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प्रताड़ित महिलाओं के पुनर्वास में लगी हैं छुटनी देवी 

Published - Mon 03, May 2021

जब पंचायत ने छुटनी पर डायन होने का आरोप लगाया और तांत्रिक ने मैला पिलाने की बात कही, तो किसी तरह उन्होंने खुद को उनके चंगुल से बचाया। उस घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी। अब प्रताड़ित महिलाओं की सहायता करना ही छुटनी का धर्म है।

chutani devi

छुटनी देवी, झारखंड के सरायकेला खरासावां जिले की रहने वाली हैं। वह झारखंड में डायन प्रथा की शिकार महिलाओं के पुनर्वास का काम कर रही हैं। उनका नाम उन चुनिंदा लोगों में सबसे ऊपर आता है जिन्होंने इस कलंक से महिलाओं को मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठाया है। वह कहती हैं, डायन प्रथा को लेकर मैंने जो झेला है, उसे व्यक्त करती हूं, अनेक बैठकों, संगोष्ठियों में शामिल होती हूं। लेकिन मरते दम तक उन दिनों को नहीं भूल सकती, जब अच्छे कपड़े पहनना, और सुंदर होना मेरे लिए अभिशाप बन गया।' महज 12 वर्ष की उम्र में उनके घर वालों ने उनका विवाह कर दिया था? वह कुछ ही साल में तीन बच्चों की मां बन गई। उनकी जिंदगी खुशहाल चल रही थी। लेकिन उनका यह खुशहाल जीवन पड़ोसियों को रास नहीं आ रहा था। सितंबर 1995 की बात है, जब एक दिन उनकी पड़ोसी की बेटी बीमार पड़ गई। दवाई कराने के नाम पर उसे तांत्रिक के हवाले कर दिया। तांत्रिक ने कहा कि बच्ची पर डायन का साया है। बाकी कसर लड़की ने पंचायत में यह कहकर पूरी कर दी, कि सपने वह उसे परेशान करती है। इसके बाद हुई कुछ अन्य घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए लोगों ने छुटनी देवी को डायन घोषित कर दिया। इसके बाद उन्हें अपनी ससुराल छोड़नी पड़ी और मायके में जाकर रहना पड़ा। 

अत्याचारों से गांव छोड़ा
छुटनी को जब डायन करार दे दिया गया तो पंचायत ने उन पर जुर्माना लगाया। उन्होंने जुर्माना अदा भी कर दिया। लेकिन उससे कुछ ठीक नहीं हुआ। लोगों ने तांत्रिक को बुलाया, जिसने कहा कि मानव मल पिलाने से डायन हट जाती है। हालांकि वह लोग उन्हें मल पिलाने में कामयाब नहीं हो सके। छुटनी अपने घर नहीं गई, वह पति को गांव में ही छोड़ बच्चों के साथ किसी तरह अपने मायके आई। 

बदली किस्मत
मायके में भी लोगों का व्यवहार बदल गया, वे छुटनी को देखकर दरवाजा बंद कर लेते थे। तब उन्होंने इसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। जिसके आधार पर कुछ लोग गिरफ्तार हुए, पर जल्द छूट गए। हालांकि गांव में कुछ नहीं बदला, लेकिन उनकी किस्मत बदल गई। अपने भाइयों की मदद से उन्होंने मायके में ही अपना आशियाना बनाया। इसके बाद छुटनी ने डायन प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाना और दोषियों के ​खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया। 

पुनर्वास केंद्र बनाया
इस बीच वह एक संगठन के संपर्क में आई और उनके साथ काम करना शुरू कर दिया। किसी महिला को प्रताड़ित करने की सूचना पर वह खुद जाती हैं, उनकी टीम में अलग-अलग गांवों से तकरीबन 62 महिलाएं है। वह पहले लोगों को समझाती हैं और न मानने पर कानून की चौखट तक पहुंचाती हैं। इसके साथ ही वह और उनकी टीम गांव से निकाली जा चुकी महिलाओं के लिए एक पुनर्वास केंद्र भी चला रही हैं। सरकार ने उन्हें उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया है।