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एशियाई कुश्ती में बेटियों ने लगाई गोल्डन हैट्रिक

Published - Fri 21, Feb 2020

देश की बेटियों को जब भी मौका और मंच मिलता है वह खुद को साबित करने में पीछे नहीं हटती हैं। खेल, शिक्षा, विज्ञान, तकनीकी, व्यापार हर क्षेत्र में आज देश की बेटियां पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। देश की तीन बेटियों ने बृहस्पतिवार को एक बार फिर अपने बेहतरीन खेल से देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।

नई दिल्ली। देश की बेटियों को जब भी मौका और मंच मिलता है वह खुद को साबित करने में पीछे नहीं हटती हैं। खेल, शिक्षा, विज्ञान, तकनीकी, व्यापार हर क्षेत्र में आज देश की बेटियां पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। देश की तीन बेटियों ने बृहस्पतिवार को एक बार फिर अपने बेहतरीन खेल से देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। देश की पहलवान बेटियों ने एक ही दिन में तीन-तीन स्वर्ण पदक देश की झोली में डाल दिए। यूपी की दिव्या काकरान ने 68 किलो में दो घंटे के अंदर चार पहलवानों को परास्त कर स्वर्ण पदक जीता। वहीं, बीमार और चोटिल होने के बावजूद हरियाणा की पिंकी और सरिता ने 55 और 59 किलो में स्वर्ण पदक हासिल किया। हालांकि 50 किलो वर्ग में हरियाणा की निर्मला स्वर्ण से चूक गईं। उन्हें रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा।

दिव्या ने अपने दांव से सबको चौंकाया

महिला कुश्ती में मजबूत चीन और उत्तर कोरिया की गैरमौजूदगी का फायदा भारतीय पहलवानों ने उठाया, लेकिन गत विजेता जापानी पहलवानों को मेजबानों ने परास्त किया। दिव्या ने राउंड रोबिन के आधार पर पहले मुकाबले में कजाखस्तान की अलबीना को 6-0 से इसके बाद मंगोलिया की डेलजरमा को 11-2 से तीसरे मुकाबले में उज्बेकिस्तान की अजोबा को 8-0 और अंत में जापान की नरोहा मात्सयूकी को रोमांचक संघर्ष में 6-4 से हराकर स्वर्ण जीता। दिव्या एक समय नरोहा के हाथों चित होने वाली थीं, लेकिन उन्होंने ब्रिज बनाकर असंभव तरीके से अपने को बचाया और बाद में कलाजंग दांव लगाकर जापानी को परास्त कर दिया।

बीमारी के बार भी नहीं मानी हार

सरिता ने फाइनल में मंगोलिया की बात्सेतसेग को रोचक संघर्ष में 3-2 से पराजित किया। इससे पहले सरिता ने सेमीफाइनल में जापान की यूमी कोन को 10-3 से हराया। सरिता इस दौरान बीमार हो गईं, लेकिन फाइनल में उन्होंने बीमारी की हालत में लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। इसी तरह पिंकी के भी कंधे की चोट क्वालिफाइंग मुकाबलों में उबर आई, लेकिन  इसके बावजूद उन्होंने मंगोलिया की डुलगुन को 2-1 के अंतर से पराजित किया। पिंकी ने बाद में स्वीकार भी किया कि वह कंधे को बचाकर खेल रही थीं। 10 साल पहले इसी स्टेडियम में कॉमनवेल्थ गेम्स का फाइनल खेलने वाली अनुभवी निर्मला को 50 किलो के फाइनल में जापानी मिहो इगाराशी के हाथों 2-3 से हार का सामना करना पड़ा। 76 किलो में किरन पदक दौर में नहीं पहुंच सकीं। गौरतलब है कि महिला कुश्ती एशियाई चैंपियनशिप में शामिल हुए भारत को 24 साल हो चुके हैं। एशियाई कुश्ती के इतने वर्षों में नवजोत कौर ही देश के लिए 2018 में अब तक स्वर्ण पदक जीत पाई थीं, लेकिन बृहस्पतिवार को देश की बेटियों ने एकसाथ तीन गोल्ड देश की झोली में डाल दिए।

भाई से किए दो-दो हाथ और दोस्त ने दिया सहारा

दिव्या के स्वर्ण पदक जीतने की खुशी भाई देव काकरान और दोस्त नीना के चेहरे पर देखते ही बनती थी। देव खुद तो पहलवान नहीं बन पाए लेकिन वह मैट पर बहन के साथी बन गए। बहन को मैट पर प्रैक्टिस के लिए मजबूत पहलवान मिले इसके लिए उन्होंने लखनई साई सेंटर के बाहर किराए का मकान लिया। कुश्ती संघ ने भी दिव्या को कैंप में मैट पर प्रैक्टिस कराने की अनुमति दे दी। यही नहीं दिव्या की दोस्त नीना ने कमरे पर उनका ख्याल बड़ी बहन सरीखा रखा। दिव्या कैंप में कैंटीन में नहीं बल्कि नीना के हाथ का बना खाना खाती है। यही कारण था कि सीनियर वर्ग में पहली बार स्वर्ण जीतने पर दिव्या के मुंह से देव और नीना के लिए तारीफों के शब्द थम नहीं रहे थे।

जार्जियाई कोच ने भी दिव्या की तकनीक पर किया काम

देव और नीना ही नहीं भारतीय कुश्ती के पितामाह माने जाने वाले जार्जियाई कोच ब्लादीमीर मेट्रेशविली ने बीते छह माह में दिव्या की तकनीक पर खूब काम किया। दिव्या के मुताबिक वह खूब मेहनत कर रही थीं, लेकिन परिणाम सामने नहीं आ रहे थे। ऐसे में उन्होंने ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट से सुशील कुमार के साथ जुड़े कोच ब्लादीमीर को मांगा। दिव्या के मुताबिक ब्लादीमीर के आने के बाद ही उन्हें यह परिणाम मिला है। वहीं दिव्या के पिता को दुख है कि उनकी बेटी रहती तो दिल्ली में है, लेकिन उसे अपनाया उत्तर प्रदेश ने। दिल्ली की ओर से दिव्या को कभी नहीं अपनाया गया इसका उन्हें हमेशा दुख रहेगा। बृहस्पतिवार को जीत के बाद दिव्या ने कहा, मेरे लिए अपने सारे मुकाबले प्रतिद्वंद्वी को चित करके जीतने जरूरी थे क्योंकि जापान की खिलाड़ी ने अपनी सारी कुश्तियां बड़े अंतराल से जीती थी। बड़ी जीत के लिए मैंने जोखिम भी लिया और परिणाम में पक्ष में रहा।