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देश की पहली एमबीए सरपंच छवि ने बदली गांव की 'छवि'

Published - Thu 27, May 2021

मुंबई में मल्टीनेशनल कंपनी की मोटी सैलरी वाली नौकरी छोड़कर राजस्थान के टोंक जिले के सोड़ा पंचायत की सरपंच बनी छवि राजावत ने पूरे पंचायत की छवि बदल दी है। देश की पहली एमबीए सरपंच की नीतियों के कारण यह पंचायत विकास के लिए सरकारी पैसे पर निर्भर नहीं है। यहां प्राइवेट सेक्टर से इनवेस्टमेंट कराकर विकास किया जा रहा है। सोढ़ा पंचायत में पानी, बिजली और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं की बात अब पुरानी हो चुकी है। इन समस्याओं को दूर कर अब गांव बैंक, एटीएम, सौर ऊर्जा, वेस्टमैनेजमेंट ,वाटर मैनेजमेंट सिस्टम के अलावा पशुओं के लिए अलग से घास के मैदान तैयार करने जैसे प्रोजेक्ट को पूरा कर रहा है। आइए जानते हैं छवि के प्रयासों से कैसे बदली गांव की सूरत...

नई दिल्ली। छवि राजावत का जन्म साल 1980 को राजस्थान के टोंक जिले के सोड़ा गांव में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा ऋषि वैली स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल अजमेर से 12वीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद लेडी श्रीराम कॉलेज दिल्ली से ग्रेजुएशन किया। फिर पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ माडर्न मैनेजमेंट से एमबीए किया। सात साल तक दिल्ली और जयपुर में कई कंपनियों में नौकरी की। नौकरी छोड़ी तब एक लाख रुपए महीना वेतन मिलता था। छवि कहती हैं कि नौकरी छोड़ने का वाकया भी एकदम हुआ। साल 2010 में छवि एमबीए कर मुंबई की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर रही थीं। एकबार छुट्टियों में गांव आईं तो ग्रामीणों ने कहा इसबार सरपंच तुम्हीं बन जाओ। महानगर की जिंदगी जीने वाली और घुड़सवारी जैसे शौक पालने वाली छवि के लिए ये एक मजाक की तरह था, लेकिन जब घरवाले जिद करने लगे तो अनमने ढंग से ही सही, छवि ने सरपंच का चुनाव लड़ा और जीत गईं। उस साल गांव में सूखा पड़ा था। पानी की खासी दिक्कत थी। महिलाएं दूर-दूर से पानी लाती थीं। छवि ने गांव की बुरी हालत देख कर कुछ करने की ठान ली। सबसे बड़ी और पहली चुनौती पानी की थी। इस समस्या को हल करने के लिए छवि ने वाटर मैनेजमेंट के एक्सपर्ट को गांव में बुलाया। उन्होंने गांव का सर्वे कर एक रिपोर्ट बनाई की अगर गांव में तालाब को 100 एकड़ के बड़े जलाशय में बदल दिया जाए तो गांव की समस्या दूर हो जाएगी। लेकिन ऐसा करने के लिए कम से कम 2 करोड़ रुपये की जरूरत थी। ऐसे में छवि ने सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने शुरू किए। वहां उन्हें जानकारी हुई कि ऐसी कोई योजना ही नहीं है, जिसमें 20 लाख रुपये से ज्यादा किसी गांव में तालाब के लिए दिया जा सके। इसके अलावा आज भी सरकार गांव में मशीन से काम करने के लिए पैसे नहीं देती। फिर पूरे गांव के साथ मिलकर श्रमदान शुरू किया। यह देख एक्सपर्ट ने कहा कि ऐसे में तो तलाब की खुदाई में 20 साल लग जाएंगे। छवि के मुताबिक यह सुनने के बाद मैं बेहद उदास हो गई थी। लगता था कि कुछ कर नहीं कर पा रही हूं, क्यों सरपंच बन गई। तब मेरे माता-पिता और ताउ ने कहा कि हम अपने पैसे तुम्हारी खुशी और गांव की भलाई के लिए देंगे।

