पूरे देश में कोरोना वायरस का आतंक मचा हुआ है, वहीं दिल्ली के बॉयज लॉकर रूम मामले ने भी तूल पकड़ लिया है। आम लोग ही नहीं, फिल्मी हस्तियां भी इन मामले पर खुलकर अपना गुस्सा जता रही हैं। सभी स्तब्ध हैं कि 15-16 साल के स्कूली लड़के सोशल साइट्स पर ग्रुप बनाकर अश्लील मैसेज के जरिए लड़कियों की जिंदगी खराब करने से लेकर दुष्कर्म करने तक की बातें कर रहे थे।
पूरे देश में कोरोना वायरस का आतंक मचा हुआ है, वहीं दिल्ली के बॉयज लॉकर रूम मामले ने भी तूल पकड़ लिया है। आम लोग ही नहीं, फिल्मी हस्तियां भी इन मामले पर खुलकर अपना गुस्सा जता रही हैं। सभी स्तब्ध हैं कि 15-16 साल के स्कूली लड़के सोशल साइट्स पर ग्रुप बनाकर अश्लील मैसेज के जरिए लड़कियों की जिंदगी खराब करने से लेकर दुष्कर्म करने तक की बातें कर रहे थे।
'यह तो कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक है'
फिल्म गली बॉय में एमसी शेर का किरदार निभाकर मशहूर हुए सिद्धांत चतुर्वेदी ने इस मामले पर हैरानी जताते हुए इसे कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक करार दिया है। वहीं, टीवी एक्टर शशांक व्यास ने कहा, ‘इस एक्ट को हल्के में नहीं लेना चाहिए। ऐसे लोगों के सामने जब तक कोई सख्त उदाहरण नहीं रखा जाएगा तब तक कोई ऐसी हरकत करने से नहीं डरेगा। कभी-कभी मुझे लगता है कि साइबर क्राइम एक शैतान है। सबसे पहले ऐसे पेजों को बैन किया जाना चाहिए, उसके बाद उन लोगों को भी जो इस पेज से जुड़े हैं या इसे चला रहे हैं, ताकि भविष्य में भी वो लोग ऐसी कोई प्रोफाइल न बना पाएं। मुझे लगता है पहली शिक्षा घर से आती है। लोगों को घर पर अच्छी शिक्षा देनी चाहिए, क्योंकि ज्यादार बच्चों की हरकतें इस बात पर निर्भर करती हैं कि बच्चों को घर पर क्या सिखाया जा रहा है और वो क्या सीख रहे हैं।’
मीरा राजपूत ने बताया, कैसे करें बेटों की परवरिश
शाहिद कपूर की पत्नी मीरा राजपूत दिल्ली की रहने वाली हैं। उन्होंने लड़कों की करतूतों पर नाराजगी व्यक्त करते हुए अपनी इंस्टा स्टोरी पर एक पोस्ट शेयर की। अपनी इस पोस्ट में उन्होंने लिखा कि माता-पिता अपने बेटों की परवरिश कैसे करें। मीरा लिखती हैं, अगर आप अपने बेटे की परवरिश भारत में कर रहे हैं तो इसे एक अनुरोध मानें। हमारी जिंदगी आपके हाथों में है। हमें सावधान रहने की सीख देने के बजाए अपने बेटों को कंसेंट के बारे में सिखाएं. हमें डर कर रहने के बजाए अपने बेटों को इज्जत करना सिखाएं. अपने बेटों को सिखाएं लैंगिक समानता, सिखाएं की 'ना' का मतलब क्या होता है। मीरा ने पोस्ट का दूसरा भाग शेयर किया, जिसमें लिखा - अपने बेटों को सिखाएं कि उनका महिलाओं के शरीर, अटेंशन और समय पर कोई हक नहीं। हमें नम्रता सिखाने के बजाए अपने बेटों को पर्सनल स्पेस के बारे सिखाएं. अपने बेटों को सिखाएं -ना घूरना। उन्हें हेल्थी मर्दानगी, रोमांस और सेक्सुअल रिलेशनशिप के बारे में सिखाएं।
अभिनेत्री मानवी गगरू ने लिखा खुला खत - ‘लड़के, लड़के ही रहेंगे’ से अब और काम नहीं चलेगा
अभिनेत्री मानवी गगरू ने इस मामले पर अपने विचार एक ओपन लेटर के जरिए सामने रखे हैं। अपने खुले खत में उन्होंने सबसे पहले पूर्व प्रथम महिला रहीं मिशेल ओबामा के एक वाक्य को उधृत किया है-
