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भजन गायिकी को बनाया कॅरियर, अब देश-विदेश में फैल ​रही ख्याति

Published - Thu 27, Jun 2019

शामली के ताना गांव में जन्मी अंजलि आर्या काे मुजफ्फरनगर के गुरुकुल की कोई विधिवत शिक्षा नहीं मिली, उन्होंने खुद के स्वाध्याय और ज्ञानार्जन से भजन गायिकी का हुनर सीखा और आज देश ही नहीं दुनिया में एक जानी-पहचानी शख्सियत बन गईं हैं।

anjali arya

मेरठ। कुछ करने की लगन हो आैर मन में पक्का इरादा तो कामयाबी मिल ही जाती है। यह बात शामली के ताना गांव में जन्मी अंजलि आर्या पर एकदम सटीक बैठती है। अंजलि ने भजन गायकी के क्षेत्र में आज ऐसा मुकाम हासिल कर लिया कि है कि उन्हें सुनने के लिए लोग लालायित रहते हैं।
अं​जलि को मुजफ्फरनगर के गुरुकुल की कोई विधिवत शिक्षा नहीं मिली। उन्होंने खुद के स्वाध्याय और ज्ञानार्जन से भजन गायिकी का हुनर सीखा और आज देश ही नहीं दुनिया में एक जानी-पहचानी शख्सियत बन गईं हैं। भारत की शीर्ष महिला भजनोपदेशिका बन गई अंजलि आर्या का जोश और जज्बा ‘आधी आबादी’ की नई मिसाल है। बेटियों पर बंदिशों से उनका भी वास्ता पड़ा, लेकिन मां के हौसले से उन्होंने सपनों की उड़ान भरी।
अंजलि आर्या के परिवार में भजन, कीर्तन और संगीत का कोई माहौल नहीं था। बस, दादा ओम प्रकाश आर्य उन्हें बचपन में आर्य समाज के सम्मेलन में लेकर जाते थे, जिसकी वजह से भारतीय वैदिक संस्कृति के प्रति रुझान दृढ़ होता गया। आठवीं तक की शिक्षा गांव के परिषदीय विद्यालय में पाई।  
गांव से हर दिन शामली जाकर शिवम पब्लिक स्कूल से बारहवीं की। स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में निसंकोच प्रतिभागी बनती थीं दादा के लिखे भाषण तैयार कर मंच से बोलती थी। अंजलि बताती है कि दस साल की उम्र में आर्य समाज की सभाओं में विद्वानों के व्याख्यान सुनने से विचार प्रबल हो गए। स्वयं इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम विषयों का अध्ययन करती रहीं। शामली चीनी मिल स्कूल में संगीतज्ञ से हारमोनियम पर सुरों का एक माह अभ्यास किया। भजन में दुनिया रमने लगी। उसके पिता धनीराम धीमान ने उसका हौसला बढ़ाया।

बंदियों का जीवन बदलने के लिए जेल में किया सत्संग
मां निर्मला देवी ने हर कदम पर बेटी का साथ निभाया। वर्ष 2009 में देश के सार्वजनिक मंचों पर उन्होंने भजन प्रस्तुति प्रारंभ की। मध्य प्रदेश के धमनार में उनके गाये भजनों ने उन्हें पहचान दी। फिलहाल देश के सभी प्रांतों और विदेश मारीशस, नेपाल आदि में उनके भजनोपदेश हो चुके हैं।  वर्ष में तीन सौ दिन उनके कार्यक्रम तय रहते हैं। जेलों में बंदियों के जीवन परिवर्तन को उनकी भजन मंडली कारागारों में सत्संग कर चुकी हैं। अंजलि ने युवा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और चारित्रिक दृष्टि से कैसे सशक्त बने, इसके लिए वे एक पुस्तक लिख रही हैं।

भजनों की धुन में भूल गईं शादी
वैदिक संस्कृति के प्रचारार्थ  भजन गायिका अंजलि आर्या ने अविवाहित रहने का संकल्प लिया, ताकि समाज के लिए कुछ कर सके। पीएम नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व से प्रभावित हैं और उनसे मिलना चाहती हैं। कहती हैं कि नरेश निर्मल, घनश्याम प्रेमी, सहदेव सिंह बेधड़क की भजन शैली से भी सीखा। महिला भजनोपदेशिका पुष्पा शास्त्री, कलावती और उर्मिला उनकी प्रेरक है। विदुषी डॉ प्रियंवदा वेदभारती नजीबाबाद, आचार्या सूर्या वाराणसी, सुमेधा एवं सुकामा गुरुकुल चोटीपुरा की ओजस्वी वाणी वैदिक ज्ञान को समृद्ध बना रही है।