चदलवदा अनंधा सुंदरमन भवानी देवी ओलंपिक में खेलने वाली भारत की पहली तलवारबाज हैं। ओलंपिक में उन्होंने भाग भी लिया पहला राउंड जीता, लेकिन दूसरा राउंड हार गईं, लेकिन हारकर भी देश का दिल जीत लिया।
नई दिल्ली। राजा-महाराजाओं की धरती रही भारत में तलवारबाजी कोई नई विद्या नहीं है। लेकिन अब भारत में तलवारबाजी को केवल मेले-तमाशों में, धार्मिक आयोजनों में ही देखा है। तलवारबाजी को खेल के रूप में देखने वाले कम ही लोग हैं। हकीकत ये है कि तलवारबाजी को खेल के रूप में अपनाने की कोशिश बहुत की कम युवा करते हैं। विदेशों में इस खेल को प्रमुखता से खेला जाता है। ओलंपिक में भी विदेशी खिलाड़ी तलवारबाजी में अपना श्रेष्ठ करते हैं। लेकिन भारत में आजतक ओलंपिक के लिए कोई भी तलवारबाज क्वालीफाई नहीं कर पाया था। चेन्नई की भवानी देवी ने देश के लिए कड़ी मेहनत की और ओलंपिक में अपना हुनर भी दिखाया। पहला राउंड बढ़िया खेला और जीतीं। लेकिन दूसरे राउंड में हारकर बाहर हो गईं। वे बेशक खेल में हारीं, लेकिन उन्होंने ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर देश का दिल जीत लिया।
मजबूरी में चुना था विकल्प लेकिन रचा इतिहास
चेन्नई की 27 साल की इस खिलाड़ी ने स्कूल के दिनों में मजबूरी में तलवारबाजी को चुना था। जब वह स्कूल पढ़ती थीं, तो तलवारबाजी सहित छह खेलों के ही विकल्प थे। जब उनको खेल चुनने थे, तो सभी खेलों में नामांकन हो चुका था। मजबूरी में उन्होंने तलवारबाजी को चुना। ये 2004 की बात है। उस समय उनकी उम्र 11 साल थी। भवानी जानती थीं कि वो जिस खेल को चुन रही हैं, उसे ज्यादा लोग नहीं जानते हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने तलवारबाजी में ही कुछ कर दिखाने की ठानी।
बनाया अपना मुकाम
तलवारबाजी में भवानी आगे बढ़ती रहीं, जिला, राज्य स्तर पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बाद उनका चयन भारतीय टीम के लिए हुआ। भवानी ने पहला अंतरराष्ट्रीय पदक 2009 राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप में तीसरे स्थान पर रहकर हासिल किया। साल 2010 की एशियन तलवारबाजी चैंपियनशिप में भी उन्होंने कांस्य पदक जीता था। 2014 एशियाई चैम्पियनशिप में व्यक्तिगत स्पर्धा का रजत पदक जीता जबकि अगले साल इसी चैम्पियनशिप के इसी स्पर्धा का कांस्य पदक अपने नाम किया था। भवानी 2017 में महिलाओं के विश्व कप में भारत की ओर से पहला अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक जीतने वाली तलवारबाज बनीं। 2018 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में सीनियर राष्ट्रमंडल तलवारबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। वह अब तक कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के पदक जीत चुकी हैं। भवानी आठ बार की नेशनल चैंपियन रह चुकी हैं। भवानी की इस समय विश्व रैंकिग 42 है।
खेल छोड़ने का भी बना लिया था मन
परिवार की आय कम होने के कारण भवानी इस खेल को छोड़ने का मन भी बना चुकी थीं। ट्रेनिंग से लेकर खेल में इस्तेमाल होने वाले सूट का दाम महंगा होने के कारण भवानी परेशान थीं और खर्चा न उठाने के कारण खेल छोड़ना चाहती थीं। बेटी को आगे बढ़ाने के लिए मां ने एक बार अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे। भवानी ने सोच लिया कि कितनी भी परेशानी उठानी पड़े, वो इस खेल में नाम कमाएंगी। भवानी के करियर में कई उतार-चढ़ाव आए। वह पहले इंटरनेशनल कंपटिशन में ब्लैक कार्ड पा चुकी थीं। वह तीन मिनट की देरी से पहुंची थीं और उन्हें सजा मिली और आयोजन से बाहर कर दिया गया। 2016 में रियो ओलंपिक में न खेल पाने के कारण भवानी ने चेन्नई के अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर यूरोप में ट्रेनिंग शुरू की। 2019 में उनके सिर से पिता का साया उठ गया। लेकिन वो अपने पिता का सपना पूरा करना चाहती थीं। अपने जुनून की बदौलत भारतीय तलवारबाज भवानी देवी ने जापान के टोक्यो में होने वाले ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर लिया है। ओलंपिक में खेली भीं। हालांकि दूसरे राउंड में बाहर हो गईं, लेकिन ओलंपिक तक पहुंचकर उन्होंने अपने इरादे जता दिए।
पीएम मोदी ने बढ़ाया हौसला
ओलंपिक में हार के बावजूद भी देशभर ने भवानी को सिर आंखों पर बैठाया। खुद पीएम मोदी ने उनके हौसले की तारीफ की। पीएम नरेंद्र मोदी ने भवानी देवी की उपलब्धि की तारीफ करते ट्वीट किया कि आपने अपना हर तरह से सर्वश्रेष्ठ दिया, जीत और हार जीवन का हिस्सा है। भारत आपके योगदान पर गौरवान्वित है। आप हमारे नागरिकों के लिए एक प्रेरणा हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.