कोरोना की जंग जीतने में हर कोई अपने-अपने तरीके से लगा है। वहीं हरियाणा के झज्जर जिले की ढराणा गांव की महिलाएं अपने गांव के लोगों को कोरोना के खौफ से बचाने के लिए चूल्हा-चौक छोड़कर गांव की गली और चौराहों पर पहरा दे रहीं हैं। उनके इस हौसले को हर कोई सलाम कर रहा है।
नई दिल्ली। कोरोना से जंग जीतने को ढराणा गांव की महिलाओं ने अपना चूल्हा-चौका छोड़कर सड़क पर पहरा देने का जिम्मा उठाया है। सुबह पांच बजे उठकर यह महिलाएं पहले घर का जरूरी काम निपटाती हैं। उसके बाद पांच-पांच महिलाओं के यह चार ग्रुप बनाकर यह गांव को जोड़ने वाली अलग-अलग सड़कों पर पहरा देने निकल पड़ती हैं। यह दिनभर वहां मौजूद रहती हैं। यह गांव में हर आने-जाने पर नजर रखती हैं। गांव में किसी भी बाहरी व्यक्ति की एंट्री यहां प्रतिबंधित है। इसी प्रकार के गांव के हर व्यक्ति को भी मास्क देने और हाथों को सैनिटाइज्ड कराने के बाद ही प्रवेश करने दिया जा रहा है।
गांव से निकलते हैं छह रास्ते
इस गांव से ढराणा से चिमनी, बाकरा, मसूदपुर, दूबलधन, काहनौर, बेरी को जोड़ने वाले छह रास्ते निकलते हैं। क्रमवार इन मार्गों पर पहुंचकर महिलाओं की टीमें निगरानी रखे हुए हैं। ताकि, प्रधानमंत्री के आह्वान पर गांव के बाहर बनाई गई लक्ष्मण रेखा को भेदते हुए कोई भी व्यक्ति अंदर न आने पाए।
सामाजिक दूरी का भी रखा जाता है पूरा ख्याल
करीब 3400 की आबादी वाले इस गांव की सावित्री, कविता, सुदेश, सकीना व मोनिका ने बताया कि वह स्वयं भी सामाजिक दूरी के फार्मूला और उसकी गंभीरता को अच्छी तरह से समझती है। सुबह जल्दी काम करने के बाद पहले तो वहां गांव में जहां भी ताश की चौकड़ी या चौपाल आदि लगती है, उसकी चेकिंग करती हैं। उसके बाद युवाओं एवं पुरुषों को समझाया जाता है, कि किसी भी स्तर पर कोई लापरवाही न बरतें७
लोगों को किया जा रहा जागरूक
इसी क्रम में चिमनी के रास्ते पर मौजूद सपना, स्वीटी, कृष्णा तथा काहनौर के रास्ते पर मंजू, मंजूबाला, कृष्णा व संतोष ने बताया कि सिर्फ जागरूक रहकर ही इस बीमारी से बचा जा सकता है, इसलिए प्रयास है कि गांव की दहलीज से यह बीमारी प्रवेश ही न करने पाए। गांव के बाहर से आने वाले सब्जी, फल सहित अन्य सामान बेचने वालों को छूट नहीं दी जा रही है। स्थानीय दुकानदारों से ही सामान की पूर्ति आदि की जा रही है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.