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अपनी बेटियों को कैसे बचाएं दरिंदों से, महिला पुलिस अधिकारी पल्लवी की पोस्ट हुई वायरल 

Published - Mon 02, Dec 2019

इस पोस्ट में उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि माता-पिता अपने बच्चों को समाज के इन दरिंदों से बचाने के लिए कैसे तैयार करें। किस उम्र में बच्चों को कौन-सी बात सिखानी है यह सब पल्लवी ने अपनी पोस्ट के माध्यम से बताने की कोशिश की है। 

pallavi

नई दिल्ली। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के पुलिस मुख्यालय में तैनात अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पल्लवी त्रिवेदी ने इन दिनों सोशल मीडिया पर एक अपील जारी की है। उनकी यह अपील वायरल हो रही है। इस पोस्ट में उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि माता-पिता अपने बच्चों को समाज के इन दरिंदों से बचाने के लिए कैसे तैयार करें। किस उम्र में बच्चों को कौन-सी बात सिखानी है यह सब पल्लवी ने अपनी पोस्ट के माध्यम से बताने की कोशिश की है। 


आज मैं एक लड़की, एक जिम्मेदार नागरिक और एक पुलिस अधिकारी होने के नाते कुछ प्रिवेंटिव एक्शन व जरूरी कदम सभी को सजेस्ट करना चाहती हूं ,जो हर हालत में हर लड़की और उनके परिजनों तक पहुंचें।

1- नाबालिग लड़कियों के केस में पेरेंट्स और स्कूल प्रबंधन की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी होती है। नासमझ बच्ची अपने साथ हुई घटना को न ठीक से समझ सकती है और न बता सकती है। इसलिए हर वक्त उसे सुरक्षित निगरानी में रखना बेहद जरूरी है। खासकर पुरुष स्टाफ जैसे ड्राइवर, नौकर, रिश्तेदार, ट्यूशन टीचर वगेरह के साथ अकेला न छोड़ें और न ही उनसे बच्ची के कपड़े बदलने या नहलाने जैसे कार्य कराएं। उसे तीन साल की उम्र से ही अच्छे और खराब स्पर्श की ट्रेनिंग दें। इसे अपने मौलिक कर्तव्य की तरह निभाएं।

2- आठ साल की उम्र में बच्ची को अश्लील हरकतों और दुष्कर्म का अर्थ समझा दें। बार बार समझाएं जिससे उसे इसकी समझ पैदा हो जाये और अकेले असुरक्षित जाने के खतरों से लगातार आगाह करते रहें। उसे बताएं कि कोई पुरूष अगर अश्लील इशारे करे, पोर्न वीडियो भेजे या दिखाने की कोशिश करे, उसके सामने अपना लिंग छुए या दिखाए या मास्टरबेट करे तो फौरन आकर माता-पिता को बताए। यही हरकतें उसके पोटेंशियल बलात्कारी होने का लक्षण हैं। वो आपसे ये सब शेयर कर सके इसके लिए उसके दोस्त बनिये। डांट डपट करके उसे ये बातें बताने से हतोत्साहित न करें।

3- किशोर लड़कियों को अकेले निकलने से न रोकें किंतु उसे जरूरी सेफ्टी मेजर्स के बारे में बताएं। उसके साथ दुष्कर्म के केसेस डिस्कस करें और उसके मोबाइल में वन टच इमरजेंसी नंबर रखें जो आवश्यक रूप से पुलिस का ही हो। उसके बाद वह परिजनों को कॉल कर सकती है। स्प्रे, चाकू, कैंची, सेफ्टी पिन, मिर्च पाउडर उसके बैग में अनिवार्य रूप से रहे। यह आदत जितनी जल्द विकसित कर दें, उतना बढ़िया। इसका डेमो देकर उसे ट्रेंड करवा दें। रिहर्सल आवश्यक है अन्यथा हथियार होते हुए भी घबराहट में उसका उपयोग नहीं हो पाता।

4- वयस्क लड़कियां भी पर्स में ऊपर बताए हुए हथियार अनिवार्य रूप से रखें व जरूरत पड़ने पर बिना घबराए उनके इस्तेमाल में कुशल हो। इन हथियारों के साथ एक तेज आवाज वाली सीटी रखें। अपराध के वक्त तेज शोर से अक्सर अपराधी भाग जाते हैं। अगर कोई ऐसी डिवाइस हो या बन सकती हो जो एक बटन दबाते ही इतना तेज विशेष आवाज का सायरन बजाए जो आसपास के सारे क्षेत्र में गूंज जाए और जिसकी आवाज को सिर्फ दुष्कर्म होने की आशंका के रूप में यूनिवर्सल साउंड माना जाए तो कृपया इसकी जानकारी दें और अगर नहीं है और कोई व्यक्ति या कंपनी इसे बना सकती है तो इसे सभी नागरिकों की तरफ से मेरा आग्रह मानकर बना दे। यह बेहद प्रभावी सिद्ध होगी।

