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पूर्व राष्ट्रपति की उस बेटी से मिलिए, जो मजदूरों के बच्चों को करती हैं शिक्षित

Published - Fri 20, Sep 2019

देश के आठवें राष्ट्रपति आर वेंकटरमण की बेटी विजयाराम चंद्रन ने अपना पूरा जीवन ही समाजसेवा को समर्पित कर दिया है। वह तीस सालों से मजदूरों के बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रही हैं।

vijaychandran

कानपुर। आज के समय में यदि किसी बच्चे का पिता सांसद या मंत्री बन जाए, तो उसे जीवनभर कमाने की जरूरत नहीं पड़ती। समाजसेवा की बात ही छोड़िए, लेकिन एक महिला ऐसी भी हैं, जो देश के पूर्व राष्ट्रपति की बेटी हैं और उन्होंने अपना पूरा जीवन ही समाजसेवा को समर्पित कर दिया है। विजयाराम चंद्रन देश के आठवें राष्ट्रपति आर वेंकटरमण की बेटी हैं और तीस सालों से मजदूरों के बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रही हैं।

मूल रूप से तमिलनाडू की रहने वालीं विजयाराम चंद्रन के पति आईआईटी प्रोफेसर हैं। 1968 में वे तमिलनाडू से कानपुर आकर बस गए। यहां आकर विजया ने यहां आकर विजयाराम ने देखा कि यहां के ईंट भट्टे पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चे पढ़ने नहीं जाते। यहीं से शुरु हुआ उनका समाज सेवा का सफर। विजया ने 1986 में  'अपना स्कूल' नाम से स्कूल शुरू किया। उन्होंने उन्होंने मजदूरों को समझाया कि बच्चों के लिए शिक्षा कितनी जरूरी है। फिर मजदूरों के बच्चों ने स्कूल में आना शुरू कर दिया। शुरुआत में मजदूरों के बच्चों को स्कूल लाने के लिए वह कई किलोमीटर पैदल चलकर भट्टो को जातीं और बच्चों को स्कूल लेकर आतीं। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी। आज विजयाराम करीब बीस हजार बच्चों को शिक्षित कर चुकी हैं। कानपुर में करीब तीन सौ ईंट भट्टे हैं। यहां काम करने वाले परिवारों में ज्यादातर बिहार के मुसहर समुदाय से हैं और शिक्षा से वंचित हैं। विजयाराम ने इन्हें परिवारों को देखते हुए यह अभियान शुरू किया था। जिंदगी के सात दशक देख चुकीं विजया बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ गरीब कन्याओं को लड़कों को भी कई तरह का रोजगारपरक प्रशिक्षण दे रही हैं। उनके द्वारा बच्चों को दी शिक्षा से कई बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो चुके हैं और परिवार का सहारा बन गए हैं। विजया कहती हैं कि मैंने ईंट भट्ठो में मासूमों को ईंट पाथते देखा, तो मैंने उनके लिए स्कूल बनाने का फैसला किया। मुझे खुशी होती है, जब बच्चा पढ़-लिखकर कुछ बन जाता है।

विजयाराम द्वारा शिक्षित किए गए कुछ बच्चों का कहना है कि कभी उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें पढ़ने का मौका मिलेगा, लेकिन उनकी किस्मत अच्छी है कि वो आज शिक्षित हो गए हैं। शिक्षित नहीं होते तो भट्ठों पर ईंट ही पाथ रहे होते। विजयाराम का यह प्रयास लोगों के लिए नजीर तो है कि साथ ही समाज को एक आइना भी दिखा रही है।