चार दिन में खुद के प्रयास से जुटाए 20 लाख रुपये, दूर की पानी की समस्या 

छवि के मुताबिक सरकार की ओर से निराशा मिलने के बाद उन्होंने निजी कंपनियों से संपर्क किया तो वे भी आनाकानी करती दिखीं। हारकर छवि ने अपने पिता, दादा और उनके तीन दोस्तों के प्रयास से चार दिन में 20 लाख रुपये इकट्ठे किए। इसके बाद उसका इंटरव्यू रेडियो पर हुआ। जिसको सुनकर दिल्ली की एक महिला ने 50 हजार रुपये का चेक भेजा। इसके बाद छवि ने गांव के तालाब खुदवाया और जब बारिश हुई तो तालाब में पानी इकट्‌ठा हो गया। आज गांव में यह स्थिति है कि खेती और पशुपालन के लिए पर्याप्त पानी है। इसके बाद छवि ने पंचायत में 40 से अधिक सड़कें बनवाई। सौर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाते हुए जैविक खेती पर जोर दिया। उनके इन्हीं प्रयासों से आज गांव ही नहीं दूसरे गांवों के लोगों के लिए भी रोल मॉडल बन गई हैं।

हारे हुए सरपंच ने विकास में डाली बाधा, लेकिन नहीं हारीं छवि

सरपंच बनने के बाद छवि लगातार गांव के विकास के लिए काम कर रही थीं। ग्रामीण भी उनका पूरा सहयोग कर रहे थे। लेकिन छवि से चुनाव में शिकस्त खाने वाले सरपंच को यह बात रास नहीं आ रही थी। उसने गांव में जाति के आधार पर दो गुट बनवा दिए। बात-बात पर विवाद होने लगा। छवि कहती हैं कि चारागाह का रास्ता निकालने को लेकर कुछ लोगों ने हम पर हमला बोल दिया। इसमें उन्हें और उनके बुजुर्ग पिता को गंभीर चोटें आईं थीं। अस्पताल तक में भर्ती होना पड़ा। इसके बावजूद छवि अपने अटल इरादे पर कायम रहीं। अब हमला करने वाले भी छवि की तारीफ करते हैं। छवि सप्ताह में एक दिन पंचायत भवन में बैठती हैं। पंचायत का सारा काम अब ऑनलाइन होता है। पेंशन से लेकर जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने तक का पूरा काम डिजिटल है।

घर-घर पहुंच रहा साफ पानी, पंचायत का हर घर रोशन

ग्रामीणों को साफ पानी मिल सके इसलिए छवि ने गांव में पानी की टंकी बनवा दी है। इस टंकी की मदद से अब हर घर तक पानी पहुंच रहा है। गांव की सड़क हो या फिर बिजली, हर जरूरी चीज का इंतजाम खुद करवाती हैं। अब गांव में 24 घंटे बिजली आती है। पहले 6 घंटे भी बिजली नहीं आती थी। पंचायत में दूर-दराज के जिन घरों में बिजली विभाग ने फंड नहीं होने की बात कहकर तार नहीं डाले थे, वहां दिल्ली की एक निजी कंपनी की मदद से सौर ऊर्जा की व्यवस्था कराई गई है। ऐसे सौर ऊर्जा वाले घरों में 150 रुपए मेंटेनेंस लिया जाता है। इन घरों में आजादी के बाद पहली बार सौर ऊर्जा की मदद से बिजली पहुंची है।

एटीएम-बैंक की दिलाई सुविधा, सफाई पर विशेष जोर

छवि ने गांव में स्टेटबैंक की शाखा और एटीएम भी खुलवाए हैं, जो किसी गांव में पहला है। इसके अलावा गांव में हर सप्ताह सार्वजनिक सफाई होती है और पंचायत स्तर पर सफाई कर्मचारी भी रखे गए हैं। इस गांव में हर घर में शौचालय है। गांव की महिलाएं खुद सुबह उठकर ये देखने जाती हैं कि कोई महिला टॉयलेट के लिए खुले में तो नहीं जा रही है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ऊषा पारीक कहती हैं कि हर सुबह हम चार बजे पूरे गांव में घूमते हैं कि कोई महिला खुले में शौच न जाए, क्योंकि उन्हें समझाकर उनकी आदत बदलनी है। अब गांव में बहुत बदलाव आया है। सफाई को लेकर एक निजी कंपनी की मदद से छवि वेस्ट मैनेजमेंट का सिस्टम भी बना रही हैं जहां पर बायोडेग्रेबल मैटेरियल से ऊर्जा बनाई जाएगी। ये किसी गांव में अपनी तरह का अनूठा प्रयोग है। छवि कहती हैं कि ये मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसके लिए मैं मल्टीनेशनल कंपनियों से टाईअप कर फंड ला रही हूं। गांव में सबसे ज्यादा आकर्षक और अच्छी योजना है कि यहां तैयार किया जा रहा एक बड़ा सा बाग। इसमें 35 हजार पेड़ तो लगाए ही गए हैं। साथ ही तरह-तरह के घास यहां की जलवायु और मिट्टी के हिसाब से लगाई गई है, जो कि गांव वाले काटकर अपने जानवरों को खिलाते हैं। ग्रामीण यहां पर मवेशी भी छोड़ जाते हैं जो फेंसिंग होने की वजह से सुरक्षित रहते हैं।

