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​कोरोना योद्धा : विकलांग सुनीता बन गईं मास्क वाली ‘दीदी’ 

Published - Mon 27, Apr 2020

कन्नौज के ब्लॉक उमर्दा के बेहरिनकी की पोलियो ग्रस्त सुनीता ने कोरोना संकट के बीच अपने गांव की मदद करने की ठानी। वह रोज अपने घर में मास्क बनाती हैं और गांव-गांव अपनी ट्राइसाइकिल से बांटने जाती हैं।

sunita Kannauj

कन्नौज। कठिनाइयों से भरी जिंदगी जी रही विकलांग महिला ने कोरोना के युद्ध में भागीदारी करने की ठानी तो लोगों ने पहले उन्हें बेचारी बताया लेकिन उनके दृढ़ निश्चय और मेहनत ने इतनी चर्चा कमाई कि सरकारी महकमा भी उनका साथ देने लगा। हम बात कर रहे हैं कन्नौज के ब्लॉक उमर्दा के बेहरिनकी की सुनीता की। 
पोलियो ग्रस्त हैं सुनीता 
28 वर्षीय सुनीता पोलियो से ग्रसित हैं। आर्थिक परेशानी के चलते सुनीता को 8वीं के बाद ही स्कूल छोड़ना पड़ा। जिसकी कसक उनके मन में अभी तक है। वह आगे और पढ़ना चाहती थीं लेकिन संभव न हो सका। उनका दिमाग बहुत तेज है। सुनीता को कढ़ाई, बुनाई और मेहंदी जैसे कामों में महारथ हासिल है। यह ज्ञान वह अपने तक ही सीमित नहीं रखना चाहती। इसलिए वह गांव के बच्चों को कढ़ाई, बुनाई और मेहंदी का हुनर भी सिखा रही हैं। जब कोरोना का संकट आया तब भी वह पीछे नहीं रही। लॉकडाउन के बाद उन्होंने गांव के लोगों की मदद करने की ठानी। वह घर में मास्क बनाती और गांव-गांव बांटतीं। सुनीता रोज सुबह मास्क बांटने अपनी ट्राइसाइकिल से निकलती। 
बच्चे मास्क वाली दीदी कह कर बुलाते हैं
बच्चे उनको रोज मास्क बांटता देखते हैं। इसलिए वह उन्हें मास्क वाली ‘दीदी’ कहकर बुलाने लगे हैं। कोरोना युद्ध में उनके इस ‘योगदान’ की चर्चाएं आम हो गईं। सुनीता की कहानी सरकारी महकमे तक पहुंची तो जिला आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक शिव बिहारी ने सुनीता को समूह से जोड़कर 100 मीटर कपड़ा उपलब्ध कराया। अब वह हर रोज 70 से 100 मास्क बनाती हैं, उन्हें हर मास्क के चार रुपये भी मिलते हैं। 
भाई-बहन भी करते हैं मदद
मास्क बनाने में सुनीता का भाई और दो बहनें भी मदद करती हैं। हालांकि मास्क बनाकर उन्हें देने सुनीता को 12 किलोमीटर ट्राइसाइकिल चलाकर मुख्यालय जाना पड़ता है। वह कहती हैं यह तो कुछ नहीं है। कोरोना के युद्ध में जो उनसे हो पाएगा वह करेंगी। इस युद्ध को हर हाल में जीतना है।