मुंबई की चेतना मेहरोत्रा घरेलू हिंसा की शिकार हुईं और पति से अलग होकर जीवन बिताने लगीं। शून्य से शुरुआत कर चेतना ने रंगमंच में अपना नाम बनाया और आज वो युवाओं में छिपी कला को निखार रही हैं।
मुंबई। मुंबई की चेतना मेहरोत्रा जब शादी करके अपनी ससुराल पहुंची, तो आंखों में बहुत से सपने थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ने वाली और एनएसडी से समर एप्लिकेशन प्रोग्राम करने वाली चेतना ने सोचा था कि वह डांस और थियेटर में करियर बनाएंगी। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं और ससुराल पहुंचने के बाद सपने मन में ही दबे रह गए। काबिल कत्थक डांसर चेतना शादी के बाद करीब 12 सालों तक घरेलू हिंसा का दंश झेलती रहीं। इस बीच एक बेटे को जन्म दिया लेकिन परेशानियां खत्म नहीं हुईं। आखिर उन्होंने पति से अलग होने का फैसला किया। उस समय उनका बेटा बहुत छोटा था। नौकरी करने की बजाय चेतना ने अपने हुनर को पहचान बनाकर आगे बढ़ने की ठानी और 2011 में उन्होंने अपना स्टार्टअप रंगभूमि ए हैप्पी प्लेग्राउंड शुरू किया। आज उनका यह स्टार्टअप मुंबई, पुणे और दूसरे शहरों में स्कूल और कॉरपोरेट सेक्टर में ‘रंगभूमि’ युवाओं और महिलाओं को जोड़ने का काम करता है। इसके जरिए जहां युवाओं में छुपी कला को निखारा जाता है, वहीं महिलाओं में ये भरोसा पैदा किया जाता है कि उनके पास भी पुरुषों की तरह बड़े फैसले लेने का अधिकार है।
अकेले झेली बहुत सी परेशानी
पति से अलग होने के बाद चेतना के सामने परेशानियों का अंबार था। न सिर पर छत न कोई सहारा न नौकरी। घरेलू हालात बेहद खराब थे और साथ में था एक मासूम बेटा। अकेली होने के कारण उनको अपने बच्चे के साथ-साथ ‘रंगभूमि’ का काम भी देखना पड़ता था। कारोबारी परिवार से ना होने के कारण उनको ‘रंगभूमि’ से जुड़ा काम खुद ही सीखना पड़ा। शुरूआत में लोग ये नहीं समझ पाते थे कि उनके लिए ये आर्ट शैली क्यों उपयोगी है। 2-3 सालों तक उन्होने कई काम मुफ्त में किए। धीरे-धीरे लोगों को समझ में आने लगा कि ‘रंगभूमि’ एक अलग तरीके की शैली है। चेतना मेहरोत्रा ने खुद ही धीरे-धीरे सब सीखा। कैसे फाइल तैयार करनी है। क्लाइंट से कैसे बोलना है आदि।
युवाओं को कुछ अलग सिखाती है रंगभूमि
‘रंगभूमि’में युवाओं को अपनी भाव भंगिमाओं के इस्तेमाल से कैसे किरदार को निभाया जाता है इसका हुनर सिखाया जाता है। ‘रंगभूमि’ में बच्चों को सिखाता है कि कैसे हर पल थियेटर के माध्यम से अपने आप को अपने अंदर जाकर समझ सकते हैं और अपने को दूसरों के सामने कैसे बेहतर तरीके से पेश कर सकते हैं। इसके पीछे ‘रंगभूमि’ का मकसद किरदारों को रोजमर्रा के जीवन से उठाकर उसे स्टेज में प्रस्तुत करना है। जिससे थियेटर में किरदार वास्तविक लगे। यही वजह है कि चेतना मेहरोत्रा ‘रंगभूमि’ को केवल थियेटर कहने की बजाय उसे ड्रामा फॉर लर्निग एन्ड रिफ्लेक्शन ऑफ लाइट कहती हैं। चेतना ने तीन साल अकेले सबकुछ संभाला और आज उनकी टीम में 48 लोग हैं। समाज में जागरूकता लाने के लिए उद्देश्य से उन्होने कैंसर अस्पताल, स्लम इलाकों, जेल और अनाथ आश्रमों में भी थियेटर किया है। इस दौरान बच्चे भी उनके साथ थे। चेतना मेहरोत्रा की योजना ‘रंगभूमि’ को देश भर के स्कूलों तक ले जाने की है इसके बाद वो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसे ले जाना चाहती हैं।
कविता की शैली में थियेटर करती हैं चेतना
चेतना का ग्रुप रंगभूमि थियेटर को एक अलग अंदाज में पेश करता है। वह कविता शैली के आधार पर थियेटर करते हैं और दर्शकों को सीधे अपने साथ जोड़ते हैं। अपनी काम के दौरान वह इंटरनेशनल थियेटर शैली जैसे प्लेबैक थियेटर, थियेटर ऑफ ऑपरेट, थियेटर इन एजुकेशन जैसी आर्ट शैली की शुरूआत की है।
कई शहरों में फैला है रंगभूमि
चेतना का ग्रुप रंगभूमि मुंबई के पांच स्कूलों के अलावा पुणे, बेंगलुरू, हैदराबाद के स्कूलों के साथ काम कर रहा है। इसमें स्कूली पाठ्यक्रम के साथ थियेटर भी सिखाया जाता है। ‘रंगभूमि’ का पाठ्यक्रम कक्षा 1 से 12वीं तक के बच्चों के लिए डिजाइन किया गया है। कक्षा के हिसाब से बच्चों को थियेटर की अलग-अलग शैली सिखाई जाती है। ‘रंगभूमि’ इस वक्त करीब 28 सौ बच्चों के साथ काम कर रहा है। वहीं ये अब तक करीब 350 स्कूली बच्चों को प्रशिक्षित कर चुका है। ‘रंगभूमि’ कई कॉरपोरेट सेक्टर की महिलाओं के साथ भी काम कर रहा है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.