राजधानी दिल्ली तक सोड़ा ग्राम पंचायत की चर्चा

छवि के कारण सोड़ा गांव की चर्चा दिल्ली तक में हो रही है। दिल्ली के अलग-अलग कॉलेज के लड़के-लड़कियां सोड़ा आते हैं। वे गांव वालों को देश-समाज के बारे में जानकारियां देते हैं। इन्हें नई-नई बातें समझाते हैं। इनका कहना है कि ये महिलाओं को पीरियड जैसे मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार करते हैं और समझाते हैं कि ये कोई बुरी चीज नहीं, बल्कि जीवन का सामान्य हिस्सा है। दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा श्रेयांसी कहती हैं, पहले लड़कियां पीरियड जैसी समस्या पर बात नहीं करती थीं, लेकिन अब वो खुलकर अपनी समस्याएं बताती हैं और हम उन्हें इनका निदान समझाते हैं। छवि ने गांव में खुद के पैसे से बीएड कॉलेज और स्किल सेंटर भी खुलवाया है जिसमें ट्रेनिंग दी जाएगी।

विदेश में दिखाई देश की धमक, राष्ट्रपति कर चुके हैं सम्मानित 

संयुक्त राष्ट्र के 11वें इन्फो पॉवर्टी वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस में छवि ने अपनी कुशल प्रतिभागिता दर्ज की। 24 और 25 मार्च 2011 को हुई संयुक्त राष्ट्र की ओर से हुई इस बहस में छवि ने ग्राम सरपंच के रूप में प्रतिनिधित्व किया। कार्यक्रम की अध्यक्ष ने जब छवि का परिचय गांव की सरपंच के रूप में कराया तो कॉन्फ्रेंस में बैठे दिग्गजों के चेहरों के रंग बदल गए। आमतौर पर एक महिला ग्राम सरपंच की छवि हम भारतीय के मानस में भी कुछ अलग तरह उभरती है। सिर पर पल्लू, चेहरे पर संकोच, शब्दों की हकलाहट, कम्युनिकेशन के लिए अन्य पर निर्भर, आंखों में अचानक बड़े लोगों के बीच आ जाने का डर। संयुक्त राष्ट्र की उस बहस में शामिल लोगों के लिए भी यह सोच उतनी ही स्वाभाविक थी। वे छवि राजावत को देखकर इसलिए हतप्रभ रह गए कि उनके सामने खड़ी वह सरपंच एक आकर्षक मॉडल या बॉलीवुड की अभिनेत्री जैसी लग रही थी। कॉन्फ्रेंस में गरीबी से लड़ने और विकास को बढ़ावा देने के लिए मंथन किया जा रहा था। छवि ने आत्मविश्वास से लबरेज हो अपनी बात रखी।

विकास की रफ्तार को तेज करने पर फोकस होने का आह्वान

उसने कहा, 'सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) को हासिल करने के लिए विभिन्न रणनीतियों पर विचार करना जरूरी है। यदि भारत इसी धीमी गति से प्रगति करता रहा जैसी पिछले 65 साल में की है, तो यह उचित नहीं कहा जा सकता। भला, हम कैसे सफल होंगे जबकि अब भी पानी, बिजली, शौचालय, स्कूल और नौकरी लोगों के लिए सपने की तरह है। मैं जानती हूं कि हमें यह थोड़े भिन्न तरीके से करना है और तेजी से करना है। पिछले साल ही मैंने गांव वालों के साथ मिलकर कई बदलाव किए। जबकि हमारे पास कोई बाहरी सहायता नहीं थी। हमने एनजीओ, सरकारी या निजी मदद भी नहीं ली। एमडीजी के लक्ष्य के लिए हमारे पास कॉर्पोरेट की दुनिया से मदद आती है। छवि के इस संबोधन को सभी ने खूब सराहा। छवि के बेहतरीन काम के लिए साल 2011 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें सम्मानित किया था।