भारत की 19 साल की महिला बॉक्सर मंजू रानी ने पहली बार महिला विश्व चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया और सिल्वर पंच लगाकर खुद के चयन को सही साबित कर दिया। रूस में खेले जा रहे वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप के 48 किलोग्राम भार वर्ग के फाइनल में वह गोल्ड मेडल से चंद कदम के फासले से चूक गईं। बीते रविवार को खेल गए फाइनल मुकाबले में मंजू को रूस की एकातेरिना पाल्तसेव से 4-1 से शिकस्त का सामना करना पड़ा। जिस कारण मंजू को रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
नई दिल्ली। भारत की 19 साल की महिला बॉक्सर मंजू रानी ने पहली बार महिला विश्व चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया और सिल्वर पंच लगाकर खुद के चयन को सही साबित कर दिया। रूस में खेले जा रहे वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप के 48 किलोग्राम भार वर्ग के फाइनल में वह गोल्ड मेडल से चंद कदम के फासले से चूक गईं। बीते रविवार को खेल गए फाइनल मुकाबले में मंजू को रूस की एकातेरिना पाल्तसेव से 4-1 से शिकस्त का सामना करना पड़ा। जिस कारण मंजू को रजत पदक से संतोष करना पड़ा। इस टुर्नामेंट में मंजू रानी के पदक को मिलाकर भारत की झोली में 4 पदक हो गए। इससे पहले एमसी मैरीकॉम, जमुना बोरो और लोवलिना बोरगोहेन ने कांस्य पदक अपने नाम किया था। वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में पहली बार हिस्सा ले रहीं मंजू को छठी वरीयता दी गई थी। फाइनल में उनका मुकाबला दूसरी वरीयता प्राप्त एकातेरिना से था। इससे पहले मंजू ने शनिवार को सेमीफाइनल में थाईलैंड की सी. रकसत को हराया था। मंजू ने वह मुकाबला 4-1 से अपने नाम किया था। गृह राज्य हरियाणा से मौका नहीं मिलने पर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पंजाब का प्रतिनिधित्व करने वाली मंजू विश्व चैम्पियनशिप के फाइनल में जगह बनाने वाली एकमात्र भारतीय थीं।
कबड्डी से छोड़ मुक्केबाजी पर किया फोकस, मां ने किया सहयोग
रोहतक के रिठाल फोगाट गांव की रहने वाली मंजू के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर का मुक्केबाज बनने की राह इतनी आसान नहीं थी। पहले वह कबड्डी की खिलाड़ी थीं। लेकिन इस टीम स्पोर्ट में ज्यादा दिन तक उनका मन नहीं लगा। इसी बीच उन्होंने मैरीकॉम और ओलंपिक पदक विजेता विजेंदर को देखा और पढ़ा तो मुक्केबाजी की तरफ आकर्षित हो गईं। व्यक्तिगत खेल होना इसका एक प्रमुख कारण था। मंजू के मुताबिक यहां जीत का श्रेय सिर्फ आपको मिलता है। मुक्केबाजी में कॅरियर बनाने को लेकर काफी दिनों तक ऊहापोह में रहने के बाद मंजू ने जब इस बारे में अपनी मां इशवंती देवी को बताया तो उन्होंने पूरा सहयोग दिया और हौसला बढ़ाया। इसके बाद मंजू मुक्केबाजी की प्रैक्टिस में जुट गईं। मंजू अपने इस नए खेल कॅरियर में स्थापित हो पातीं इससे पहले उनके परिवार को एक बड़ा झटका लगा। सीमा सुरक्षा बल में अधिकारी उनके पिता की साल 2010 में कैंसर के कारण अचानक मौत हो गई। जिस कारण मंजू की मां पर अपने चार बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आ गई। ऐसे में एकबार मंजू को लगा कि उनका कॅरियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया, लेकिन मां ने यहां भी हिम्मत नहीं हारने दी और खेल पर फोकस करने को कहा। मंजू ओलंपिक पदक विजेता विजेंदर सिंह और एमसी मैरीकॉम को अपना आदर्श मानती हैं।
चाचा ने भी दिया भरपूर सहयोग
मंजू के मुताबिक उनके चाचा साहेब सिंह ने उनका और उनके पूरे परिवार को भरपूर सहयोग किया। उन्हीं के कारण आज वह इतनी आक्रामक मुक्केबाज बन सकीं हैं। मंजू ने बताया मजेदार बात यह है कि चाचा साहेब सिंह मुक्केबाजी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते थे। ऐसे में मुझे सिखाने के लिए वह पहले खुद सीखते थे। बकौल मंजू मुक्केबाजी की बारीकियां सीखने के बाद उन्हें मौके की तलाश थी और हरियाणा से मौका नहीं मिलने पर किसी दूसरे राज्य से खेलने का फैसला किया। इसके लिए पंजाब विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू किया। राज्य टीम में जगह बनाने के बाद राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में जगह पक्की की और जनवरी में भारतीय शिविर का हिस्सा बनीं। मंजू ने इसी साल पहली बार स्ट्रांजा मेमोरियल टूर्नामेंट खेलते हुए रजत पदक भी जीता था।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.