन्म लखनऊ में हुआ। स्कूल, कॉलेज के दिनों में वह राज्य स्तरीय एथलीट भी रहीं, लेकिन खेलों में करियर बनाने की जगह उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाना, उनको आत्मनिर्भर बनाना बेहतर समझा। जब अपर्णा ने अपनी पढ़ाई पूरी की, तो उसके बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कदम रखा। कई साल तक पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय रहीं। इस दौरान लखनऊ, दिल्ली, गुड़गांव में भी काम किया। गुड़गांव में काम करने के दौरान उन्होंने तय किया कि अब वह वंचित समाज के बच्चों के लिए काम करेंगी। ऐसे बच्चे जो जरूरी सुविधाओं से दूर हैं और चाहकर भी उनको ये सुविधाएं नहीं मिल पातीं।
कोशिश है कि बच्चों का स्कूल न छूटे
गुड़गांव आने के दौरान अपर्णा ने पाया कि उनके घर के आसपास बन रहीं इमारतों में दूसरे राज्यों से आए मजदूर काम कर रहे थे। जिनके बच्चे स्कूल नहीं जाते, क्योंकि एक तो ये तय नहीं होता था कि वो कितने दिन किसी जगह पर काम करेंगे और दूसरा उनके पास कोई ऐसा पहचान पत्र नहीं होता था जिसको दिखाकर उनके बच्चों का किसी स्कूल में दाखिला मिल जाये। ऐसे में वो बच्चे दिन भर खाली घूमा करते थे। इसी समस्या को देखते हुए अपर्णा ने 2012 में रेडियंट किड्स मल्टी एक्टिविटी सेंटर की नींव रखी। इसके लिए उन्होंने शुरूआत में आसपास काम कर रहे दूसरे राज्यों से आये मजदूरों से बात की और उनको समझाया कि उनके बच्चों के लिए शिक्षा कितनी जरूरी है। जिसके बाद उन्होंने 45 बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया। उनको देखकर आसपास के मजदूर भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजने लगे। छह महीने के अंदर ही पढ़ने वाले बच्चों की संख्या ढाई सौ तक पहुंच गई।
विरोध को किया दरकिनार
अपर्णा के इस प्रयास का आसपास रहने वाले लोगों ने विरोध भी किया, लेकिन अपर्णा ने किसी भी विरोध, धमकी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और बच्चों को पढ़ाना जारी रखा। कई बार लोगों का विरोध इतना बढ़ा कि मामला पुलिस तक पहुंच गया, लेकिन अपर्णा ने हार नहीं मानी और मजदूरों के बच्चों को पढ़ाना नहीं छोड़ा, वो लगातार अपने मिशन में जुटी रहीं।
दो पाली में पढ़ते हैं बच्चे
कोरोना के कारण फिलहाल बच्चों को पढ़ाना रुका हुआ है, क्योंकि बहुत से बच्चे अपने माता-पिता के साथ गांव लौट चुके हैं और दूसरा कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए अभी बच्चों को पढ़ाया नहीं जा रहा, लेकिन अपर्णा इससे पहले दो पालियों में बच्चों को पढ़ाने का काम करती थीं। पहली पाली सुबह नौ बजे से बारह बजे तक और दूसरी पाली शाम तीन बच्चे से छह बजे तक चलाई जाती है।
बच्चों को दी जाती हैं कंम्यूप्टर की ट्रेनिंग
अपर्णा पढ़ने आने वाले बच्चों को इंग्लिश, गणित और कंम्प्यूटर की विशेष ट्रेनिंग देती हैं। इसके अलावा पढ़ाई के साथ ये नृत्य संगीत, ऑर्ट एंड क्रॉफ्ट, योग, कराटे और दूसरी तरह की गतिविधियां कराती हैं। जिन बच्चों के लिए दुनिया उनका छोटा सा घर और परिवार होता है उनको अपर्णा समय-समय पर अलग-अलग जगहों की सैर के लिए ले जाती हैं। पढ़ाई के साथ-साथ वो उनको फिल्में दिखाती हैं, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बच्चों के साथ हिस्सा लेती हैं, अलग-अलग म्यूजियम में घुमाने ले जाती हैं, इन बच्चों के जरिये वो थियेटर आयोजित करती हैं ताकि पढ़ाई के साथ-साथ इन बच्चों के अंदर छिपे हुनर को दुनिया पहचान सके।
अपने दम पर चला रही हैं मिशन
अपर्णा अपने खर्च पर ही बच्चों को शिक्षित करने का कार्य कर रही हैं। अभी तक उन्हें सामजिक या सरकारी स्तर पर किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली हैं। वो खुद भी अपने खर्चे में कटौती कर इन बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने में जुटी रहती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.