5-पुलिस कंट्रोल रूम व किसी भी पुलिस अधिकारी का नंबर हमेशा अपने पास रखें। और सबसे पहले उन्हें डायल करें। पुलिस की छवि आपके मन में जो भी हो पर याद रखें कि महिलाओं के अपराधों में पुलिस बेहद तत्परता से काम करती है व आपकी सबसे निकट का पुलिस वाहन शीघ्र आपके पास पहुंच जाएगा। पुलिस एप अपने मोबाइल में रखें व अपनी लोकेशन भेजें। अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन जाकर स्टाफ व अधिकारियों से परिचय करें। पुलिस वाकई आपकी दोस्त है। यह आप महसूस करेंगी।

6- मैं चाहती हूं कि लड़कियों के लिए यह देश और दुनिया इतनी सुरक्षित हो कि वे आधी रात को भी बेखटके सड़कों पर घूम सकें लेकिन यथार्थ इतना सुंदर नहीं है। इसलिए अकेले देर रात सूनी सड़कों पर आवश्यकता होने पर ही निकलें। पुलिस हर कदम पर आपके साथ तैनात नहीं हो सकती। अपराधी व दरिंदे लड़कों को रातों रात सुधारा नहीं जा सकता। इसलिए क्लब या पार्टी से देर रात लौटें तो अपनी सुरक्षा का ध्यान पहले रहे। कैब या टैक्सी करने पर तुरंत लाइव लोकेशन घरवालों को दें व उसका फोटो भी भेजें। यह बात उस ड्राइवर को भी मालूम हो।

7- एक महत्वपूर्ण बात यह कि अगर अपराधी अकेला है तो उसे हैंडल किया जा सकता है। अगर वह दुष्कर्म करता है तो बिना घबराए उसके टेस्टिकल्स हाथों से पकड़कर जितनी मजबूती से हो सके, दबा दें। इससे वह कुछ मिनिटों के लिए अशक्त हो जाएगा और लड़की को बच निकलने का या उस पर आक्रमण करने का वक्त मिल जाएगा। गैंग रेप की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में लड़की जरूर बेबस हो सकती है मगर ऐसे में पुलिस को त्वरित सूचना मदद करेगी।

8- मार्शल आर्ट या अन्य कोई सुरक्षात्मक आक्रमण कला सिखाना अपनी बच्चियों के लिए जरूरी लिस्ट में अनिवार्यतः शामिल कर लें।

9- बच्चों की सही काउंसलिंग और अपराधों से बचाव के उपाय आप न जानते हों तो बेझिझक पुलिस थाने या किसी एनजीओ की मदद लें। आपके स्कूल, क्लास, कोचिंग, मोहल्ले में आकर आपके लिए काउंसलिंग सेशन आयोजित हो जाएगा।

10- सबसे महत्वपूर्ण बात सबसे अंत में ये कि समाज को स्त्रियों के लिए सुरक्षित बनाएं और इसके लिए अपने घरों के, मोहल्ले के व समाज के लड़कों को बचपन से ही शिक्षित करें। उनकी विकृत मानसिकता न हो इसके लिए अपने लड़कों की गतिविधियों पर दस बारह साल की उम्र से नजर रखें। उसके मोबाइल पर, उसके दोस्तों पर, उसकी आदतों पर लगातार नजर रखें व उससे लगातार बात करें। हर दुष्कर्म घटना पर उससे चर्चा करें। उसे संवेदनशील बनाएं और स्त्रियों के प्रति सम्मान करना सिखाएं। यह शिक्षा अमीरी, गरीबी, धर्म, जाति, क्षेत्र के भेद से परे हर मां बाप को अपने लड़कों को देनी होगी। अगर पेरेंट्स खुद अनपढ़ व जागरूक नहीं हैं तो जिम्मेदार नागरिक अपने आसपास के क्षेत्रों में, स्कूलों में लड़कों के लिए समय-समय पर ऐसे सेशन आयोजित कर सकते हैं। इसके साथ ही लड़कों में अपराध के दंड के विषय में भी भय जागृत करें। अगर कोई लड़का आपके परिवार अथवा आस पड़ोस में सेक्समेनियक है तो उसे सायकायट्रिस्ट को दिखाएं। उसे वयस्क होने के बाद म्युचुअल कंसेंट से सेक्स के बारे में समझाएं। यदि कोई आवारा, शराबी लड़के आपकी नजरों में हों तो जरूर पुलिस को खबर करें यह सब आज करना शुरू करेंगे तो रातों रात कुछ नहीं बदलेगा लेकिन लगातार प्रयासों से असर जरूर दिखेगा। क्योंकि कोई परिवार नहीं जानता कि अगली बार किसके घर की स्त्री इस हादसे की शिकार होगी। प्लीज इसे बेहद बेहद गम्भीरता से लें। अगर आप ये सब कर रहे हैं तो कृपया अपना फर्ज समझकर दूसरों को भी समझाएं। स्त्रियों के लिए एक बेहतर समाज बनाने में हम सब की आहुति लगेगी। प्रदर्शन करें, धरने दें, कड़ी सजा की मांग करें, केंडल मार्च करें लेकिन खुद के कर्तव्य नहीं भूलें।

