कोरोना संकट के समय जब लॉकडाउन लगा, तो प्रवासी मजदूरों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई। ऐसे में मुंबई की शांति सिंह ने मजदूरों को भोजन कराने का जिम्मा उठाया और पांच हजार मजदूरों के खाने का इंतजाम किया। आज भी वह प्रवासियों की मदद करने में पीछे नहीं हटतीं।
मुंबई। कोरोना संकट अभी बना हुआ है। कुछ राज्यों में दोबारा लॉकडाउन लगने की खबरे सामने आने लगी हैं और कुछ राज्यों में नियमों को फिर से कड़ा कर दिया गया है। एक समय ऐसा भी था, जब पूरे देश में एक साथ लॉकडाउन लगाया गया था और तमाम शहरों में फंसे प्रवासी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो गया था। आर्थिक राजधानी मुंबई में तो प्रवासी मजदूरों के बीच हाहाकार मच गया था। मजदूरों को खाने के लाले पड़ गए, ऐसे में मुंबई की शांति सिंह मजदूरों के लिए उम्मीद की किरण बनकर सामने आईं और खाने और दूसरी आवश्यक चीजों की सुविधा उपलब्ध कराने में पीछे नहीं हटीं। शांति के साथ उनकी युवा वॉलंटियर्स टीम ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया। लॉकडाउन शुरू होने से अब तक मुंबई शहर के पश्चिमी उपनगरों बांद्रा पूर्व, चार बंगला, गोरेगांव, नवापाड़ा, वर्सोवा और भारत नगर जैसे इलाकों में उन्होंने 5,500 प्रवासी मजदूरों को खाना उपलब्ध करा चुकी हैं।
आज हालात सुधरे हैं, लेकिन शांति मदद करने से पीछे नहीं हटतीं
लॉकडाउन के दौरान शांति को एक कॉल आया था कि 130 प्रवासी मजदूर फंसे हुए हैं और उनके पास खाने को कुछ नहीं है। शांति सिंह चौहान ने उन लोगों के लिए खाने का इंतजाम किया। इसी दौरान उन्हें पता चला कि प्रवासी मजदूरों के 600 और परिवार मुसीबत में हैं। शांति ने उनके लिए खाने और जरूरत के सामान की व्यवस्था की। धीरे-धीरे से संख्या पांच हजार तक जा पहुंची। आज हालांकि हालात सामान्य हो चुके हैं, लेकिन शांति प्रवासी मजदूरों की मदद करने से पीछे नहीं हटतीं। शांति का कहना है कि यदि हम इतने सक्षम हैं कि किसी की मदद कर सकें, तो हमें मदद का हाथ आगे जरूर बढ़ाना चाहिए।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.