ब्रिटेन के बर्मिंघम में रहने वाली पंजाबी कुड़ी पर्व कौर अपने ढोल बैंड 'इटर्नल ताल' से ब्रिटिश पंजाबी संगीत की दुनिया में एक नया अध्याय जोड़ रही हैं। पर्व कौर ब्रिटेन की पहली महिला ढोल वादक हैं। वे कई देशों में परफॉर्म कर चुकी हैं।
नई दिल्ली। पंजाबी जहां भी जाते हैं अपनी संस्कृति, सभ्यता, रीति-रिवाज, स्वाद और कला को न कभी भूलते हैं और उससे दूसरों को उसका मुरीद बना देते हैं। कुछ ऐसा ही ब्रिटेन में रहकर पर्व कौर ने किया। पंजाबी परिवार से मिले संगीत के गुर को आगे बढ़ाते हुए आज पर्व ब्रिटेन को अपनी धुन पर नचा रही हैं।
विरासत में मिला संगीत
पर्व कौर के पिता बलबीर भुजंगी पिछले पचास सालों से ब्रिटेन में भंगड़ा बैंड चला रहे हैं। उनके पिता का बैंड ब्रिटेन का सबसे पुराना भंगड़ा बैंड है। पिता को देखकर ही पर्व को ढोल के प्रति दिलचस्पी बढ़ी। बचपन में जब उन्होंने पिता के साथ बैंड कार्यक्रमों में जाना शुरू किया तो मां बहुत डांटा करती थीं। उनका कहना था कि पढ़ाई करो, खाना बनाना सीखो। लेकिन पिता उनको ले जाने से मना नहीं करते। पहले पर्व का रूझान गायकी में था, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें ढोल से प्यार हो गया और यहां से उन्हें ढोल में ही कुछ नया करने की प्रेरणा मिली।
खुद से कहा, जब पापा कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं
छोटी उम्र में पिता के साथ बैंड कार्यक्रमों में जाने के दौरान पर्व ने पंजाबी संगीत पर झूमते लोग, तालियां बजाते, आनंद लेते लोगों को देखा। वो इसे देखकर खुश होतीं कि लोगों को इससे कितना सुकून मिलता है। ये चीजें उन्हें आकर्षित करने लगी। एक बार उन्होंने अपने पिता से पूछा कि बैंड में कोई लड़की क्यों नहीं है, तो पिता ने कहा कि शोर-शराबे के माहौल के बीच लड़कियों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। लेकिन पर्व ने सोच लिया कि जब पिता कर सकते हैं, तो वे क्यों नहीं। इसी सोच के साथ उन्होंने 1999 में ढोल बैंड 'इटर्नल ताल की नींव रखी। बर्मिंगम में अपने रिहायशी इलाके में दुकानों, कैफे, कॉलेजों वगैरह में बैंड के पोस्टर चस्पा किए। लोगों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया। पर्व के साथ पढ़ने वाली दो लड़कियां भी उनके साथ थीं। समस्या ये थी कि कोई लंबे समय तक उनके बैंड का सदस्य नहीं रहता था। सबकी अपनी मजबूरी और काम थे।
मुश्किलों से भी हुआ सामना
लड़कियों का बैंड, पुरुष बैंड के लोगों को पसंद नहीं था और दूसरा लड़कियों पर मर्दों की भी निगाहें टेढ़ी ही रहती थीं। कभी कार्यक्रम के दौरान उनके माइक की तार निकाल दी जाती। कई बार बैंड को बुक कर सामने वाली पार्टी कहती कि ठीक से नहीं कर पा रहे हो। लेकिन पर्व इससे हारीं नहीं। धीरे-धीरे बैंड को पहचान मिलने लगी। 2009 में उनके साथ संगीता कोहली जुड़ीं। वहीं सामाजिक नजरिया भी टीम को परेशान करता था। बारह किलों के ढोल को कंधे पर टांगकर घंटो बजाना भी आसान नहीं था। लेकिन टीम ने खुद को सब मुश्किलों से लड़ने के लिए तैयार किया। धीरे-धीरे इटर्नल की ताल आकर्षण का केंद्र बनने लगी। इसका सबसे बड़ा कारण था कि टीम की सभी सदस्या लड़कियां थीं। लोग उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुलाने लगे। ढोल की थाप पर थिरकते, खुश होते देख पर्व कौर को लगा कि अगर हम अपने किसी भी काम से किसी इंसान को दो पल का सुकून दे सकते हैं, तो इससे अच्छा क्या है।
ब्रिटेन समेत कई देशों में किया परफॉर्म
पिछले बाइस सालों में पर्व का बैंड ब्रिटेन समेत कई देशों में अपने ढोल की थाप पर लोगों को थिरकने के लिए मजबूर कर चुका है। पर्व बताती हैं कि एक बार स्कॉटलैंड में पुलिस से जुड़े कार्यक्रम में हमें बुलाया गया था। वहां ऑडियंस अलग थी लेकिन जब हमने बजाना शुरू किया तो लोग बस हमारी ओर खिंचते चले आए।
भंगड़े की धुन में किए कई प्रयोग
पर्व के बैंड की सबसे खास और अलग बात ये है कि भांगड़ा संगीत का आधार लेते हुए भी पर्व कौर ने इसे ब्रिटेन के विविधता भरे समाज के मुताबिक बनाया इटर्नल बैंड ने ढोल पर अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं की धुनों के साथ जुगलबंदी के जरिए इस वाद्य यंत्र को एक नया संदर्भ दिया है। पर्व कौर ढोल को फिटनेस से जोड़ने का दिलचस्प काम भी कर रही हैं। पर्व कौर और उनका इटर्नल बैंड ब्रिटिश-पंजाबी संगीत के आधुनिक इतिहास का वो हिस्सा हैं जिसकी जड़े भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में भी हैं और परंपराओं को तोड़ने वाली ऊर्जा से भरी एक युवा लड़की के जुनून और जिद में भी। उनके जीवन पर बॉलीवुड में बॉयोपिक भी बनने वाली है, जिसमें दीपिका से लेकर अनुष्का शर्मा के काम करने की चर्चा है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.