इसी पोस्ट पर एक टिप्पणी
भोपाल की एक पुलिस अधिकारी पल्लवी त्रिवेदी का पोस्ट कुछ लोग साझा कर रहे हैं दुष्कर्म की शिकार हैदराबाद की डॉक्टर और बलात्कार के सवाल पर। कृपया इसे न साझा करें।
इस पोस्ट में कई समस्याएं हैं। लड़की या महिला की क्षमता बढ़ा देने से, हथियार दे देने से दुष्कर्म नहीं रुकने वाले। दुष्कर्म रोकने का बोझ महिलाओं पर नहीं लादना चाहिए। पोस्ट में कहा गया है कि अगर एक ही बलात्कारी हो तो उससे निपटना बहुत आसान है, बस टेस्टिकल्स पकड़ कर दबा लो। पोस्ट लिखने वाली कभी किसी भी बलात्कार पीडिता से शायद ही मिली हो। किसी बलात्कार पीडिता से मिलिए वो बताएगी की हमले के क्षण पर वो फ्रीज हो गई, हिल नहीं पायी। अकेले हमलावर के सामने भी। ऐसे में सेल्फ डिफेंस की सलाह तो उसे महसूस कराएगा की वह खुद गुनहगार है। ऐसी सलाह से पीड़ितों से हम कह रहे हैं कि बचना तो आसान था, तुम बची क्यों नहीं? टेस्टिकल्स क्यों नहीं पकड़ लिया? बलात्कारी एक ही तो था, तुम बच सकती थी। करांटे क्यों नहीं सीखा, पेपर स्प्रे या चाकू क्यों नहीं रखा वगैरह वगैरह। ये सब पीड़ित को ही दोषी ठहराने की ओर ले जाता है हमें। 
असल में हमें पूछने की जरूरत है कि पुरुषों की परवरिश को हम कैसे बदले, ताकि वे दुष्कर्म न करें। लड़कियों की परवरिश में एक ही बदलाव की जरूरत है, कि हम उसे कहें कि तुम कभी खुद को बलात्कार या यौन हिंसा के लिए दोष मत दो, उससे बचने की जिम्मेदारी तुम्हारी नहीं है, कभी भी कुछ ऐसी घटना होने पर तुम हमें बेझिझक बताओ, और हम तुमसे बिना कोई सवाल किए तुम्हारा साथ देंगे। दुष्कर्म हैवान नहीं करते- समाज में अच्छाई का चोला ओड़ कर घूम रहे पुरुष करते हैं, जब वे महिला की सहमति के बिना उसपर अपना हक जताते हैं। सबसे ज्यादा बलात्कार, जानकर लोग, भरोसेमंद समझे जाने वाले लोग, करते हैं। घरों के भीतर सबसे ज्यादा यौन हिंसा होती है, खास कर बच्चों के साथ। सहमति के बारे में शिक्षा देने की जरूरत है लड़के लडकियों दोनों को। अच्छा, इस पोस्ट में ये माना गया है कि सिर्फ बच्चियों के साथ यौन हिंसा होती है। जबकि लड़कों के साथ भी होता है। 
इस पोस्ट में सबसे ज्यादा जो गलत बात है वह ये कि महिलाएं रात को बिना काम कर बाहर न निकलें क्योंकि दुनिया खराब है। जिन्हें काम है, और निकलना पड़ गया उसका क्या? हर पीड़ित महिला को पहले ये जवाब देना होगा कि आखिर उसका बाहर निकलना जरूरी था या नहीं?! जैसे ही हम ऐसी बात कहते हैं और उसे आगे बढ़ाते हैं, हम सुरक्षा की जिम्मेदारी, दुष्कर्म से बचने की जिम्मेदारी, हम महिलाओं पर बोझ की तरह लाद देते हैं। सरकार और समाज पर बोझ थोड़ा शिफ्ट कब करेंगे?! सड़कों को सुरक्षित करने के लिए हमें सड़कों पर ज्यादा महिलाओं की जरूरत है, कम नहीं! सरकार का काम है सड़कों को सुरक्षित रखना, और इसका मतलब सिर्फ पुलिस नहीं, स्ट्रीट लाइट है, अर्बन प्लानिंग है, 24/7 पब्लिक ट्रांसपोर्ट - परिवहन - है। और पुलिस की भी भूमिका है, कि महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनें। अगर ये पोस्ट किसी पुलिस अधिकारी ने लिखा है, जैसा कि मालूम होता है, तो लिखने वाले को तत्काल लिंग संवेदीकरण की जरूरत है, क्योंकि इसमें दुष्कर्म पीड़ित की मनःस्थिति के बारे में बहुत कमजोर समझदारी है। सरकारी खर्चे पर जजों और अदालतों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है ताकि केस बर्षों न चलें। बलात्कार पीडितों के लिए आर्थिक, और अन्य मदद सरकार मुहैय्या कराएं। पुलिस और अदालतों का रवैय्या इतना महिला विरोधी क्यों है ये भी पूछ लीजिए।