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दो बेटियों ने 200 बच्चों के लिए बना दिया बांस का स्कूल

Published - Sun 04, Oct 2020

आपने स्कूल सीमेंट और ईंट से बने स्कूल देखे होंगे, लेकिन दिल्ली के यमुना खादर में दो सहेली सुहानी निधि और स्वाति ने बच्चों के लिए बांस से स्कूल बनाकर तैयार कर दिया। आज यहां 200 बच्चे पढ़ने आते हैं।

नई दिल्ली। दिल्ली के यमुना खादर में बना एक स्कूल ऐसा है, जिसे कहीं भी उठाकर ले जाया जा सकता है। दरअसल ये स्कूल बांस और घास आदि से बना है। इसे दिल्ली की दो आर्किटेक्ट सहेलियों ने मिलकर तैयार किया है। स्वाति जानू और निधि सोहानी नाम की ये बेटियों बच्चों को पढ़ने के लिए इसका बनायाकर तैयार किया है। इनकी कोशिश है कि बच्चों की पढ़ाई न छूटे।

डीडीए ने तोड़ दिया था स्कूल
यमुना नदी के किनारे बना ये स्कूल 1993 से चल रहा है। ये स्कूल अनाधिकृत इलाके में है, इस कारण डीडीए ने साल 2011 में इस स्कूल को तोड़ दिया। वहीं दूसरी ओर इस स्कूल में पढ़ने  आने वाले छात्र उन जगहों से आते हैं जिनके घर घास फूस और मिट्टी से बने हैं और उनके आस पास कोई सरकारी स्कूल नहीं है। ऐसे में स्थानीय लोगों नरेश पाल के साथ मिलकर तय किया कि क्यों ना ऐसा स्कूल बनाया जाए जो अस्थाई हो और जरूरत पड़ने पर उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सके। तब नरेश पाल ने यहां के कुछ लोगों के साथ मिलकर में रहने वाली आर्किटेक्ट स्वाति जानू से मुलाकात की, जो एक एनजीओ एमएचएस सिटी लैब के लिए काम कर रही थी। स्वाति को उनका आइडिया पसंद आया और वो उनकी मदद के लिये तैयार हो गई। स्वाति ने सबसे पहले यमुना खादर की उस जगह का निरीक्षण किया जहां पर ये स्कूल चल रहा था। उन्होने देखा कि वो स्कूल प्लास्टिक के एक टेंट के नीचे चल रहा था इस वजह से यहां पढ़ने बच्चों पर मौसम की मार भी पड़ती थी। इसके बाद स्वाति ने इस बारे में अपनी दोस्त निधि सुहानी से बात की निधि को भी ये आइडिया पसंद आया। दोनों ने फैसला किया कि वो अपनी नौकरी के दौरान हर विकेंड इस काम को करेंगे।

स्कूल को नाम दिया गया मॉडस्कूल
निधि और स्वाति ने स्कूल बनाने के लिए सोशल मीडिया के जरिये फंड जुटाने का फैसला किया और फंड जुटाया और काम शुरू किया। चूंकि स्कूल का बजट दो लाख था, तो दोनों ने इसे बांस की मदद से बनाने का फैसला किया। लोहे का इस्तेमाल हम उन जगहों पर करना चाहते थे जहां पर ऐसा करना जरूरी था। दो लड़कियों की कोशिशों को देखते हुए डॉक्टर विनोद आगे आए जो खुद इंजीनियर हैं और उनहें सुझाव दिया कि लोहे के फ्रेम पर स्कूल खड़ा किया जाए। इस तरह स्वाति और निधि ने स्थानीय लोगों के अलावा दूसरे वालंटियर जिसमें युवा आर्किटेक्ट, स्टूडेंट और डिजाइनर थे, की मदद से दो महीने के अंदर स्कूल को खड़ा कर दिया। स्वाति और निधि ने स्कूल की दीवारों को बनाने के लिए लकड़ी, बांस और बांस से बनी चटाइयों का इस्तेमाल किया है। बांस को काटने और चटाई बुनने का काम स्कूल के बच्चों और वालंटियर की मदद से किया गया। आज इस स्कूल में पांच कक्षाएं लगती हैं। जरूरत पड़ने पर इस स्कूल को खोलकर एक बड़ा हॉल भी तैयार किया जा सकता है।

200 बच्चे पढ़ने आते हैं
यहां जीएस लबाना नाम के एक व्यक्ति डोनेशन की मदद से स्कूल चलाते हैं। यहां पर आने वाले बच्चों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। इस स्कूल को खड़ा करने वाली स्वाति और निधि की योजना इस स्कूल में एक लाइब्रेरी और टॉयलेट बनाने की है। यहां आने वाले बच्चों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। स्वाति का कहना है कि आर्किटेक्ट होने के कारण हम दोनों इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि देश में आज भी केवल दो प्रतिशत लोग ही आर्किटेक्ट की सेवाएं लेते हैं। स्लम में रहने वाले लोग जब मकान बनाते हैं तो मिस्त्रियों को इस बात की जानकारी नहीं होती कि सरिये को कितनी दूरी पर और कैसे बांधा जाता है। ऐसे में उनके मकान पक्की ईटों के बने होने के बावजूद सुरक्षित नहीं होते। यही वजह है कि ‘मॉडस्कूल’ की योजना के बाद इन दोनों दोस्तों की कोशिश इस तकनीक को आम लोगों तक पहुंचने की है। जिससे दूसरे लोग कम बजट में मजबूत मकान बना सकें।