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पुरखों के पर्यावरणीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रही हैं अर्चना 

Published - Tue 10, Nov 2020

अर्चना को उनके पिता ने सिखाया कि कहीं पर भी स्थायी बदलाव के लिए सही नीति निर्माण जरूरी होता है। उन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए पढ़ाई के बाद वह ओडिशा लौटी और पर्यावरण को लेकर सामुदायिक जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं। 

archana Soreng

ओडिशा में जन्मी अर्चना सोरेंग का परिवार सुंदरगढ़ जिले में खड़िया जनजाति से संबंधित है। उनके पिता स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता थे, जो सर्पदंश के इलाज में विशेषज्ञता रखते थे। अर्चना के पिता का मानना था कि नीति-निर्माण ही समाज में रचनात्मक और स्थायी बदलाव लाने का एकमात्र तरीका है। इसलिए वह अर्चना के उच्च शिक्षित बनाना चाहते थे। स्कूली पढ़ाई के बाद अर्चना ने मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से परास्नातक की पढ़ाई पूरी की। वहां पर उन्होंने छात्रसंघ का चुनाव भी लड़ा और वह अध्यक्ष भी चुनी गई। अर्चना कहती हैं, 'यही वह जगह है, जहां मैंने अकादमिक दृष्टिकोण से लोक प्रशासन, नीति विश्लेषण और नीति-निर्माण के बारे में सीखा।' पढ़ाई के बाद जब अर्चना वापस घर लौटी, तो समुदाय की परंपरा के बारे में जाना-समझा। इस दौरान उन्होंने ऐसे बहुत से स्वदेशी प्रयोग देखे, जिनके आधार पर उन्होंने महसूस किया कि हमारे पूर्वज टिकाऊ व्यवस्था जानते थे। वर्ष 2017 में उनके पिता की मौत हो गई। पिता की मौत के बाद अर्चना ने उनके पारंपरिक स्वदेसी ज्ञान का दस्तावेजीकरण करने का फैसला किया। इसके बाद वह वसुंधरा संगठन से जुड़ी। वहीं पर वह स्वदेशी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक प्रथाओं के दस्तावेजीकरण के माध्यम से उसके संरक्षण और प्रोत्साहन का काम करने लगी। उनके इस कामकाज की जानकारी जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव को मिली तो उन्होंने अर्चना को नए सलाहकार समूह में शामिल करने के लिए नामित किया।     

हमारी बारी

अर्चना का मानना है कि, 'हमारे पूर्वज अपने पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं से सदियों से जंगल और प्रकृति को बचा रहे हैं। अब हमारी बारी है कि हम जलवायु संकट से निपटने के लिए अग्रिम मोर्चे पर काम करें।' इसी वजह से अर्चना ने जलवायु परिवर्तन को लेकर जागरूकता फैलाने का काम शुरू किया। इससे स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोगों ने जलवायु परिवर्तन के बारे में समझना-सोचना शुरू कर दिया है।  

भूमि अधिकारों की रक्षा

प्रकृति और जंगलों के असली संरक्षक होने के बावजूद आदिवासी कमजोर और गरीबी में जीवन जी रहे हैं। अपनी जमीन पर उनका अधिकार नहीं है। जबकि जलवायु परिवर्तन एक्टिविज्म में आदिवासी समुदायों की भूमिका है। पर्यावरणीय न्याय आदिवासी जीवन का अभिन्न अंग है। अर्नना इन लोगों के वन और भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए भी लड़ रही हैं। 

युवाओं से जुड़ाव

अर्चना का लक्ष्य अपने साथ ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ना है। उनका मानना है, जनजाति समुदाय के जागरूक युवाओं को अपने समुदायों से वापस जोड़ने की जरूरत है, ताकि वे अपने पारंपरिक ज्ञान को सीख सकें, उन्हें संरक्षित कर जलवायु संकट का मुकाबला करने में स्वदेशी समुदायों की भूमिका को उजागर कर सकें।