महिला अफसर ने किया माहवारी से जुड़ा अंधविश्वास और प्रतिबंध तोड़ने का एक सफल प्रयास, 250 स्कूलों की 50000 से अधिक छात्राओं को बताया पीरियड्स के दौरान क्यों जरूरी है स्वच्छता बनाए रखना
पीरियड्स... एक ऐसा शब्द जिसपर आज भी किशोरियां, महिलाएं बोलने से कतराती हैं। खुलकर बात नहीं कर पातीं। यहां तक कि घरों में मां-बेटी भी इस पर बात करने से बचती हैं और इसका बहुत बड़ा नुकसान बेटियों को बाद में चुकाना पड़ता है। अनचाही बीमारियां बेटियों के शरीर और स्वास्थ्य को ही नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि उनकी जान तक पर बन आती हैं। इस बीच बेटियों को पीरियड्स पर खुलकर बोलने के लिए प्रेरित करने, उनकी समस्याओं के समाधान करने के लिए राजस्थान की एक महिला अधिकारी ने खुद के कदम आगे बढ़ाए और आज बेटियां इस पर खुलकर बात करने लगी हैं।
आरएएस अधिकारी ज्योति ककवानी बताती हैं कि भारत में आज भी 66 फीसदी किशोरियां ऐसी हैं, जिन्हें पहली बार पीरियड्स आने पर पता चलता है इसके बारे में। इससे पहले वह नहीं जानती कि पीरियड्स क्या होता है। इसके अलावा देश की 70 फीसदी किशोरियां और महिलाएं इसे एक बुरी चीज मानती हैं। वह पीरियड्स को अपनी अपवित्रता से जोड़ती हैं। यह स्थिति उस समय और भयानक हो जाती है, जब किशोरियों और महिलाओं को इस दौरान रखी जाने वाली सावधानियों, स्वच्छता और स्वास्थ्य के बारे में कुछ पता नहीं होता। उन्हें यह नहीं पता कि इस दौरान शरीर की सफाई कैसे रखी जाए। यह सब हालात इस वजह से बने हुए हैं कि आजतक पीरियड्स को अंधविश्वास से जोड़कर ही बताया और समझाया गया। स्वास्थ्य की दृष्टि से महिलाओं का मार्गदर्शन नहीं किया गया।
पीरियड्स में स्कूल की छुट्टी
ज्योति ककवानी बताती हैं कि राजस्थान में अजमेर शिक्षा का गढ़ माना जाता है, लेकिन यहां पीरियड्स को लेकर समान स्थिति थी। माहवारी से जुड़े प्रश्न छात्राओं को असहज कर देते थे। कई छात्राएं माहवारी के दौरान स्कूल नहीं आती थी। ज्योति कहती हैं, 'जब भी मैं स्कूलों के निरीक्षण पर जाती थी, छात्राओं से माहवारी के दौरान रखी जाने वाली स्वच्छता पर भी बात करना चाहती थी,पर यह संभव नहीं हो पाता था, क्योंकि लड़कियां मुंह छुपाने लगती थी। बहुत सी लड़कियों को तो जानकारी ही नहीं थी कि माहवारी है क्या?'
चुप्पी तोड़ो अभियान के साथ की शुरुआत
समाज में माहवारी को लेकर फैले अंधविश्वास और प्रतिबंध को समाप्त करने का बीड़ा उठाया महिला अधिकारी ज्योति ककवानी ने। उस दौरान वे जिला परिषद में अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी थीं। पीरियड्स के दौरान एक महिला अपने स्वास्थ्य और स्वच्छता का कैसे ध्यान रखे, इसे लेकर जिला परिषद अजमेर द्वारा चुप्पी तोड़ो अभियान चलाया गया। इसके तहत जिला स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें प्रत्येक स्कूल की महिला शिक्षिका को ममता फाउंडेशन के प्रवीण गोयल ने प्रशिक्षण दिया। इसमें दो भाग में प्रशिक्षण दिया गया, पहले में माहवारी से संबंधित अंधविश्वास और मिथ्या से जुड़ा और दूसरा स्वच्छता प्रबंधन का। अजमेर जिले की सभी पंचायत समितियों में प्रोजेक्टर लगाए गए। इस पर छात्राओं को पीरियड्स पर यूनिसेफ की बनाई गई फिल्म दिखाई जाने लगी। इसके बाद पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से छात्राओं से सवाल जवाब किए गए। सभी पंचायत समितियों को विद्यालयों की सूची के साथ समय सारिणी भी दी गई और यह एक घंटे का कार्यक्रम तय किया गया। अजमेर में 25 फरवरी से 2 मार्च के बीच चलाए गए इस अभियान में 250 स्कूलों की लगभग 50000 छात्राओं को पीरियड्स के बारे में बताया गया, तथा उन्हें चुप्पी तोड़ने के लिए प्रेरित किया गया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.