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नौकरी छोड़कर बेटे को किसान बनाने निकली चंचल

Published - Thu 19, Dec 2019

अजमेर की चंचल कौर को खेती किसानी इतना पसंद था कि उन्होंने अपनी लाख रुपये महीना की नौकरी छोड़कर इस पर काम शुरू किया और वह लोगों को भी किसानी के प्रति जागरुक कर रही हैं।

gurubas

राजस्थान के अजमेर की रहने वाली चंचल के पति राजेन्द्र सिंह और चंचल कौर दोनों रेलवे में कार्यरत्त थे। चंचल अजमेर के रेलवे अस्पताल में चीफ मैट्रन के पद पर कार्यरत्त थीं। लेकिन एक दिन उन्होंने अचानक फैसला लिया कि वह अब नौकरी नहीं करेंगी और अपने बेटे को सफल किसान बनाएंगी।बेटे को किसानी के प्रति जागरुक करने के लिए उन्होंने इंदौर में जमीन खरीदी और आज वह अपने बेटे के साथ खेती की बारीकियों पर काम कर रही हैं।चचंल का कहना है कि वह खुद एक किसान की बेटी हैं, लेकिन परिवार ने कभी नहीं चाहा कि कोई किसानी करे। मैंने बचपन से यही सुना कि अगर अच्छे से नहीं पढ़े तो अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी और फिर खेती करनी पड़ेगी। चंचल का कहना है कि कोई नहीं चाहता कि उनके बच्चे गांव की ओर लौटे और किसानी करें, लेकिन वह अपने बच्चे को अलग जिंदगी देना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर खेती करने का निर्णय लिया। दरअसल चंचल की ननद का कैंसर से निधन हो गया था। डॉक्टरों ने कि अनियमित जीवनशैली के कारण उनको ये बीमारी हुई। इसी बात ने उन्हें और अधिक सोचने पर मजबूर कर दिया कि जीवनशैली में कैसे बदलाव लाया जा सकता है।

पैसा ही सबकुछ नहीं
चंचल और उनके पति राजेन्द्र सिंह ने सोचा कि पैसा ही सबकुछ नहीं है। बड़े शहर में रहकर हम अच्छा पैसा कमा सकते हैं, लेकिन जीवन स्तर अच्छा न हो तो कोई लाभ नहीं होता। उन्होंने इस पर विचार किया और फिर इंदौर के पास एक गांव, असरावाद बुजुर्ग में जमीन खरीदी। साल 2016 में चंचल कौर ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। चंचल कहती हैं, “नौकरी छोड़ने का फैसला बहुत मुश्किल था। पर फिर जब मैंने अपने बेटे को देखती तो मुझे लगता था कि अभी इसे मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है। और फिर ऐसा नहीं था कि हमारा लाइफस्टाइल बहुत शानदार था और हम गांव में रह नहीं सकते थे। हमने हमेशा ही सादा जीवन जिया है और अपने बच्चे को भी वैसे ही रख रहे हैं। बस लोगों की बातें सुनकर थोड़ा लगता था, पर मेरे लिए मेरे बेटे से बढ़कर कुछ नहीं।”2017 में चंचल अपने बेटे के साथ इंदौर शिफ्ट हो गयीं। अभी वर्तमान में वो बाईपास पर एक फ्लैट में रहते है। क्योंकि उनके अपने घर का निर्माण अभी शुरू नहीं हुआ। चंचल केक पति राजेंद्र ने पदम श्री राजेन्द्र पालेकर से प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग ली और पूरे परिवार ने पद्मश्री डॉक्टर जनक पलटा मिगिलिगन जी से सोलर कुकिंग, सोलर ड्राईंग और जीरो-वेस्ट लाइफस्टाइल जीने की कला भी सीखी।”

बेटे के लिए नयी जिंदगी
चंचल और उनके पति राजेंद्र सिंह अपने ग्यारह साल के बेटै गुरुबक्ष सिंह को अलग जीवन देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बेटे को खेती के अलावा कई चीजों का प्रशिक्षण दिलवाया। लेकिन गुरुबक्ष सिंह ने माता-पिता के फैसले को हाथों-हाथ लिया और आज वह अपनी जिंदगी खुलकर जी रहा है। वह अपनी मां चंचल के साथ खेत पर जाता है और पूरी लगन से काम करता है। जैविक खेती से लेकर अन्य सामाजिक गतिविधियों तक, हर जगह गुरुबक्ष पूरे मन से काम करता है। और तो और, गाँव में उसके अब खूब सारे दोस्त हैं, जिन्हें वह सोलर कुकिंग के या फिर खेती के तरीके सिखाता रहता है। फिर खेल-खेल में उनसे भी कुछ न कुछ सीखता है। सबसे ज़्यादा उसे जानवरों से लगाव है।

प्रकृति से पूरी तरह जुड़ा है परिवार
चंचल का परिवार सोलर कुकर पर खाना बनाना है। किचन की सब्जी खेतों में उगाई जाती हैं। खेत में जो सब्जी ज्यादा होती है, उसे बेचा नहीं जाता। परिचितों और दोस्तों के बीच बांट दिया जाता है। प्लॉस्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह घर में बैन है। घर के सदस्य ईको फ्रेंडली चीजों का इस्तेमाल करते हैं।