बसंती बहन की शादी बचपन में ही उनके माता-पिता ने कर दी थी। जब वह महज 12 साल की थीं तभी उनके पति का निधन हो गया और वह विधवा हो गईं। लेकिन बसंती बहन ने हार नहीं मानी। उन्होंने युवा होते ही ठान लिया कि उनके साथ जो हुआ वह अब किसी और बेटी के साथ नहीं होने देंगी। उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। आज उनकी कोशिशों की बदौलत ही हजारों बेटियां बाल विवाह की कुप्रथा का शिकार होने से बच गईं हैं।
नई दिल्ली। किसी के दर्द को समझना हो तो एक बार उससे गुजरना पड़ता है। बिना ऐसा किए आप दूसरों की पीड़ा को नहीं समझ सकते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है उत्तराखंड की रहने वाली बसंती बहन की। बसंती बहन की शादी बचपन में ही उनके माता-पिता ने कर दी थी। जब वह महज 12 साल की थीं तभी उनके पति का निधन हो गया और वह विधवा हो गईं। तब उनके पास न तो दुनियादारी की समझ थी न ही आगे क्या करेगी इसकी कोई योजना। बेटी के आगे खड़ी पहाड़ जैसी जिंदगी कैसे कटेगी यह सोच-सोचकर उनके माता-पिता और परिजन सभी परेशान थे। लेकिन बसंती बहन ने हार नहीं मानी। उन्होंने युवा होते ही ठान लिया कि उनके साथ जो हुआ वह अब किसी और बेटी के साथ नहीं होने देंगी। उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। आज उनकी कोशिशों की बदौलत ही हजारों बेटियां बाल विवाह की कुप्रथा का शिकार होने से बच गईं हैं। बसंती बहन को पर्यावरण से भी काफी लगाव है। वह पेड़ों को बचाने के लिए भी लगातार लोगों को जागरूक करती हैं। बेटियों के साथ नदियों को बचाने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है।
मायके लौटकर दोबारा शुरू की पढ़ाई
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की रहने वालीं समाजसेविका बसंती को प्यार और आदर से सभी बसंती बहन बुलाते हैं। बसंती बहन दो दशक से समाजसेवा में जुटी हैं। वह राज्य में बाल विवाह के खिलाफ मुहिम छेड़ने की अगुआ मानी जाती हैं। बसंती बहन बताती हैं कि महज 12 साल की उम्र में विधवा हो जाने के बाद उनके हौसले टूट गए थे। वह कई दिनों तक घर के एक कोने में बैठकर अकेले ही रोया करती थीं। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। इसके बाद उन्होंने अपने साथ जो हुआ वह दूसरों के साथ न हो इसके लिए कुछ करने की ठानी। एक दिन वह ससुराल से अपने मायके पहुंचीं और माता-पिता से आगे की पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर की। उनके अभिभावक भी इस बात के लिए तैयार हो गए और वह फिर से स्कूल जाने लगीं।
स्कूल में पढ़ाने के बाद लोगों को करती हैं जागरूक
बसंती बहन 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद ही एक समाजिक संस्था से जुड़ गईं। समाजसेवा के साथ वह अपनी पढ़ाई भी करती रहीं। बाद में वह एक स्कूल में टीचर हो गईं। इन सब में भले ही एक दशक से ज्यादा का समय बीत गया था, लेकिन वह खुद से किए गए वादे को कभी नहीं भूलीं। रोजाना स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के बाद वह महिलाओं को उनके हक के प्रति जागरूक करने के लिए निकल पड़ती थीं। शुरू में लोगों को समझाने में काफी परेशानी हुई। कई घरों में तो उन्हें झिड़क भी दिया गया, लेकिन उनके इरादे कभी भी कमजोर नहीं हुए। धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी। लोगों में बाल विवाह को लेकर जागरुकता आने लगी और ऐसे मामले में तेजी से गिरावट देखी गई।
2018 के बाद राज्य में आया क्रांतिकारी बदलाव
बसंती बहन भले ही बाल विवाह को रुकवाने के लिए लगातार संघर्ष कर रही थीं, लेकिन राज्य के अलग-अलग हिस्सों में इस तरह के मामले लगातार प्रकाश में आ रहे थे। इससे वह काफी परेशान रहती थीं। इस कुप्रथा पर लगाम न लगने का एक प्रमुख कारण था राज्य में बाल विवाह एक्ट 2006 कानून का लागू न होना। बसंती बहन राज्य में इस कानून को लागू करवाने के लिए लगातार प्रयास कर रही थीं। उन्होंने डीएम से लेकर मुख्यमंत्री तक को इसके लिए पत्र लिखा, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इसी बीच 2018 में एक बाल विवाह के केस में प्रेग्नेंसी के कारण एक बच्ची का निधन हो गया था। इसके बाद एक बार फिर इस कानून को राज्य में लागू करने के मामले ने तूल पकड़ लिया। इस केस की सुनवाई के दौरान नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को राज्य में इस कानून को सख्ती से लागू करने और हर जिले में बाल विवाह को रोकने के लिए एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति का आदेश दिया। कोर्ट के इस आदेश के बाद बसंती बहन को लगा कि सालों के संघर्ष का यह परिणाम मिला है और उन्होंने राहत की सांस ली। हालांकि बसंती बहन आज भी पहले की तरह ही महिलाओं को जागरूक करने में जुटी हैं।
कोसी नदी को सूखने से बचाया
बसंती बहन बाल विवाह के साथ ही पर्यावरण को लेकर भी संघर्ष कर रही हैं। वर्ष 2003 में उन्होंने कोसी नदी को सूखने से बचाने के लिए ‘कोसी बचाओ’ अभियान का शंखनाद किया था। इस अभियान को सफल बनाने के लिए बसंती बहन कई महीनों तक गांव-गांव घूमती रहीं और लोगों को इस अभियान की अहमियत बता अपने साथ जोड़ा। उनकी मेहनत का ही असर था कि सैकड़ों महिलाएं व ग्रामीण उनके साथ जुड़ गए और नदी के किनारे ऐसे पेड़ लगाए जो जल संरक्षण के लिए उपयुक्त थे। बसंती बहन की सलाह पर ग्रामीणों ने नदी के किनारे-किनारे ओक, काफल आदि के पौधे वृहद स्तर पर लगाए। उनके इस अभियान की बदौलत ही कोसी नदी फिर से पहले की तरह पानी से लबालब हो गई।
राष्ट्रपति नारी शक्ति अवार्ड से कर चुके सम्मानित
कसौनी और पिथौरागढ़ जिले का हर शख्स बसंती बहन की तारीफ करता है। बसंती बहन का जिक्र आते ही लोग कहते हैं कि वो जिस काम को करने की ठान लेती हैं उसे पूरा करके ही दम लेती हैं। उनके लंबे संघर्ष को देखते हुए वर्ष 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें नारी शक्ति अवॉर्ड से सम्मानित किया था। अपने प्रयासों के बारे में बसंती बहन बताती हैं कि मैं जब भी किसी परिवार को बाल विवाह न करने के लिए राजी कर लेती हूं तो मुझे ऐसा लगता है मैंने बहुत बड़ी सफलता हासिल कर ली है। बसंती बहन फिलहाल महिलाओं को ग्राम पंचायतों में भागीदार बनाने और इसमें शामिल कर उन्हें सशक्त बनाने के अभियान में जुटी हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.