‘किसी भी समाज का मापदंड ये है कि वो अपनी महिलाओं और लड़कियों के साथ कैसा बर्ताव करता है।’ – मिशेल ओबामा
#बॉयजलॉकररूम, सवाल ये है कि ‘हम यहां तक कैसे पहुंचे?’ क्या ये हमारे पॉप कल्चर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को सामान्य मान लेने से हुआ? कैजुअल रेप जोक? पुराना लेकिन अब भी प्रचलित ‘शादी में बेटी देने’ का आइडिया या फिर उन पितृसत्तात्मक रिवाजों से? हां, मिसोजिनी (स्री जाति से द्वेष) घर से ही शुरू होती है। ये हमारे शब्दों में होती है। हमारी लिंग-आधारित नैतिकता से ये पनपती है।
हम इसका पूरा दोष खराब पेरेंटिंग पर डालकर जिम्मेदारी से बच नहीं सकते क्योंकि ये पहली बार नहीं है जब ‘बॉयज लॉकर रूम’ सामने आया है। और ये आखिरी बार भी नहीं होगा। हम सब इसमें भागीदार हैं। हर बार जब आप सेक्सिस्ट जोक पर हंसते हैं, जब आप अपनी बेटी की शादी के लिए, लेकिन बेटे की शिक्षा के लिए पैसा जोड़ते हैं, जब आप एक रेप विक्टिम से पूछते हैं कि उसने क्या पहना था या वो बाहर क्या कर रही थी, ये सब करने से आप एक यंग दिमाग को संभावित रूप से रिवार्ड या सजा दे रहे होते हैं।
'क्यों उन मर्दों को हम तर्क के इसी चश्मे से नहीं देखते?'
हम क्यों लगातार एक महिला का चरित्र उसके शरीर या जो वो करना चाहती है, उससे जोड़ते हैं? और क्यों उन मर्दों को हम तर्क के इसी चश्मे से नहीं देखते? क्यों हमने एक महिला की ‘इज्जत’ उसकी योनि में रख दी है, लेकिन ऐसा कुछ भी मर्दों के लिए नहीं किया गया?
हम एक पितृसत्तात्मक समाज में रहते हैं। पुरुषों के विशेषाधिकार हैं। हमें इससे बेहतर होना पड़ेगा। हमें अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करनी होगी। हमें टॉक्सिसिटी को सजा देने और सहानुभूति को रिवार्ड देने का स्किनेरियन मॉडल अपनाना होगा। हम अपने विचारों, शब्दों और एक्शन से सोच बना रहे हैं। हमें बेहतर करना होगा और ‘लड़के, लड़के ही रहेंगे’ से अब और काम नहीं चलेगा।
हमें उस सोच पर वार करना होगा, जो पुरुष को दुष्कर्मी बनाती है : स्वरा भास्कर
अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने ट्विटर पर लिखा, ‘ये कहानी हमें बता रही है कि कैसे कम उम्र में ही लड़कों में जहरीली पुरुषवादी सोच पनपना शुरू होती है। कम उम्र के लड़के खुशी-खुशी प्लान कर रहे हैं कि वो नाबालिग लड़कियों का कैसे यौन शोषण और सामूहिक यौन शोषण करेंगे। परिवार को और टीचर्स को इन बच्चों के साथ उनकी इस सोच के बारे में बातचीत करनी चाहिए। ऐसे जघन्य अपराध को रोकने के लिए सिर्फ दुष्कर्मियों को फांसी पर लटकाना काफी नहीं है। हमें उस सोच पर वार करना होगा जो किसी पुरुष को दुष्कर्मी बनाती है'।
एक्ट्रेस सोनम कपूर ने लिखा- 'इसमें इन बच्चों के माता-पिता का भी दोष है, जिन्होंने अपने बच्चों को ऐसे बड़ा किया।'
अभिनेत्री ऋचा चड्ढा ने लिखा, इस समस्या के कई पहलू हैं। टीनएजर पोर्न को सेक्स एजुकेशन से कन्फ्यूज कर रहे हैं। यह बहुआयामी समस्या है, क्योंकि हमारे नैतिकवादी देश में अभी भी यौन शिक्षा पर व्यंग्य कसे जाते हैं। वहीं डेटा भी फ्री है। यह कितना खतरनाक हो सकता है। मुझे लगता है आने वाले पांच सालों में यह हमारे चेहरे पर ही फटेगा।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.