समाजसेवा के प्रति शैलजा की लगन कॉलेज के दिनों से ही थी। जब नौकरी करने लगी, तो अपने सपने को साकार करते हुए शैलजा ने एक एनजीओ बनाया। जहां गरीब, वंचित बच्चों को पढ़ाई के साथ उनकी प्रतिभा को निखारा जाता है।
शैलजा दयानंद एक समाज सेविका हैं। हैदराबाद के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी शैलजा का बचपन सामान्य बच्चों की ही तरह बीता। सामाजिक कार्यों के प्रति उनका आकर्षण शुरू से ही रहा। स्कूल के बाद जैसे ही उन्होंने कॉलेज जाना शुरू किया उन्होंने निश्चय कर लिया उन्हें एनजीओं की शुरूआत तो करनी ही है। समस्या यह थी कि एनजीओ के काम के बारे में उन्हें कोई जानकरी नहीं थी कि कैसे इसकी शुरुआत की जाए। इसके लिए उन्होंने उसी समय कुछ एनजीओ के साथ वेबसाइट डेवलपर और सोशल मीडिया मार्केटिंग के तौर काम करना शुरू कर दिया। आईआईएम कोझीकोड से स्नातक करने के बाद शैलजा एक मल्टीनेशनल कंपनी के लिए काम करने बंगलूरू आ गई। बंगलूरू में ही उन्होंने स्वयंसेवकों का एक समूह बनाकर काम करना शुरू कर दिया। शैलजा इसे एक ऐसा मंच बनाना चाहती थी, जहां ऐसे व्यक्ति एक साथ इकट्ठे हों, जो अपने कौशल का उपयोग सामाजिक विकास के लिए करना चाहते हैं। कुछ दिनों के बाद उन्होंने एक एनजीओ भी खोल दिया। इस एनजीओ से कई ऐसे लोग जुड़े, जो प्रतिभाशाली थे और अपनी गुणवत्ता को वह बच्चों के साथ बांटना चाहते थे, पर उन्हें अपना कौशल दिखाने का अवसर नहीं मिला। शैलजा बताती हैं कि, मैंने देखा है कि स्वयंसेवकों के नियमित होने पर बच्चों को पढ़ाना आसान होता है, बच्चे उनके साथ सहज महसूस करते हैं और स्वयंसेवकों को प्रत्येक बच्चे के समझने का स्तर भी पता होता है। जो बच्चे पहले बोलने में सकुचाते थे, अब वे मंच पर आकर अपनी प्रस्तुति देते हैं, और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं।
प्रतिभा को अवसर
शैलजा का एनजीओ कला, संगीत, खेल और शिक्षा के माध्यम का उपयोग उन वंचित बच्चों के बेहतर कल का निर्माण करने के लिए करते हैं, जिन्हें अपनी प्रतिभा या कौशल का प्रदर्शन करने का मौका नहीं मिलता है। बच्चों को पढ़ाने और प्रेरित करने के साथ खुद को अभिव्यक्त करने के लिए उन्हें एक मंच भी दे रहा है।
अनाथ बच्चे
उनके एनजीओ के लोग मुख्य रूप से उन बच्चों के साथ जुड़ते हैं, जो सड़कों पर रहते हैं, गरीब या अनाथ हैं। स्वयंसेवक इन बच्चों को अंग्रेजी, कला, शिल्प, गायन, नृत्य, अभिनय और फुटबॉल सिखाते हैं। वे साथ जुड़कर आत्मविश्वास हासिल करते हैं और दर्शकों के सामने मंच पर अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए आगे आते हैं।
हमारे नायक
शैलजा कहती हैं, हमारे स्वयंसेवक ही एनजीओ के नायक हैं। अभी हम बंगलूरू में सौ से ज्यादा स्वयंसेवकों के सहयोग से डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चों के साथ काम कर रहे हैं। साथ ही बड़े बच्चों को हुनरमंद बनाने के साथ करियर सत्र आयोजित करते हैं, जो उन्हें खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने में मदद करते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.