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12 साल की उम्र में विधवा हुई बसंती बहन ने उत्तराखंड में बाल विवाह के खिलाफ सालों से छेड़ रखा है अभियान

Published - Sat 26, Sep 2020

उत्तराखंड की बसंती बहन बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला रही हैं और साथ ही साथ पहाड़ों पर रहने वाले लोगों का जीवन सुधारने और पर्यावरण बचाने की दिशा में भी काम कर रही हैं।

Basanti Behan

देहरादून। आज पहाड़ वीरान हैं। कारण पहाड़ों में रोजगार नहीं है। लेकिन पहाड़ में जो संस्कृति और सभ्यता है, उसकी दुनिया दीवानी है। पहाड़ों के गांवों में आबादी बहुत कम बची है, इसी आबादी के बीच से निकली हैं बंसती बहन। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में उन्हें इसी नाम से जाना जाता है। वो कई वर्षों से पहाड़ पर रहे वाले इन लोगों का जीवन बेहतर बनाने में जुटी हुई हैं।
लाखों बच्चियों का जीवन सुधारा
पहाड़ों में आज भी कम उम्र में बच्चियां की शादी कर दी जाती है। बंसती पिछले एक दशक से उत्तराखंड में बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाकर लाखों बच्चियों का जीवन सुधार चुकी हैं। इस अभियान को शुरू करने के पीछे एक दर्दभरी कहानी है। बसंती बहन का विवाह कम उम्र में ही हो गया था और मात्र बारह साल की उम्र में वो विधवा हो गईं। कई तरह के दुख झेले, समाजिक प्रताड़ना सही। तब बसंती ने प्रण लिया कि वो कुछ ऐसा करेंगी कि आगे किसी बच्ची के साथ ऐसा न हो। बसंती ने पिता के घर जाकर पढ़ाई शुरू की और इंटर पास करने के बाद वो एक सामाजिक संस्थान से जुड़ गईं। बंसती एक टीचर और समाज सेविका की भूमिका निभा रही हैं। पिछले दस सालों में वह उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों में जाकर बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला चुकी हैं, लोगों को इसके नुकसान बता चुकी हैं और जागरूक कर चुकी हैं। वह महिलाओं को उनके हक के लिए भी जागरूक करती हैं। उनके प्रयासों का ही असर है कि उत्तराखंड में बाल विवाह की दर घटी है। 2006 तक उत्तराखंड में बाल विवाह एक्ट लागू नहीं हुआ है। लेकिन एक्ट लागू होने के बाद बसंती बहन ने राहत की सांस ली।

नारी शक्ति अवार्ड से हो चुकी हैं सम्मानित
बंसती बहन महिला अधिकारों, महिला ससशक्तीकरण के विषय में भी जागरूकता अभियान चला रही हैं। इसके साथ-साथ वह 2003 में उन्होंने कोसी नदी को सूखने से बचाने के लिए ‘कोसी बचाओ’ अभियान की शुरुआत की थी। इसमें बहुत सी महिलाओं और ग्रामीण लोगों ने मिलकर नदी के किनारे ऐसे पेड़ लगाए जो जल संरक्षण के लिए उपयुक्त थे जैसे, ओक, काफल आदि। इस प्रयास से कोसी फिर से सदानीरा हो गई। उनके प्रयासों को देखते हुए साल 2016 में बसंती बहन को नारी शक्ति अवॉर्ड से राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था।